दूसरों के प्रति बनें प्रशंसापूर्ण

By: May 3rd, 2017 12:05 am

सुख, शांति और प्रसन्नता के लिए दूसरों के अस्तित्व को स्वीकार करना जरूरी है। जो दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, उन्हें सहज ही शांति मिलती है

और सुख का एहसास होता है। सफल जीवन के लिए यह गुण होना अनिवार्य है…

हर व्यक्ति शांति, सुख और प्रसन्नता चाहता है और जिन्दगी भर उसी की खोज में लगा रहता है। ऐसी ही चाहत को लेकर एक व्यक्ति एक संत के पास गया और बोला मैंने अनेक स्थानों पर इनको ढूंढा, पर तीनों वस्तुएं कहीं नहीं मिली। आपको अत्यंत शांत, सुखी और प्रसन्न देखकर ही आपके पास आया हूं। संभव है, आप के पास ही वे वस्तुएं उपलब्ध हो जाएं। संत मुस्कराए और एक पुडि़या दी। आगंतुक पुडि़या लेकर चला गया और अपने घर पहुंच कर उसे खोलकर देखा, उसमें लिखा था- अंतःकरण में विवेक और संतोष का भाव रखने से ही स्थायी सुख, शांति और प्रसन्नता मिलती है। सुख, शांति और प्रसन्नता के लिए दूसरों के अस्तित्व को स्वीकार करना जरूरी है। जो दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं, उन्हें सहज ही शांति मिलती है और सुख का एहसास होता है। सफल जीवन के लिए यह गुण होना अनिवार्य है। चाहे बहिर्मुखी हों या अंतर्मुखी, दोनों ही यह हुनर सीख सकते हैं। जो लोग अंतर्मुखी हैं, वे समय के साथ अपना आत्मविश्वास फिर से हासिल कर सकते हैं, वहीं बहिर्मुखी ज्यादा से ज्यादा लोगों का साथ पाकर यह मजबूती हासिल कर सकते हैं। समाज और मनुष्य के विकास के लिए दोनों तरह के लोगों की जरूरत है। हालांकि बहुत से लोग अंतर्मुखी को कमजोर समझ लेते हैं, वहीं बहिर्मुखी को मजबूत शख्सयत वाला। जबकि सच्चाई यह है कि अंतर्मुखी बोलने से पहले उस पर विचार करते हैं, वहीं बहिर्मुखी अकसर कुछ बोल देने के बाद उस पर विचार करते हैं। अगर आप खुद को अंतर्मुखी कहते हैं तो इसका अर्थ यह है कि सोच-समझकर बोलते हैं, अकेले में कुछ क्षण बिताकर खुद को तरोताजा करते हैं। ज्यादा शोर-शराबे वाली गतिविधियों के बजाय शांतिपूर्ण तरीके से होने वाली सामूहिक गतिविधियों या व्यक्तिगत तौर पर किसी से मिलने में आपको ज्यादा मजा आता है, जिसमें संबंधों की प्रगाढ़ता भी होती है। सफल और सार्थक जीवन के लिए अंतर्मुखी और बहिर्मुखी मनोवृत्ति के बीच संतुलन जरूरी है। दोनों की ही जीवन में उपयोगिता है और इन्हीं से जीवन परिपूर्ण और महान बनता है। सूसन केन ने कहा है, ‘अंतर्मुखी होने में कोई बुराई नहीं है। अंतर्मुखी और बहिर्मुखी में फर्क बस इतना है कि इनकी ऊर्जा का स्रोत अलग होता है। आपका संवाद प्रभावी रहे, इसके लिए जरूरी है कि लोगों से बातचीत करते हुए हमेशा अपने विचारों और शब्दों को सही तरीके से रखें। डेनिस सिनोम मानती हैं कि खुद के प्रति जागरूक होना ही जिंदगी को अनोखे ढंग से जीना है। सिर्फ  इतना कह कर कि अब मेरे दिल में किसी के प्रति कुछ भी दुर्भाव नहीं है, आप दूसरों को अपना बना लेते हैं। और ऐसा करके आप उन्हें भी मुक्त करते हैं और खुद को भी। यह एक तरह का व्यायाम है, जैसे हम अपने शरीर को ठीक रखने के लिए व्यायाम करते हैं या सैर पर जाते हैं, उसी तरह से दूसरों के प्रति अपनेपन का भी नियमित अभ्यास करना होता है। जीनियस लोग खुद को ही सब कुछ मान कर अपने में ही मुग्ध नहीं रहते हैं। जितना संभव हो दूसरों की खूबियों पर नजर दौड़ाएं। अलग-अलग क्षेत्र के उन लोगों को पढ़ें, जो प्रतिभाशाली हैं। पहली नजर में ऐसा कुछ नजर न आए तो भी कुछ और समय लगाएं। यकीनन आप पाएंगे कि उनमें ऐसा कुछ जरूर है, जिसने उन्हें जीनियस बनाया। दूसरों की प्रतिभा के बारे में लोगों से बात करें। दूसरों के प्रति प्रशंसापूर्ण व विश्वसनीय बनने की भरपूर कोशिश करें। यकीन मानें, दूसरों के प्रति किया गया यह व्यवहार लौटकर आपके पास ही आएगा

-ललित गर्ग, पटपड़गंज, नई दिल्ली

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