तिरुपति बालाजी

By: May 6th, 2017 12:08 am

aasthaभगवान विष्णु का दर्द देखकर भगवान ब्रह्मा और शिव एक गाय और बछड़े का रूप लेते हैं। चोल देश के राजा उन्हें खरीदते हैं और वेंकट पहाड़ी के खेतों में चरने के लिए भेज देते हैं…

तिरुपति भगवान वेंकटेश्वर सबसे प्रसिद्ध हिंदू देवता हैं। हर साल लाखों लोग भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए तिरुमाला की पहाडि़यों पर भीड़ लगाते हैं। माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर अपनी पत्नी पद्मावती के साथ तिरुमला में निवास करते हैं। भगवान वेंकटेश्वर को बालाजी, श्रीनिवास और गोविंदा के नाम से भी जाना जाता है। भगवान वेंकटेश्वर भारत के सबसे अमीर देवताओं में से एक माने जाते हैं। भगवान वेंकटेश्वर एक बहुत शक्तिशाली देवता के रूप में जाने जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई भक्त कुछ भी सच्चे दिल से मांगता है,तो भगवान उसकी सारी मुरादें पूरी करते हैं। वे लोग जिनकी मुराद भगवान पूरी कर देते हैं, वे अपनी इच्छा अनुसार वहां पर अपने बाल दान करके आते हैं। आप लोगों ने भगवान वेंकटेश्वर के बारे में बहुत सुना है, लेकिन हमें उनकी कहानी के बारे में कुछ भी पता नहीं। आइए जानते हैं भगवान तिरुपति की कहानी।  एक बार ऋषि भृगु, जिनके विषय में कहा जाता है कि उनकी एक आंख उनके पैर पर है, वह सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिए पूरे ब्रह्मांड के चक्कर लगा रहे थे। पहले तो उन्होंने भगावन ब्रह्मा का दरवाजा खटखटाया, लेकिन भगवान ब्रह्मा उस समय विष्णु का नाम जपने में इतना तल्लीन थे कि उन्हें ऋषि भृगु की आवाज नहीं सुनाई दी। ब्रह्मा के इस व्यवहार पर गुस्साए ऋषि भृगु ने ब्रह्मा को श्रापित कर दिया कि इस पृथ्वी पर अब कोई उन्हें नहीं पूजेगा। उसके बाद ऋषि भृगु शिव के पास गए। उस समय भगवान शिव माता पार्वती से बातें करने में इतने डूबे हुए थे कि उन्होंने ऋषि की बात पर ध्यान नहीं दिया। तब गुस्साए ऋषि ने भगवान शिव को श्राप दिया कि अब से केवल उनके लिंग की पूजा होगी। इसके बाद ऋषि भृगु भगवान विष्णु के पास गए और उन्होंने भी उनकी बात को अनसुना कर दिया। इससे गुस्साए ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु के सीने पर जोर का वार किया। यह माना जाता है कि भगवान विष्णु के सीने में माता लक्ष्मी का निवास होता है। ऋषि भृगु को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने ऋषि के पैर पकड़ लिए और उसे आहिस्ता से दबाने लगे। पैर दबाते वक्त विष्णु ने ऋषि के पैरों में लगी आंख को नोच लिया, जिससे ऋषि का अहंकार समाप्त हो गया। ऋषि ने अपनी गलती के लिए माफी मांगी, लेकिन माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से नाराज हो जाती हैं और वैकुंठ छोड़ कर धरती पर चली जाती हैं। प्रभु विष्णु देवी को ढूंढने के लिए पृथ्वी पर वेंकट पहाड़ी पर एक इमली के पेड़ के नीचे शरण लेते हैं। इस दौरान भगवान खाना-पीना और नींद त्याग कर माता लक्ष्मी को वापस बुलाने के लिए ध्यान करने लग गए। भगवान विष्णु का दर्द देखकर भगवान ब्रह्मा और शिव एक गाय और बछड़े का रूप लेते हैं। चोल देश के राजा उन्हें खरीदते हैं और वेंकट पहाड़ी के खेतों में चरने के लिए भेज देते हैं। भगवान विष्णु को ढूंढ कर गाय उन्हें अपना दूध पिलाती है, लेकिन जब रानी को पता चलता है कि गाय दूध नहीं दे रही है तो वह बहुत नाराज हो जाती हैं। तब वह एक आदमी को गाय पर नजर रखने को बोलती हैं। वह देखता है कि गाय अपना सारा दूध पहाड़ी पर गिरा देती है। इससे गुस्साए आदमी ने जब गाय को मारने के लिए कुल्हाड़ी उठाई, तभी वहां पर भगवान विष्णु प्रकट होते हैं। वह पूरी तरह से खून से लथपथ होते हैं, जिसे देख कर वह आदमी डर के मारे मर जाता है। यह देख राजा दौड़ा हुआ उस जगह पर आता है, तब भगवान विष्णु वहां प्रकट होते हैं उसे श्राप देते हैं कि वह अगले जन्म में उनके दास के रूप में एक असुर का रूप धारण करेगा। यह बात सुन कर राजा भगवान से माफी मांगता है। इसलिए भगवान विष्णु उसे माफ  कर देते हैं और वरदान देते हैं कि वह अकसा राजा के रूप में पैदा होगा और अपनी बेटी पद्मावती का हाथ विष्णु के हाथ में देगा। इस प्रकार भगवान विष्णु श्रीनिवास का रूप ले कर वराह में रहने लगे। फिर कई सालों के बाद एक अकसा नामक राजा आया, जिसकी एक बहुत ही खूबसूरत सी बेटी थी, जिसका नाम पद्मावती था। राजा ने दोनों की शादी पक्की कर दी। भगवान विष्णु ने अपनी शादी का खर्चा उठाने के लिए धन के देव कुबेर से पैसे उधार लिए। तब जा कर दोनों की शादी हुई और तब से माता लक्ष्मी फिर से भगवान विष्णु के हृदय में समा गईं।

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