रक्षात्मक मुद्रा से बाहर निकलिए

By: May 6th, 2017 12:05 am

( स्वास्तिक ठाकुर, पांगी, चंबा )

बचाव वाली मुद्रा में क्या कभी हम कश्मीर मसले को सुलझा पाएंगे? पाकिस्तान को जवाब देने के लिए हम हर बार पाकिस्तान की किसी दरिंदगी का इंतजार क्यों करते हैं? इस रक्षात्मक दृष्टिकोण के साथ क्या हम पाकिस्तान के दुस्साहस को नहीं बढ़ा रहे। बेशक एनडीए सरकार में पाकिस्तान के प्रति हमारी मानसिकता में कुछ बदलाव आया है और इस दौरान हमने सर्जिकल स्ट्राइक सरीखे कुछ साहसिक कदम उठाए। हमने सिंधु जल समझौते में बदलाव की भी एक कवायद छेड़ी, लेकिन पाकिस्तान की इच्छा अभी अधूरी है। उसकी यही चाह है कि इस तरह की हर हरकत का उसे सर्जिकल स्ट्राइक जैसा करारा जवाब दिया जाए। आज पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान, भारत के खिलाफ आतंकवाद को एक नीति के तहत इस्तेमाल कर रहा है। इसके बावजूद अमरीका, रूस, चीन सरीखी ताकतें उस पर कोई कार्रवाई नहीं कर रही हैं, बल्कि अपने तुच्छ स्वार्थों की पूर्ति हेतु उसे परोक्ष रूप से संरक्षण दे रही हैं। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय दबाव के सहारे सुधारा जा सकता है, ऐसी उम्मीद करना ही बेमानी होगी। पाकिस्तान को भी अब लगने लगा है कि दुनिया की ये बड़ी-बड़ी ताकतें उसका कुछ नहीं बिगाड़ेंगी, इसलिए उसका हौसला भी बुलंद है। ऐसे में हमें पाक नीति में बदलाव करना होगा। बड़ी-बड़ी ताकतों से सहायता के बजाय हमें अपने बलबूते इस समस्या से निपटना होगा। इस बीच अगर इजरायल जैसा देश इमदाद के लिए आगे आता है, तो उस मदद को लेने से भी संकोच नहीं करना चाहिए। अब भारत को रक्षात्मक मुद्रा छोड़कर आक्रामक रुख अपनाना होगा और इस बीच युद्ध के हालात बनते हैं तो उससे भी कतराना नहीं चाहिए। जम्मू-कश्मीर में अब शांति होनी ही चाहिए।

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