नैतिकता की शिक्षा

By: May 8th, 2017 12:05 am

(वर्षा शर्मा, पालमपुर, कांगड़ा)

निर्भया मामले में फैसला सुनाने वाले न्यायाधीशों का एक सुझाव यह भी है कि शिक्षा पाठ्यक्रमों में लैंगिक समानता का विषय भी जोड़ा जाए। यह एक सराहनीय व अनुकरणीय सुझाव है। अगर उचित विषय वस्तु तैयार करके इसे स्कूलों में पढ़ाया जाए, तो हो सकता है कि मानसिकता को विकृत होने से शुरुआती चरण में ही कामयाबी हासिल की जा सके। अगर ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर लैंगिक भेदभाव के कारण होने वाले अपराध कुछ कम हों, लेकिन इसके साथ-साथ विशेषकर हिमाचली संदर्भ में एक और सवाल भी उठता है कि इससे जुड़े नैतिक शिक्षा या स्वतंत्रता संग्राम के विषय को स्कूलों में क्यों गंभीरता से नहीं पढ़ाया जा रहा? क्यों हमने इसे महज एक औपचारिकता मान लिया है, जबकि सभ्य-संस्कारित समाज के निर्माण में इन दोनों ही विषयों की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। नैतिक शिक्षा विषय जहां सीधे-सीधे संस्कारों से जुड़ा है, वहीं स्वतंत्रता संग्राम में वर्णित राष्ट्रीय आदर्शों का जीवन हमारी युवा पीढ़ी को सही दिशा दे सकता है। इसके बावजूद हमारी शिक्षा क्यों उन्हीं विषयों पर केंद्रित रही है, जिसके अंक मार्कशीट में जुड़ते हैं। अगर इन विषयों को कक्षा में गंभीरता से पढ़ाने के साथ-साथ परिवार भी बच्चों को नैतिकता व मानव मूल्यों की सीख देगा, तभी एक सभ्य समाज का निर्माण हो पाएगा, तभी बढ़ते अपराधों पर अंकुश लगाया जा सकेगा, तभी समाज रहने लायक बच पाएगा।

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