खुद को लुटाने में भी अव्वल है हिमाचल

By: May 8th, 2017 12:05 am

NEWSसुरेश कुमार

लेखक, योल , कांगड़ा से हैं

हिमाचल खेलों में पंजाब-हरियाणा के सामने कहीं नहीं ठहरता। इन राज्यों में खिलाडि़यों को हर वह सुविधा सरकार द्वारा दी जाती है, जो खेलों के लिए जरूरी होती है और हिमाचल में ऐसा कुछ भी नहीं है। जिस प्रदेश की बख्शो देवी ठंड में नंगे पांव दौड़ कर अपनी प्रैक्टिस को अंजाम देती हो, वहां खेलों की हालत क्या होगी, अंदाजा लगाया जा सकता है…

हिमाचल शिक्षा में अव्वल, स्वास्थ्य सेवाओं में अव्वल है, तो हिमाचल लुटने में भी अव्वल है। अपनी ही कमजोरी हिमाचल की इस लूट का कारण बन रही है। जैसे अभी मेलों का दौर जारी है तो जाहिर सी बात है कि माली जीतने वालों की भी मौज होगी। और ये माली जीतने वाले अपने नहीं, बल्कि पंजाब, हरियाणा या राजस्थान और दिल्ली के होते हैं। हिमाचल में मेलों के दौरान कुश्तियां करवाने की परंपरा रही है। इन कुश्तियों में हिमाचल ही नहीं पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान के पहलवान भी हिस्सा लेने आते हैं। हिस्सा लेने क्या आते हैं बस यूं समझो कि सब कुछ बटोर कर ले जाने के लिए आते हैं। हिमाचल के इक्का-दुक्का पहलवानों को छोड़ दें तो कोई भी पहलवान माली अपने नाम नहीं करवा पाता। पहले माली में दी जाने वाली रकम कम होती थी, पर अब तो लाखों की माली होती है और कहीं-कहीं मोटरसाइकिल और कार तक भी माली जीतने वालों को दी जाती है। यानी कुश्तियां हम हिमाचली पहलवानों के लिए करवाते हैं और सारे इनाम बाहरी पहलवान बटोर कर ले जाते हैं।

क्या हिमाचल में प्रतिभा की कमी है, जो हमारे पहलवान घुटने टेक देते हैं। हिमाचल से भी अव्वल खिलाड़ी निकल सकते हैं और निकले भी हैं, पर फिर भी  कमी प्रबंधन की दिखती है। हिमाचल खेलों में पंजाब-हरियाणा के सामने कहीं नहीं ठहरता। इन राज्यों में खिलाडि़यों को हर वह सुविधा सरकार द्वारा दी जाती है, जो खेलों के लिए जरूरी होती है और हिमाचल में ऐसा कुछ भी नहीं है। जिस प्रदेश की बख्शो देवी ठंड में नंगे पांव दौड़ कर अपनी प्रैक्टिस को अंजाम देती हो, वहां खेलों की हालत क्या होगी, अंदाजा लगाया जा सकता है। बेशक बख्शो के सुर्खियों में आने के बाद सरकार जरूर हरकत में आई हो, पर जमीनी स्तर पर खेल प्रबंधन में प्रदेश अभी बहुत पीछे है। क्या हिमाचल में अखाड़े नहीं बन सकते, क्या हिमाचली पहलवानों के लिए प्रशिक्षक नहीं रखे जा सकते हैं। सब कुछ हो सकता है, पर प्रबंधन और पारखी नजर चाहिए, जिसकी हिमाचल को दरकार है। अब बात करें मेलों के दौरान होने वाली सांस्कृतिक  संध्याओं की, तो प्रदेश हर साल इस फील्ड में भी खूब लुटता है और इसी लुटने को प्रदेश अपनी वाहवाही समझता है कि हम सांस्कृति संध्याओं में मुंबई के बड़े-बड़े कलाकारों को बुलाते हैं। मुंबइया कलाकारों को बुलाना फख्र की बात हो सकती है, पर उन्हें लाखों देकर अपने हिमाचली कलाकारों को दो-तीन हजार रुपए प्रोग्राम के लिए थमा देना फिक्र की बात है। मुख्यातिथि बने नेता सांस्कृतिक समारोहों में भाषण देते हुए कहते हैं कि मेले हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं और इसे सहेजना हमारी जिम्मेदारी है। तो क्या मुंबइया या पंजाबी कलाकारों को तरजीह देकर हम अपनी संस्कृति को सहेज पाएंगे। इन सांस्कृतिक समारोहों में भी तो हिमाचल लुटता हुआ ही दिखता है। बेशक मुंबइया कलाकारों से समारोहों का स्तर कुछ और हो जाता हो, मनोरंजन के मायने या टेस्ट बदल जाता हो, पर अपने कलाकारों के स्तर का ख्याल रखना भी जरूरी है। अब बात दूसरी प्रतिभाओं  की करें तो इसमें भी हिमाचल लुटा ही है। अच्छे-अच्छे खिलाड़ी, डाक्टर और इंजीनियर हिमाचल के होते हुए भी दूसरे प्रदेशों में जा कर खेल रहे हैं, सेवाएं दे रहे हैं। उदाहरण तो कई हैं जब हिमाचल के खिलाडि़यों ने पलायन किया और दूसरे प्रदेश की तरफ से खेले।

हिमाचल की छह कबड्डी खिलाडि़यों ने मध्यप्रदेश की शरण ली थी और उसकी झोली में कई मेडल डाले। यह भी तो लुटने की एक अदा ही है कि हिमाचल का पानी और हिमाचल की जवानी हिमाचल के काम नहीं आ पाती। हिमाचल के खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलते हैं, पर जब उन्हें सम्मानित करने की बारी आती है, तो सरकार चंद सिक्के दे कर उन्हें निपटा देती है, जबकि दूसरे राज्य अपने खिलाडि़यों पर इतनी धनवर्षा करते हैं तो खिलाड़ी भी उतने ही उत्साह से खेलते हैं। राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी एक अदद सरकारी नौकरी के लिए गुहार लगाते सिर्फ हिमाचल में ही देखे गए हैं, दूसरे राज्यों में नहीं।

इसी को तो कुप्रबंधन कहते हैं जिस कारण हिमाचल की जवानी यहां नहीं रुकती। अब जरा दूसरी तरफ प्रदेश की जनता के लुटने की बात करें, तो दो मुख्य क्षेत्र नजर आएंगे बिजली और सीमेंट। हिमाचल बिजली राज्य माना जाता है, जो दूसरे राज्यों को बिजली उपलब्ध करवाता है और हिमाचल में बिजली की दर देखो तो यह महंगी है। यानी हिमाचल अपने यहां बांध बनाकर बिजली पैदा करता है और इसे ही महंगी बिजली की मार पड़ती है। यही हाल सीमेंट का भी है कि अपने पहाड़ों को छलनी कर सीमेंट कारखाने स्थापित करने के बाद हिमाचल को ही सीमेंट महंगे दामों पर मिलता है और दूसरे राज्यों में यह सीमेंट सस्ता होता है। मजे की बात यह है कि उद्योग मंत्री को जानकारी ही नहीं होती कि कब सीमेंट कंपनियों ने सीमेंट के रेट बढ़ा दिए। सरकार की यही अनभिज्ञता हिमाचल को लुटने के लिए विवश करती है। कर्ज में डूबा प्रदेश भी अगर लुटने में अव्वल रहता है, तो भविष्य की रूपरेखा को समझना मुश्किल हो जाएगा। प्रदेश के पानी और जवानी को यदि  प्रदेश में रोका जाए तभी यह लूट रुकेगी, वरना खुद के लुटने पर भी हम फख्र करते रहेंगे।  हम केंद्र के आगे हाथ फैलाते हैं कि कुछ दे दे और दूसरों के लिए  उन हाथों को बिना सोचे समझे ही खोल देते हैं। इसे ही खुद को लुटाना कहते हैं।

ई-मेलः sureshakrosh@gmail.com

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