केजरीवाल की कलंकगाथा

By: May 13th, 2017 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्रीडा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

दिल्ली में उन दिनों आम चर्चा थी कि जब अन्ना हजारे ने मरण व्रत रखा था, तो केजरीवाल की ख्वाहिश थी कि वह व्रत न खोलें, शहीद हो जाएं ताकि केजरीवाल के हाथ भी अपनी पार्टी के लिए एक नया गांधी मिल जाता, जिसकी पीठ पर सवार होकर वह राजनीति के आकाश में लंबी देर तक उड़ते रहें । लेकिन शायद अन्ना इस बात को समझ गए थे और दिल्ली का जादूस्थल छोड़ कर वापस महाराष्ट्र चले गए। उन्होंने केजरीवाल को रोकने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हुए। वह नहीं चाहते थे कि केजरीवाल भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से विश्वासघात करके कोई नया राजनीतिक दल बनाएं…

किसी भी व्यक्ति के दो प्रकार के साथी होते हैं । अंतरंग और बहिरंग । अंतरंग वे होते हैं जो एक दूसरे की हर बात जानते हैं । जिनका आपस में पर्दा नहीं होता । बहिरंग वे होते हैं जिनसे पर्देदारी होती है । उनको उतनी ही जानकारी होती है जितनी पर्दा उठने पर दिखाई देती है । आम आदमी पार्टी में कपिल मिश्रा, अरविंद केजरीवाल के अंतरंग साथी थे । ऐसे साथी जिन्हें पर्दे के अंदर की सारी जानकारी होती है । दोनों आपस में घी शक्कर थे । मनीष सिसोदिया के बाद केजरीवाल के कुनबे में उन्हीं का नाम आता था । मंत्रिमंडल में हैसियत के हिसाब से नहीं, पर्देदारी के हिसाब से । ऐसा साथी जब विद्रोह करता है तो बहुत खतरनाक सिद्ध हो जाता है । वह किसी भी रावण की सोने की लंका जला कर राख कर सकता है । शायद इसी से कभी ‘घर का भेदी लंका ढाए’ वाला मुहावरा बना होगा । अब कपिल मिश्रा केजरीवाल की सोने की लंका जलाने निकल पड़े हैं । उन्होंने आरोप लगाया है कि केजरीवाल ने मंत्रिमंडल के ही एक दूसरे सहयोगी सत्येंद्र जैन से दो करोड़ रुपए लिए हैं । कपिल का कहना है कि यह सारा कांड उनकी आंखों के सामने हुआ और पूछने पर कहा गया कि राजनीति में बहुत कुछ करना पड़ता है। राजनीति में अरविंद केजरीवाल की छवि की कुल जमा पूंजी यही है कि वह ईमानदार हैं । वह अच्छे प्रशासक हैं, ऐसा दावा वह स्वयं भी करने का साहस नहीं करते । उन्होंने दिल्ली के लिए, जिसके वह मुख्यमंत्री हैं, के विकास के लिए कुछ किया हो, ऐसा दावा उनके कुछ साथी दबी जुबान से करते रहते हैं, लेकिन दिल्ली वाले भी उसे केजरीवाल के मनोरंजन कार्यक्रम से ज्यादा कुछ नहीं समझते ।

उन्होंने दिल्ली में मुहल्ला क्लीनिक खोलें हैं, जिसके लिए वह ख़ुद ही कहते हैं कि फ्रांस और इंग्लैंड तक में उनकी प्रशंसा हो रही है । दिल्ली में भी उनकी प्रशंसा हो रही है, ऐसा उन्होंने स्वयं भी कभी नहीं कहा । गुणा तकसीम, जमा-घटाना में वे निष्णात हैं, इसलिए दिल्ली की सड़कों पर कभी कभार सम-विषम, ओड-ईवन चिल्लाने लगते हैं । उनका कहना है वह इस सूत्र से दिल्ली की ट्रैफिक समस्या पर नियंत्रण कर रहे हैं । इस पर भी उनका यही कहना होता है कि बाहर के देशों में इस फार्मूले की बहुत प्रशंसा हो रही है। तब किसी ने व्यंग्य में टिप्पणी की थी कि केजरीवाल को इस ट्रैफिक नियंत्रित करने वाले अपने नायाब फार्मूले का इंटलैक्चुयल प्रॉपर्टी राइट के पेटेंट करवा लेना चाहिए, ताकि वह इससे करोड़ों रुपए कमा सकें । अब केजरीवाल के ही घी-शक्कर साथी कपिल मिश्रा ने जो केजरीवाल के बारे में कहा है, उससे लगता है उन्हें इस पेटंेट की जरूरत थी ही नहीं क्योंकि उनके पास लक्ष्मी पूजा का दूसरा फार्मूला है जो सत्येंद्र जैन ने उन्हें पढ़ाया है, लेकिन केजरीवाल के कुछ नए पुराने साथियों को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा कि केजरीवाल दो करोड़ रुपए ले सकते हैं । योगेंद्र यादव भी यही कह रहे हैं और कुमार विश्वास भी यही कह रहे हैं। उनका कहना है कि केजरीवाल में और पचास अवगुण हो सकते हैं, लेकिन पैसा लेने का अवगुण उनमें नहीं है। केजरीवाल जैसे लोगों के साथ आमतौर पर ऐसा होता है। उनको जितना विश्वास और यादव जानते हैं, उतना वे कह रहे हैं और जितना कपिल मिश्रा जानते हैं, उतना वह कह रहे हैं । दोनों की जानकारियों को एक साथ मिला देने से जो बनता है वह अरविंद केजरीवाल है ।

केजरीवाल को समझने के लिए उनकी जन्म कथा को जान लेना जरूरी है । जन्म कथा से अभिप्राय इस नश्वर संसार में आने की कथा नहीं बल्कि राजनीति के संसार में आने की कथा । सभी जानते हैं कि केजरीवाल का राजनीति की दुनिया में जन्म दिल्ली के रामलीला मैदान में हुआ था और उनको जन्म देने वाले महाराष्ट्र के अन्ना हजारे थे। अन्ना ने केजरीवाल को जन्म देने में एक सिद्ध हस्त जादूगर की भूमिका निभाई। सिद्धहस्त इसलिए कि बाकी जादूगर तो एक कबूतर से दो कबूतर बना कर दिखाते हैं लेकिन अन्ना हजारे ने तो सार्वजनिक रूप से बिना किसी कबूतर के ही एक नया कबूतर बना दिया जिसे राजनीति के आकाश में केजरीवाल के नाम से उड़ाया । लेकिन बाद में वह कबूतर अन्ना के नियंत्रण से भी बाहर हो गया । दिल्ली में उन दिनों आम चर्चा थी कि जब अन्ना हजारे ने मरण व्रत रखा था, तो केजरीवाल की ख्वाहिश थी कि वह व्रत न खोलें, शहीद हो जाएं ताकि केजरीवाल के हाथ भी अपनी पार्टी के लिए एक नया गांधी मिल जाता, जिसकी पीठ पर सवार होकर वह राजनीति के आकाश में लंबी देर तक उड़ते रहें । लेकिन शायद अन्ना इस बात को समझ गए थे और दिल्ली का जादूस्थल छोड़ कर वापस महाराष्ट्र चले गए । उन्होंने केजरीवाल को रोकने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हुए। वह नहीं चाहते थे कि केजरीवाल भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से विश्वासघात करके कोई नया राजनीतिक दल बनाएं । लेकिन केजरीवाल को जितना अन्ना हज़ारे से प्राप्त करना था वह उन्होंने प्राप्त कर लिया था, इसलिए  उन्होंने अन्ना को नमस्कार कर दिया । यही कारण है कि इस नए केजरीवाल को देख कर अन्ना को दुख हुआ । उन्होंने तो यहां तक कहा कि भ्रष्टाचार के आरोप लगने के कारण, जांच होने तक केजरीवाल को त्यागपत्र दे देना चाहिए ।

 आकाश में उड़ते हुए केजरीवाल आज तक जो बीट दूसरों पर करते रहते थे, वही बीट उसी तरीके से कपिल मिश्रा ने उन पर कर दी है। यही कारण है कि केजरीवाल से यह बीट न तो पोंछते बनती है और न ही संभाले बनती है । इसलिए वह अपने राजमहल में गुम हो गए हैं । मैदान में उन्होंने अपनी सेना उतारी है। जाहिर है ये सैनिक केजरीवाल का बचाव करते हुए विदूषक ज्यादा लगते हैं, रक्षक कम। क्योंकि उनके पास केजरीवाल का बचाव करने के लिए तथ्य नहीं हैं बल्कि नुस्खे हैं, जिन्हें देखते- देखते जनता जान गई है कि यह दंतमंजन के नाम पर राख बेची जा रही है । केजरीवाल और उसके सैनिक शुरुआती दौर में तो दंत मंजन के नाम पर राख बेचने में कामयाब हो गए थे। लेकिन सभी जानते हैं कि राख का यह एक्सपेरीमेंट ज्यादा देर कभी नहीं चलता । इस बार पंजाब, गोवा में लोगों ने केजरीवाल की यह राख खरीदने से इनकार कर दिया । कपिल मिश्रा और केजरीवाल के ही एक दूसरे साथी पंजाब के घुग्गी ने आरोप लगाया है कि पंजाबियों को यह राख बेचने के लिए लड़कियों तक का प्रयोग किया है। इस आरोप पर सभी ओर सन्नाटा है। सभी की बोलती बंद हो गई है। लेकिन ये सभी रहस्य दिल्ली नगर निगम के चुनावों के बाद ही निकलने शुरू हुए, जब केजरीवाल के साथियों को पता चल गया कि जादू के इस कबूतर की लोगों को धोखा देने की जादुई ताकत समाप्त हो गई है।

यह केजरीवाल के रहस्य खुलने का पर्व है। भ्रष्टाचार मुक्ति के नाम पर पर्दे के पीछे क्या खेल खेला जा रहा था। कपिल मिश्रा अब केजरीवाल के विदेश संबंधों की जांच को लेकर वहीं धरने पर बैठ गए हैं, जहां कभी केजरीवाल बैठा करते थे। केजरीवाल अपने राजनीतिक जीवन का अंतिम जादू खेल कर शायद अंतिम दांव चलने चाहते हैं। यही कारण था कि उनके एक साथी सौरभ भारद्वाज दिल्ली विधानसभा के अंदर ईवीएम मशीन के नाम पर एक खिलौने का तमाशा दिखा रहे थे। वह दिल्ली के लोगों को समझाना चाह रहे थे कि आपकी औकात हमें हराने की नहीं है,  हमें तो ईवीएम मशीनों ने हराया है। लेकिन यदि वे यह तमाशा बाहर दिखाते तो उन पर आपराधिक मामले भी बन सकते थे इसलिए यह तमाशा दिखाने के लिए दिल्ली विधानसभा को चुना गया। सरकारी पैसे पर गैर सरकारी तमाशा। क्योंकि विधानसभा के अंदर किसी भी कहे- किए पर कोई मुकदमा नहीं चला सकते हैं। लेकिन कपिल मिश्रा अड़े हुए हैं कि केजरीवाल अपने इस तमाशे से लोगों का ध्यान दो करोड़ वाले मामले से हटा नहीं सकते। वह दिल्ली में धरने पर बैठे हुए हैं। जब तक वह बाहर बैठे हैं, तब तक केजरीवाल अपने राजमहल से बाहर नहीं निकल सकते। घर का भेदी सबसे ख़तरनाक होता है। उसका सामना करना ही सबसे मुश्किल होता है ।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com

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