मोदी जी ! पाक को सबक सिखाएं

By: May 17th, 2017 12:05 am

मोदी सरकार के तीन साला आकलन के संदर्भ में पाकिस्तान और कश्मीर बेहद महत्त्वपूर्ण, गंभीर और संवेदनशील मुद्दे हैं। पाकिस्तान को किसी भी मोर्चे पर काबू नहीं किया जा सका है। चीन के साथ उनकी सांठगांठ और आर्थिक गलियारे का निर्माण ऐसे मुद्दे हैं कि भारत के राष्ट्रीय हित और संप्रभुता तक प्रभावित हुए हैं। नतीजतन भारत को चीन के ‘वन बेल्ट, वन रोड’ सम्मेलन का बहिष्कार करना पड़ा, जबकि उसमें 29 देशों के राष्ट्र और सरकार प्रमुखों ने शिरकत की। चीन ने उसे ‘सदी की परियोजना’ करार देते हुए 100 अरब युआन ( करीब 14.5 अरब डॉलर) देने की घोषणा की है। पाकिस्तान न तो आतंकवाद के मोर्चे पर बाज आया है और न ही कश्मीर का राग अलापना उसने बंद किया है। कश्मीर जल रहा है, उबल रहा है। कश्मीर के बच्चे ही राज्य की हुकूमत और सेना-सुरक्षा बलों के खिलाफ बेहद हिंसक बन चुके हैं। कारण कुछ भी हो, रणनीति में दोष कुछ भी हो, लेकिन अंततः जिम्मेदारी प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार की है। लेकिन फिलहाल मामला कुलभूषण जाधव का है, जिसे पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने ‘जासूस’ करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई है। मामले की सुनवाई नीदरलैंड की राजधानी हेग स्थित ‘इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस’ (आईसीजे) में सोमवार को ही संपन्न हो चुकी है। अब तो फैसला आना है। पाकिस्तान पर मानवाधिकारों, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और संधियों के उल्लंघन का गंभीर आरोप भारत ने लगाया है। हालांकि 11 जजों की न्यायिक पीठ ने पाकिस्तान को जोर का झटका दिया है, जब अदालत ने उसके फर्जी वीडियो को दिखाने या पीठ द्वारा देखने से ही इनकार कर दिया है। जाधव के कथित कबूलनामे का 358 सेकंड के वीडियो में 102 कट्स बताए जाते हैं। पाकिस्तान के अफसर और राजनयिक उस फर्जी वीडियो के जरिए, भारत के खिलाफ, दुष्प्रचार करने की चाल तय करके आए थे, लेकिन आईसीजे ने उनका वह हथियार भोथरा कर दिया, क्योंकि पाकिस्तान के आरोप जाधव के कथित इकबालिया बयान पर ही आश्रित हैं। कथित कबूलनामे के अलावा, पाकिस्तान के पास कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं है, जो जाधव को जासूस साबित कर सके। फिर भी भारतीय पक्ष के वकील हरीश साल्वे ने अंतरराष्ट्रीय अदालत के सामने यह आशंका जताई कि आईसीजे का फैसला आने से पहले ही पाकिस्तान जाधव को फांसी पर लटका सकता है। लिहाजा आईसीजे हस्तक्षेप करे और फांसी की सजा रद्द करे। जवाब में पाकिस्तानी पक्ष को अंतरराष्ट्रीय अदालत को आश्वस्त करना पड़ा कि पाकिस्तान फांसी देने की जल्दी में नहीं है। भारत के एक सवाल के जवाब में पाकिस्तान के वकील जाधव की सेहत और मनःस्थिति का कोई खुलासा नहीं कर सके। पाकिस्तान ने यह भी खोखला दावा किया कि जाधव केस पर वियना संधि लागू ही नहीं होती और जाधव राजनयिक पहुंच के योग्य नहीं था। भारत और पाकिस्तान 1963 की वियना संधि के हस्ताक्षरी हैं, लिहाजा दोनों इस अंतरराष्ट्रीय संधि से बंधे हैं। बहरहाल आईसीजे का जो भी फैसला आएगा, उसमें प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार की कोई भूमिका नहीं हो सकती। यदि फैसला भारत के खिलाफ आता है, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जाने का विकल्प भारत के पास होगा। वह एक लंबी प्रक्रिया है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का बुनियादी सरोकार यह है कि जो 300 से अधिक ‘जाधव’ पाकिस्तान की जेलों में, विभिन्न आरोपों के मद्देनजर, बंद हैं। सजा काटने के बावजूद वहीं सड़ रहे हैं, यंत्रणाएं झेल रहे हैं या खुदकुशी करने को विवश हैं। प्रधानमंत्री मोदी राजनयिक स्तर पर या पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाकर उन्हें आजाद कराएं। कश्मीर की अराजकता का खलनायक भी पाकिस्तान है। यदि पीओके पर एक सर्जिकल स्ट्राइक से हालात सामान्य नहीं हो सके, तो भारत सरकार को सेना के साथ मिलकर ऐसा आपरेशन तैयार करना चाहिए कि पाक अधिकृत कश्मीर पर भारत सरकार का कब्जा हो सके। बलूचिस्तान में भी भारत सरकार अब निर्णायक भूमिका अदा करे। यह बेहद मुश्किल और खतरनाक आपरेशन साबित हो सकता है, लेकिन प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी ने जो दावे और वादे किए थे, 56 इंच की छाती ठोंक कर दिखाई थी, वे सभी खोखले साबित होंगे। कश्मीर में अमन-चैन के लिए मोदी सरकार को पाकिस्तान को ठोंकना ही पड़ेगा, ताकि वह हमेशा के लिए सबक सीख सके।

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