शब्द वृत्ति

By: May 15th, 2017 12:01 am

( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

मुरझाए क्यों आप ?

माननीय यह क्या हुआ, मुरझाए क्यों आप,

मुंह पर पट्टी, खांसते, हाथ रहे क्यांे कांप।

हाथ रहे क्यों कांप, हाय यह क्या कर डाला,

धुआं उठ रहा झूठ-मूठ, या है सच में घोटला।

करोड़ की घूस पर, ईवीएम से मार,

आरोपों को भेदती, कद्दू की तलवार।

नौटंकी दिखाई सदन में, लगाया मजमा खूब,

अब भी जो न संभले, लुटिया जाएगी डूब।

कहां गई वह तपस्या, कहां गया वह त्याग,

मिश्रा जी, जोगिंद्र पर, उगल रहे क्यों आग।

एक नया पंगा पड़ा, साढू लिए लपेट,

पल में होना चाहते हैं, वो भी धन्ना सेठ।

करनी-कथनी में बनी, गहरी खाई आज,

बेच खाई चौक पर, हया, शर्म और लाज।

स्वप्न अन्ना के कुचल, कर दिए चकनाचूर, मधुमक्खी, मक्खी समझ, फेंकी कोसों दूर।

चेला शक्कर बन गया, गुरु को मारी लात,

गुरु को फेंका भाड़ में, दिखा रहा औकात।

कितनी नौटंकियां बाकी हैं, है कोई हिसाब,

जनता ने जब पूछ लिया, किस मुंह दोगे जवाब।

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