जिद से सुलगती सीमा

By: May 8th, 2017 12:07 am

NEWSकुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

सैनिकों की हत्या के बाद उनके शरीर को क्षत-विक्षत करना कोई नई बात नहीं है। चिंता का विषय यहां यह है कि पाकिस्तान इस घटना में भी पहले की ही तरह साफ-साफ मुकर गया। दुर्भाग्यवश उसे इस मर्तबा भी इस निंदनीय घटना को लेकर कोई पश्चाताप नहीं है, कोई दुख नहीं है। इससे पहले की घटनाओं में भारत कई बार पाकिस्तान को सबूत देता रहा है। लश्कर-ए-तोएबा के सरगना का मामला भी इससे अलग नहीं है, जिसके प्रभाव में सीमा पर कई झड़पें हुईं…

युद्ध हमेशा कुरूप होता है। यही युद्ध तब और भी भयावह रूप धारण कर लेता है, जब यह दो जिद्दी मुल्कों के बीच हो रहा हो। एक-दूसरे को नुकसान पहुंचाने या नीचा दिखाने के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। पाकिस्तान ने हाल ही में भारत के दो सैनिकों के सिर कलम करके उनकी हत्या कर दी। स्वाभाविक ही था कि भारत भी अपनी तरफ से प्रतिक्रिया दर्ज करवाता। इस प्रतिक्रिया के रूप में भारतीय सेना ने भी सीमा पर स्थित पाकिस्तान की दो चौकियां ध्वस्त कर दीं।

भारतीय रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने पाकिस्तान की इस करतूत का जवाब देते हुए कहा, ‘इस तरह की हरकतों को तो युद्ध के समय भी अंजाम नहीं दिया जाता। यह बर्बरता की हद ही मानी जाएगी। समूचे देश को अपनी सेना पर पूरा भरोसा है, जो इस घटना के साथ सर्वथा न्याय करेगी। इन जवानों के बलिदान व्यर्थ नहीं जाएंगे।’ सेना अध्यक्ष बिपिन रावत ने भी इस वहशियाना हरकत की निंदा करते हुए ‘उचित’ जवाब देने का संकल्प जाहिर किया है।

यह घटना उसी वक्त घटित हुई, जब भारत दौरे पर आए तुर्की के राष्ट्रपति रजब तईब इरदुगान ने भारत-पाकिस्तान में जम्मू-कश्मीर के मसले पर जारी गतिरोध को खत्म करने हेतु बहुपक्षीय संवाद का प्रस्ताव दिया था। नई दिल्ली ने दो-टूक उनके इस प्रस्ताव पर ऐतराज जताया, क्योंकि वह इस मामले को लेकर बेहद आश्वस्त है कि कश्मीर द्विपक्षीय मसला है और भारत-पाकिस्तान दोनों को वार्ता की एक मेज पर आकर इसे सुलझाने के लिए प्रयास करना चाहिए। सैनिकों की हत्या के बाद उनके शरीर को क्षत-विक्षत करना कोई नई बात नहीं है। चिंता का विषय यहां यह है कि पाकिस्तान इस घटना में भी पहले की ही तरह साफ-साफ मुकर गया। दुर्भाग्यवश उसे इस मर्तबा भी इस निंदनीय घटना को लेकर कोई पश्चाताप नहीं है, कोई दुख नहीं है। इससे पहले की घटनाओं में भारत कई बार पाकिस्तान को सबूत देता रहा है। लश्कर-ए-तोएबा के सरगना का मामला भी इससे अलग नहीं है, जिसके प्रभाव में सीमा पर कई झड़पें हुईं। आज वह अपने ही घर में नजरबंद है, लेकिन दूसरी तरफ पाकिस्तान इस मामले में उचित जांच के कभी आदेश नहीं दे पाया। हो सकता है कि यह कृत्य कुछ जेहादी ताकतों का हो, जो खुद को इस्लामाबाद की लड़ाकू सेना का हिस्सा मानती रही हैं। हालांकि पाकिस्तान खुद भी तो आतंक की आग में जल रहा है। तालिबानी आतंक हर दिन पाकिस्तान के 20-25 लोगों को मौत की नींद सुलाता रहा है और आज उसका शायद ही कोई हिस्सा बचा हो, जो इन आतंकियों की रेंज से बाहर हो।

ऐसे समय में जबकि पाकिस्तान लगातार घरेलू हिंसा से ग्रस्त है और तालिबान से ग्रस्त ‘फाटा’ क्षेत्र में तालिबान के खिलाफ जंग छेड़े हुए है, यह बात समझ से परे है कि साथ-साथ भारत के खिलाफ भी एक मोर्चा क्यों खोल रखा है। वास्तव में पाकिस्तान ने देश के पूर्वी हिस्से में फैले आतंक से निपटने के लिए भारतीय सीमा पर तैनात सेना को स्थानांतरित किया है। आईएसआई ने सार्वजनिक तौर पर घोषणा कर रखी है कि इसका ध्यान भारत के बजाय अंदरूनी खतरों से निपटने पर है। लिहाजा फिजूल की चिंता का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। नई दिल्ली को समझना होगा कि भौगोलिक दृष्टि से पाकिस्तान बिलकुल इसके साथ लगता है। तालिबान के खिलाफ जंग में पाकिस्तान यदि कमजोर पड़ता है, तो वही तालिबान सीधे तौर पर भारत के लिए भी सिरदर्द बन सकता है और वह यहां भी अस्थिरता का खतरा पैदा कर सकता है। हमारी यहां से स्पष्ट नीति होनी चाहिए कि आज पाकिस्तान जिस आशाविहीन स्थिति में है, इस संकट से उसे कैसे उबारा जाए। ऐसा इसलिए क्योंकि कमजोर पाकिस्तान भारत के निए भी एक मुश्किल पैदा कर सकता है।

सीमा पर किसी भी सूरत में दबाव बढ़ने या सही वक्त पर उचित जवाब देने से केवल हालात बिगड़ेंगे ही। इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए संवाद ही एक बेहतर जरिया हो सकता है और किसी भी कारणवश इस द्विपक्षीय संवाद को कम या बंद नहीं करना चाहिए। संवाद जैसा दूसरा कोई और विकल्प हो ही नहीं सकता। लेकिन मुझे हैरानी होती है देखकर कि पाकिस्तान की तरफ से भी एक नेता का बयान आता है कि सीमा पर कुछेक झड़पों के बावजूद संवाद का सिलसिला जारी रहना चाहिए। भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयम और परिपक्वता दिखाते हुए इस घटना को लेकर कोई भी प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की है। लेकिन सरकार द्वारा वीजा नीति में सुधार से दोनों देशों के बीच व्यक्ति-से-व्यक्ति वाले संबंध प्रभावित होंगे, जबकि दोनों के बीच बेहतर विश्वास के लिए ये जरूरी हैं। प्र्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस बयान के मायने भी समझ में आते हैं कि पाकिस्तान के साथ पहले जैसे व्यापारिक संबंध नहीं रह सकते और इससे पहले सेना को सर्जिकल स्ट्राइक की अनुमति वाले फैसले के भी वांछित परिणाम हासिल हुए। मेरा अनुभव कहता है कि नई दिल्ली यदि अपने कदम वापस ले-ले, तो इस्लामाबाद भी अपने सख्ती वाले स्टैंड को बदल लेगा। हमें सीखने की जरूरत है कि अपने कट्टर पड़ोसी के साथ कैसे निभा सकते हैं। मुझे याद है कि पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर में व्यापार महानिदेशक इस्मायल खान ने क्या कहा था। जब तक सीमा पर झड़पों में कमी नहीं आती, तब तक सीमापारीय व्यापार और यात्राएं स्थगित रहेंगी। यह एक अदूरदर्शी कदम था और इसके कारण दोनों देशों को नुकसान उठाना पड़ा।

दोनों देशों के नागरिक समाज ने अभी तक निराश ही किया है। स्थितियों का निष्पक्ष विश्लेषण करने के बजाय उन्होंने अपने देश के रुख को ही सही साबित किया है। जब सीमा पर विवाद बहुत गहरा जाता है, तब भी नागरिक समाज सत्ता प्रतिष्ठान के साथ चिपका रहता है। यदि दोनों देशों का नागरिक समाज शांति के लिए जोर लगाए और गलत को गलत कहते की हिम्मत जुटाए, तो उनकी बातों को ध्यान से सुना जाएगा। नई दिल्ली का यह आरोप सही हो सकता है कि आतंकवादियों के प्रवेश के लिए पाक सेना संघर्ष विराम का उल्लंघन करती है, लेकिन घाटी में उपस्थित सेना इन आतंकवादियों का सामना करने के लिए सक्षम है। तनाव के कारण कश्मीरी लोग प्रभावित होते हैं और असुरक्षा तथा भय महसूस करते हैं। यासीन मलिक और शब्बीर शाह जैसे लोग इस बात को नहीं महसूस कर पा रहे हैं कि धीरे-धीरे वे अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। हुर्रियत के संदर्भों में भी यही कहा जा सकता है। मेरी इच्छा है कि दोनों देश संघर्षविराम रेखा का सम्मान करें। शिमला समझौते के बाद यह दोनों देशों के बीच सीमारेखा बन गई है। मेरे साथ एक साक्षात्कार में तब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने इसे शांति रेखा कहा था। पिछले तीन दशकों में इसका यदा-कदा ही उल्लंघन हुआ है। सीमा पर गिरी रक्त की बूंद यथास्थिति को प्रभावित करती है। इसके कारण ही, जल्द ही दोनों पक्ष किसी समझौते की जरूरत महसूस करेंगे।

ई-मेलः kuldipnayar09@gmail.com

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