सैनिकों की सहूलियत ही नहीं, श्रम भी देखें

By: May 13th, 2017 12:02 am

अनुज कुमार आचार्य लेखक, बैजनाथ से हैं

कश्मीर घाटी में पीठ पीछे हमला करने वाले आतंकवादियों से निपटने से कहीं ज्यादा खतरा आपके मुंह पर भद्दी-भद्दी गालियां निकालते, पत्थर फेंकते कश्मीरी लोगों से है, जहां सैनिकों के हाथों में बंदूकें होते हुए भी उन्हें धैर्य की पराकाष्ठा को लांघकर अपना मानसिक संतुलन बनाए रखना पड़ता है और यह कमाल केवल भारतीय सैनिक ही कर दिखाते हैं…

इन दिनों सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा देशवासियों के नाम संदेश वाला एक वीडियो संदेश वायरल होते हुए देखा जा सकता है, जिसमें वह पश्चिमी देशों और अमरीका में सार्वजनिक स्थलों यथा-रेलवे स्टेशन अथवा एयरपोर्ट पर गुजरने वाले वहां के सैनिकों के सम्मान में नागरिकों को करतल ध्वनि से उनकी हौसला अफजाई करते हुए और उनका अभिनंदन करते दिखाई देने की बात करते हुए भारतीय नागरिकों से भी इसी तर्ज पर अपनी सशस्त्र सेनाओं के जवानों का स्वागत करने की अपील करते नजर आते हैं। इसी के साथ सोशल मीडिया में एक तस्वीर और देखने को मिल रही है जिसमें संभवतः मैट्रो ट्रेन में एक भारतीय सैनिक को ट्रेन के फ्लोर पर अपने ट्रंक पर बैठकर सोते हुए सफर करते हुए दिखाया गया है जबकि उसके अगल-बगल में लोग आराम से कुर्सियों पर बैठे बतियाते हुए नजर आ रहे हैं।  इसी प्रकार मैं जब भी अपने लेख में सेना अथवा भूतपूर्व सैनिकों के प्रति अपना समर्थन व्यक्त करते हुए कोई लेख लिखता हूं तो जरूर कोई न कोई सज्जन हमारे सैनिकों और भूतपूर्व सैनिकों को मिलने वाली उनकी पेंशन, कैंंटीन अथवा मेडिकल सुविधाओं के प्रति अपना रोष व्यक्त करते हुए मिल जाते हैं जबकि सम्मान देने की बात करना तो दूर की कौड़ी है। मेरी समझ में यह नहीं आता है कि आखिर क्यों हमारे कुछ लोग अपनी सेनाओं को मिलने वाली सुविधाओं का स्वागत नहीं करते हैं? शायद उन्हें अंदाजा नहीं है कि किन दुरूह और कठिन हालात में चुनौतियों भरे माहौल में हमारे सैनिक और केंद्रीय अर्द्ध सैनिक बलों के जवान अपनी ड्यूटी को निभाते हैं। प्रायः टीवी चैनल्स पर बेहद तकलीफदेह परिस्थितियों में हमारे सैनिकों को सतत कर्त्तव्यपालन के लिए मुस्तैदी से डटे हुए दिखाया भी जाता है। अमूमन हर चौथे पांचवें दिन हमारे सैनिकों को आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ों के सीधे प्रसारण में पत्थरबाजों द्वारा पैदा की गई जोखिम वाली हालातों में भी मोर्चे पर डटे हुए देखा जा सकता है। होली हो या दिवाली अथवा कोई अन्य त्योहार, और तो और अपने बच्चों का जन्मदिन तक न मना पाने से वंचित रहकर भी हमारे इन देशभक्त सैनिकों का मनोबल सातवें आसमान पर बना रहता है लेकिन वे कभी शिकायत नहीं करते हैं। महीनों तक लगातार 24 घंटों की नौकरी में डटे रहकर भी बुलंद हौसलों के साथ हमारे ये सेनानी सीमा की चौकसी और रखवाली करते हैं और यही वजह भी है कि हम लोग देश के भीतर अपने परिवारों के साथ आनंद पूर्वक चैन की नींद सोते हैं।

बेहद दुख और पीड़ा होती है जब हमारे कुछ मित्रों को सैनिकों एवं पूर्व सैनिकों को मिलने वाली सुविधाएं तो दिखाई पड़ती हैं, लेकिन सैनिकों द्वारा उठाई जाने वाली मानसिक पीड़ा एवं तकलीफें नहीं दिखाई देती हैं। एक नया नवेला शादीशुदा जवान भी महीनों छुट्टी न मिल पाने के कारण  अपनी प्रियतमा के मिलन से वंचित रहकर विरह की आग में स्वयं को जला लेता है लेकिन कभी उसके चेहरे पर शिकन तक नहीं आती है। मुझे कई ऐसे भी भूतपूर्व सैनिक मिलते हैं जो कान पकड़कर कहते हैं की माफ कीजिए हम अपने बच्चों को फौज में नहीं भेजेंगे। स्पष्ट है कि सैन्य जीवन फूलों की शैय्या पर सोने जैसा तो कतई नहीं है। क्या आपने किन्हीं बडे़ नेता या मंत्री के बेटों को फौज में नौकरी करते सुना है? सवाल ही नहीं उठता क्योंकि उनके लिए कम पढ़ा-लिखा होकर भी नेता अथवा मंत्री बनना आसान है लेकिन फौज में सिपाही भर्ती होना बेहद मुश्किल है। उच्चाधिकारियों एवं बडे़ उद्योगपतियों तथा व्यापारियों की भी यही कहानी है और न ही उनकी सेहत पर कोई असर पड़ता है। तो फिर टीका-टिप्पणी में कौन व्यस्त है हम और आप। पिछले 35 वर्षों से पंजाब, जम्मू- कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में जारी आतंकवादी झड़पों में मरने वाले सैनिकों का आंकड़ा कहीं ज्यादा है। यदि हम वैश्विक तौर पर रक्षा खर्च की तुलना करें तो अमरीका का रक्षा बजट, भारत के रक्षा बजट से 12 गुना ज्यादा है और लगभग 6 खरब 22 अरब डालर है। इस वित्तीय वर्ष में भारत का रक्षा बजट लगभग 53 अरब डालर प्रस्तावित है और हम अमरीका, चीन, ब्रिटेन के बाद चौथे नंबर पर हैं। रक्षा पर ज्यादा बजट खर्चने वाले शीर्ष देशों में संभवतः भारत को सर्वाधिक चुनौती भरे माहौल में अपनी सीमाओं की रक्षा का दायित्व निभाना पड़ रहा है और पाकिस्तान एवं चीन जैसे परंपरागत दुश्मन देशों से निरंतर खतरा बना हुआ है। इन हालात और आतंकवाद की भीषण चुनौती के चलते भारतीय सेनाओं को दोहरी भूमिका निभानी पड़ रही है। हमारे सैनिकों पर भी दबाव बढ़ा हुआ है, जिस वजह सैनिकों में मानसिक अवसाद बढ़ने की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी गई है। कश्मीर घाटी में पीठ पीछे हमला करने वाले आतंकवादियों से निपटने से कहीं ज्यादा खतरा आपके मंुह पर भद्दी-भद्दी गालियां निकालते, पत्थर फेंकते कश्मीरी लोगों से है जहां सैनिकों के हाथों में बंदूकें होते हुए भी उन्हें धैर्य की पराकाष्ठा को लांघकर अपना मानसिक संतुलन बनाए रखना पड़ता है और यह कमाल केवल भारतीय सैनिक ही कर दिखाते हैं। आज भारतवर्ष को भी इसी तरह के ज्यादा से ज्यादा धैर्यवान, ऊर्जावान, सकारात्मक सोच वाले और अनुशासित तरीके से जीवन जीने वाले युवाओं की जरूरत है जो राष्ट्र निर्माण एवं विकास में अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकें।

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