गुजारिश है !

By: May 5th, 2017 12:01 am

( जग्गू नौरिया, जसौर, नगरोटा बगवां )

गुजारिश है, हे कलम अब तो टूट जा,

कब तक लिखूं कायरों के किस्से,

दवात स्याही की तू ही सूख जा।

मेरी मति ढीठ की है,

जो होता लिखवा देती,

सफेद लिवास की करतूतें काली,

हे चरित्र कालिमा तू ही छिप जा।

फख्र से चलता हूं,

गुनहगार से न डरता हूं,

भेद निगाह कभी न रखता हूं,

कैसे कहूं हर बार तू ही झुक जा।

वो नेता कैसा है,

आश्वासन देता थकता नहीं,

मुकरने से वो पीछे हटता नहीं,

मिलेगा कुछ अबकी बार भूल जा।

बाबू घूरता दफ्तर में,

चपरासी रौब सब पर चलाए,

रिश्वत बिन फाइल सरकती आगे जाए,

इस गलतफहमी को अभी से ही भूल जा।

लोग दिखावा करते,

विकास काज में रोड़ा खूब अड़ाते,

कालिख भरे मन गुणगान भी वो करते,

इन चतुर चालाकों को अभी से भूल जा।

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