निबंध प्रतियोगिता

By: May 3rd, 2017 12:05 am

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कितना औचित्यपूर्ण है बेरोजगारी भत्ता

प्रथम

अर्पणा राणा

नूरपुर, कांगड़ा

जिस शब्द के साथ रोजगार के स्थान पर बेरोजगारी शब्द जुड़ जाए, तो कदापि औचित्यपूर्ण नहीं समझा जा सकता। इस कदम को बेरोजगारों के साथ किया जाने वाला ‘शालीन व्यंग्य’ कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। बेरोजगारी जैसे कैंसर को मिटाने के लिए इस तरह का कदम उसी तरह से है  जैसे अगर किसी को अल्सर या फोड़ा हो जाए तो उसे पट्टी के पैसे देते जाएं पर न ही दवाई दें और न डाक्टर उपलब्ध हो, जिससे उस अल्सर या फोड़े का पक्का इलाज हो सके। बेरोजगारी भत्ता किसी भी तरह के स्थायी एवं औचित्यपूर्ण परिणाम की तरफ नहीं ले जाता, बल्कि यह सिर्फ एक वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला हथियार है। इससे बेरोजगारों के जीवन में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं हो सकता। एक ओर जहां सरकार प्रतियोगी परीक्षाओं में भाग लेने के लिए बेरोजगारों से भारी भरकम फीस वसूला करती है और दूसरी तरफ बेरोजगारी भत्ते की बात कितनी हास्यास्पद है। अगर सत्यता में बेरोजगारों के लिए कुछ किया जाना है तो वह है-

  1. रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर सृजित किए जाएं।
  2. प्रतियोगी परीक्षाओं में बेरोजगारों के लिए फीस माफी का प्रावधान हो।
  3. बेरोजगारों को अपना स्वयं का रोजगार स्थापित करने के लिए बैंकों से सबसिडी युक्त ऋण सुविधा तथा विभिन्न संबंधित विभागों से सस्ते या कम लागत वाली मशीनरी और उपकरण उपलब्ध करवाए जाएं।
  4. विभिन्न कार्यशालाओं का आयोजन,जिससे प्रदेश के बाहर के रोजगार प्रदाता-प्रदेश के बेरोजगारों का किसी रोजगार युक्त कार्य, नौकरी के लिए चयन कर सकें।

बेरोजगारी भत्ता तो बेरोजगारों को निठल्ला बनाने और सरकार या समाज पर ज्यादा निर्भर बनाने की तरफ ले जाएगा, जिससे वे समाज तथा सरकार पर और बोझ बन जाएंगे। इसलिए अंततः यह कहना ही सही होगा कि बेरोजगारी भत्ते की बजाय सरकार को अन्य स्थायी समाधानों की तरफ कदम उठाना चाहिए। अब यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि जनता सब कुछ समझती है इसलिए इस तरह के वोट बैंक हथकंडे अपनाने से न सरकार का भला होगा और बेरोजगारी भत्ता देने से न बेरोजगारों का भला होगा और न ही समाज में कोई सकारात्मक बदलाव होगा। युवा अपनी पढ़ाई करते समय पता नहीं क्या-क्या सपने देखता है और उम्र के 45 साल इस आस में बिता देता है कि उसे नौकरी मिलेगी, पर सरकार उसे देती है बेरोजगारी भत्ते का झुनझुना। और इस के लिए शर्तें भी ऐसी कि कई युवा तो पूरा ही नहीं कर पाएंगे। सरकार को बेरोजगारी का कोई स्थायी हल निकालना चाहिए।

द्वितीय

रमेश ठाकुर कोटली, मंडी

भारत वर्ष में आधी से ज्यादा आबादी 20 से 35 वर्ष के बीच के युवाओं की है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति युवाओं की शिक्षा व सोच पर निर्भर करती है। शिक्षित, प्रशिक्षित, परिश्रमी व अनुशासित युवा ही देश व प्रदेश के सुनहरे भविष्य की नींव डालता है। इसीलिए युवाओं की क्षमताओं का दोहन उनकी मानसिक कार्यक्षमताओं व दक्षता के हिसाब से करना जरूरी है, न कि माता-पिता की अंधी इच्छाओं के अनुसार। बेरोजगारी का मुख्य कारण है, युवाओं का माता-पिता की इच्छाओं के अनुसार अपनी क्षमताओं व गुणों के ठीक विपरीत डिग्री या डिप्लोमा हासिल कर लेना, वह भी भारी भरकम कंपीटिशन फीस अदा कर। ‘थ्री इंडियट’ फिल्म इसी तथ्य को तो उजागर करती है। उसमें एक दक्ष फोटोग्राफर अपनी इच्छा के विपरीत इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त कर लेता है, मगर अंत में फोटोग्राफर बनकर नाम कमाता है। आज समाज में इसी सोच को विकसित करने की जरूरत है, ताकि हमें डिग्री व डिप्लोमा प्राप्त कर सरकार की तरफ बेरोजगारी जैसे भत्तों के लिए देखना न पड़े। आखिर सरकार को बेरोजगारी भत्ता देने की जरूरत ही क्यों पड़ रही है? इसका जवाब कौन देगा? जिस दिन इस सवाल का जवाब मिल जाएगा, बेरोजगारी भत्ते की जरूरत ही नहीं रहेगी। हिमाचल प्रदेश सरकार ने कई सारे इंजीनियरिंग कालेज, पोलीटेक्नीक कालेज व आईटीआई सरकारी व गैर सरकारी क्षेत्र में खोले हैं, मात्र डिग्री व डिप्लोमा के सिवाय युवाओं को अपने आपको प्रदर्शित करने के लिए कुछ नहीं है। ऐसी स्थिति में उनको कौन रोजगार उपलब्ध करवाएगा। मेरा मानना है कि सरकार को बेरोजगारी भत्तों के बजाय प्रयोगात्मक शिक्षा व स्किल पैदा करने की तरफ ध्यान देना चाहिए, ताकि हमारा युवा, बेरोजगार ही न रहे व प्रदेश की उन्नति में अपना हाथ बंटाए। बेरोजगारी भत्ता हमारे युवाओं को अपंग बना देगा, वह परिश्रम करना बंद कर देगा। युवाओं में ऐसी मानसिकता न पैदा की जाए। ऐसा कर सरकार कब तक युवाओं पर एहसान करेगी? एक साल, दो साल, आखिर कब तक? इसके बाद कहीं न कहीं उसको काम तो ढूढना ही पड़ेगा। क्यों हमारे युवा को इंजीनियरिंग की डिग्री व डिप्लोमा करने के बाद नौकरी नहीं मिल रही है। सरकारें अगर वोट बैंक के लिए अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना बंद कर दे, और चाहे तो एक दिन में सारी व्यवस्था बदल सकती है, युवाओं को गुणात्मक शिक्षा व स्किल ट्रेनिंग देकर स्वावलंबी बना सकती है। मैं उम्मीद करता हूं कि सरकार टेक्निकल एजुकेशन को सशक्त बनाएगी, ताकि युवाओं को बेरोजगारी जैसे भत्तों के लिए सरकार की तरफ देखना न पड़े। और क्या कर्ज में डूबा प्रदेश इस आर्थिक बोझ को सहन कर पाएगा, यह भी तो एक यक्ष प्रश्न है। न्यूजीलैंड की सरकार ने बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान किया था, पर युवाओं ने मुफ्त का पैसा लेने से इनकार कर दिया। हमारे युवाओं की सोच भी ऐसी होनी चाहिए।

तृतीय

नरेश शर्मा

बैहली, सोलन

देश का ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां शिक्षित बेरोजगार युवा वर्ग रोजगार को पाने के लिए दर-दर की ठोकरें नहीं खा रहा है। देश में दिन-प्रतिदिन बेरोजगार युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। हिमाचल की बात की जाए तो यह एक पहाड़ी राज्य है, जिस कारण यहां पर अन्य राज्यों की तरह निजी क्षेत्र या स्वरोजगार के लिए पर्याप्त संसाधन एवं सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। बात चल रही है प्रदेश्ा में शिक्षित बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने की तो ऐसे में सवाल यह उठता है कि प्रदेश के शिक्षित बेरोजगार युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देना कहां तक उचित समझा जाए। यह भी एक समस्या ही है कि बेरोजगार भत्ते की पात्रता को कैसे आंका जाए। बेरोजगार युवाओं के साथ सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि उनके पास बार-बार सरकारी पदों पर भर्ती के लिए आवेदन करने के लिए परीक्षा शुल्क का इंतजाम करना बहुत मुश्किल होता है। यही कारण है कि बेरोजागर होते हुए कई बार बहुत से युवा इन परीक्षाओं के लिए आवेदन से वंचित रह जाते हैं। इसके कारण जो युवा वर्ग अनारक्षित वर्ग या सामान्य वर्ग की श्रेणी में आते हैं, उनकी हालत तो इससे भी ज्यादा खराब है, क्योंकि एक तो इन युवाओं के लिए सरकारी पदों पर आरक्षित वर्गों की तुलना में कम सीटें होती हैं दूसरी ओर इन युवाओं की भर्ती परीक्षा में आवेदन करने के लिए शुल्क भी ज्यादा देना होता है और इनके लिए अंकों की मैरिट भी अन्य वर्गों की तुलना में अधिक होती है। ऐसे में बेरोजगारों को राहत देने के लिए बेरोजगारी भत्ता कुछ हद तक राहत जरूर दे सकता है, परंतु हमें बेरोजगारी भत्ते को ही अंतिम विकल्प के रूप में देखना उचित नहीं होगा। ऐसा कोई भी युवा नहीं होगा, जो अपने साथ बेरोजगार जैसे शब्द को जोड़ना चाहेगा। कोई भी युवा बेरोजगारी भत्ते के स्थान पर रोजगार ही चाहेगा। हमारे प्रदेश का युवा रोजगार की मांग करता है न कि बेरोजगारी भत्ते की। इसके अतिरिक्त बेरोजगार युवाओं को राहत देने के लिए कुछ अन्य विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है जैसे उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं को किसी भी सरकारी पद पर भर्ती के लिए लिया जाने वाला शुल्क समाप्त कर दिया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त आवेदन करने के लिए जो प्रमाण पत्र की प्रतियां संलग्न करने के लिए कहा जाता है, उनमें भी थोड़ा बदलाव करने की जरूरत है। कहने का अभिप्राय है कि रोजगार कार्यालयों से दिया जाने वाला पंजीकरण का प्रमाण पत्र ही आवेदन करने के लिए काफी होना चाहिए, क्योंकि युवा अपने शिक्षा संबंधी सारे दस्तावेज रोजगार कार्यालय में नाम दर्ज करवाते वक्त अंकित कर देता है।  केवल साक्षात्कार  के समय मूल प्रतियां दर्शाना जरूरी किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त युवाओं को ऐसे विकल्प दिए जाएं, जिससे कि वे स्वरोजगार में अपना भविष्य सुरक्षित कर सकें। इस तरह के विकल्प बेरोजगारी भत्ते से कहीं बेहतर होंगे।

इनके प्रयास भी सराहनीय रहे

पूजा सूर्यवंशी

भ्यूली, मंडी

खैरात में धन मिले, तो इनसान आराम परस्त हो जाता है। कुछ कर गुजरने का जज्बा खत्म हो जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यदि बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाएगा, तो वे आराम परस्त हो जाएंगे। उनमें आगे बढ़ने की लालसा खत्म हो जाएगी। वे मेहनत करना छोड़  देंगे और प्रतिस्पर्धा की भावना का नाश हो जाएगा, जो कि देश की समृद्धि और विकास के लिए घातक साबित हो सकता है। और क्या इस एक हजार भत्ते से बेरोजगारों का गुजारा हो पाएगा। उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं को इससे संतुष्ट नहीं किया जा सकता। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए लाखों रुपए खर्च होते हैं। ऐसे में मात्र 1000 रुपए बेरोजगारी भत्ता देना तो सरकार द्वारा छलावा मात्र ही दिखता है…

रवि कुमार

भलोली, चंबा

बजट में बेरोजगारों को 1000 रुपए मासिक बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान किया गया है। प्रदेश में बेरोजगार युवाओं का एक आधिकारिक आंकड़ा लगभग आठ लाख से अधिक पहुंच चुका है। अब प्रश्न यह उठता है कि कर्ज में डूबी सरकार इस घोषणा को किस प्रकार धरातल पर लाएगी। प्रदेश में बेरोजगारों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इन सभी को बेरोजगारी भत्ते के मापदंडों के अधीन लाना भी एक कड़ी चुनौती रहेगी। बेरोजगारी भत्ते पर नेता अपनी राजनितिक रोटियां सेंकने में तो कामयाब रहे हैं, लेकिन क्या बेरोजगारी भत्ता बेरोजगारी से निपटने का साधन है। एक हज़ार रुपए बेरोजगारी भत्ते की घोषणा बेरोजगारों के लिए सौगात नहीं हो सकती है…

निशा देवी

कृष्णानगर,हमीरपुर

प्रश्न यह उठता है कि सरकार का यह कदम बेरोजगारों के हक में कितना औचित्यपूर्ण है? क्या यह भत्ता देना  समस्या का उचित हल होगा?  अगर मोटे तौर पर देखा जाए तो यह  सरकार का एक  प्रशंसनीय कदम लगता है। यह बेरोजगारों के  जख्मों पर  थोड़ा मरहम  छिड़कने का  कार्य तो  अवश्य करेगा। परन्तु क्या इससे  लाखों बेरोजगार युवाओं को  जीवन में  देखे गए सपने  पूरे हो पांएगे? बेरोजगारी के द्वारा  युवाओं को मिले जख्म क्या  इस भत्ते से ठीक हो पाएंगे?  यह एक  चिन्तन का विषय है। अब विचारणीय प्रश्न यह भी है कि क्या हमारा प्रदेश  इस अतिरिक्त आर्थिक बोझ को झेलने में सक्षम है? हमारा प्रदेश एक पहाड़ी प्रदेश है जिसे देश के कुछ अन्य प्रदेशों की ही भांति विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त है…

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