पत्थरबाज किस देश के !

By: May 9th, 2017 12:05 am

कश्मीरी नेता शबनम लोन का कहना है कि पत्थरबाज भारत के साथ रहना ही नहीं चाहते। वे इनसाफ-नाइनसाफी की लड़ाई लड़ रहे हैं। आखिर कश्मीर के पत्थरबाज लड़के-लड़कियां किस देश के हैं? जहां उनका जन्म हुआ, पालन-पोषण हुआ और बड़े होकर अब वे रहते हैं, वह जमीन भारत की है। कश्मीर भारत का है। कश्मीर के स्कूल-कालेज, होटल और तमाम संसाधन भारत के हैं। पत्थरबाज बच्चों को अभी तक जो ऐशो आराम मिला है, वह भारत ने मुहैया कराया है। कश्मीरियों की चुनी सरकार भारत से ही संबद्ध है। कश्मीर के गवर्नर भारतीय राष्ट्रपति के प्रतिनिधि हैं। कश्मीर भी भारत सरकार के वित्त, रक्षा और विदेश, संचार मंत्रालयों के ही तहत संचालित है। कश्मीर संवैधानिक तौर पर भारतीय गणराज्य का ही अंतरंग और अविभाज्य हिस्सा है। कश्मीर के नागरिक भारत के ही नागरिक हैं। सबसे ज्यादा पैसा, संसाधन और सुरक्षा कश्मीर को ही मिली है। उसका सबसे अलग अनुच्छेद-370 का दर्जा आज भी बरकरार है। इसके बावजूद कश्मीरियों का एक तबका या अलगाववादी भारत के साथ रहना नहीं चाहते हैं, तो वे आजाद हैं और पाकिस्तान जा सकते हैं। लेकिन सवाल है कि क्या पाकिस्तान उन्हें अपना नागरिक बनाने को तैयार है? कश्मीर में तो वे पत्थरबाज महज ‘एक्टर’ हैं, कठपुतली हैं। उनकी लगाम तो रावलपिंडी के हाथों में है। रावलपिंडी पाकिस्तान की हत्यारी फौज का मुख्यालय है। फौज कश्मीर में अस्थिरता, अराजकता और आतंकवाद के मद्देनजर पत्थरबाजों को इस्तेमाल कर रही है। यदि वे पत्थरबाज कश्मीर छोड़ेंगे, तो रावलपिंडी के लिए बेमानी होंगे। कश्मीर पत्थरबाजों का घर भी है। जिन बच्चों की पीठ और कंधों पर स्कूली बैग लटके हैं, उनके हाथों में पत्थर के बजाय किताब होनी चाहिए, लेकिन यह सबक कौन पढ़ाएगा? शबनम लोन भारत-विरोधी है और भारत की ही सुप्रीम कोर्ट में वकील के तौर पर कार्यरत है, पैसा कमा रही हैं, लेकिन मीडिया में भारत के खिलाफ जहर उगलती रही हैं। यह उन्हीं का कथन है कि पत्थरबाज भारत के साथ रहना नहीं चाहते। इसी तरह निर्दलीय विधायक इंजीनियर राशिद हैं। वह भी घोर भारत विरोधी हैं। भारत के संविधान के तहत, उसकी रक्षा की शपथ लेते हुए वह कश्मीर विधानसभा के सदस्य बने थे, लेकिन आज उस संविधान को ही खारिज कर रहे हैं। शबनम को सुप्रीम कोर्ट से बेदखल क्यों नहीं किया जाता? इंजीनियर की विधायिका बर्खास्त क्यों नहीं की जा सकती? वे तमाम लोग भारत के गद्दार हैं और उसी की पीठ में छुरा घोंप रहे हैं। इंजीनियर दिल्ली प्रेस क्लब में अपनी बात कहने आए थे, लेकिन कुछ राष्ट्रवादी तत्त्वों ने पहले ही उनका मुंह काला कर दिया। काला मुंह लेकर ही इंजीनियर प्रधानमंत्री मोदी के दरबार में जाना चाहते थे, लेकिन प्रधानमंत्री दफ्तर ने मिलने से इनकार कर दिया। तो फिर कश्मीर में ऐसी जमात क्यों पाले है भारत सरकार? अभी सेना, सीआरपीएफ और स्थानीय पुलिस ने मिलकर इतिहास का सबसे बड़ा तलाशी आपरेशन किया। शोपियां, पुलवामा, कुलगाम आदि के 20-30 गांवों की घेराबंदी कर करीब 3000 जवानों ने घर-घर की तलाशी लेने की कोशिश की। उन्हें आशंका थी कि जिन आतंकियों के वीडियो बीते दिनों वायरल हुए थे, वे इन्हीं इलाकों में छिपे हो सकते हैं। कई गांवों में लोगों ने सैनिकों और पुलिस पर पथराव किया। वे आतंकियों की ढाल बने। संभावित 30 आतंकियों में से कितने पकड़े गए, इसका फिलहाल खुलासा नहीं है, लेकिन पत्थरबाजों ने फिर देश विरोधी हरकत की है। खबरें हैं कि करीब 150 आतंकी घाटी में घुसपैठ करने की कोशिश में हैं और करीब 100 युवा आतंकियों में शामिल हुए हैं। चिंता और सरोकार का तथ्य है कि दक्षिण कश्मीर में शोपियां, कुलगाम, पुलवामा आदि के इलाके पाकपरस्त आतंकवाद के नए गढ़ बनते जा रहे हैं। सिर्फ यही नहीं, अब अलगाववादी नेता शब्बीर शाह को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने 70 लाख रुपए भिजवाए हैं, यह मामला बेनकाब हुआ है। पैसे अहमद सागर ने पहुंचाए हैं, जो भारत में पाक उच्चायुक्त अब्दुल बासित का करीबी बताया जाता है। लिहाजा बासित की संलिप्तता भी संभव है। सवाल है कि अभी तक स्थानीय प्रशासन ने शब्बीर को गिरफ्तार क्यों नहीं किया है? कमोबेश उसके खिलाफ केस तो दर्ज किया जाता। जाहिर है कि यह पैसा कश्मीर में पत्थरबाजों को पालने-पोसने और हालात को अस्थिर बनाए रखने के मद्देनजर अलगाववादी नेता को भेजा गया है। यह प्रवृत्ति पहले भी जारी रही है, लेकिन पाकिस्तान है कि मानता ही नहीं! हमारा मानना है कि अब भारत के लोगों को कमोबेश दो-चार महीने के लिए कश्मीर का ‘आर्थिक बहिष्कार’ शुरू कर देना चाहिए। अलगाववादियों के तंबू उखड़ने लगेंगे, नतीजतन पत्थरबाज भी खत्म होने लगेंगे।

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