हिमाचल में तेजी से पिघल रहे ग्लेश्यिर
जैव विविधता पर कार्यशाला में खुलासा, चार दशकों में 70 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र घटा
शिमला — हिमाचल में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। बीते चार दशकों में यहां करीब 70 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ग्लेशियर पिघल गए हैं। शिमला में जैव विविधता एक्ट को लेकर मीडिया के लिए आयोजित कार्यशाला में यह जानकारी दी गई। कार्यशाला में हिमाचल जैव विविधता बोर्ड के संयुक्त सदस्य सचिव कुनाल सत्यार्थी ने कहा कि राज्य में ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। बीते चार दशकों में हिमाचल में हालांकि ग्लेशियरों की संख्या 225 से बढ़कर 248 हुई है, लेकिन इस दौरान 70 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र ग्लेशियर का कम हुआ है। उन्होंने कहा कि राज्य में विभिन्न बीमारियों के उपचार के लिए स्थानीय लोगों व वैद्यों द्वारा लगभग 500 औषधीय पौधों का प्रयोग किया जाता है। अकेले बागबानी क्षेत्र राज्य में सालान 4000 करोड़ रुपए की आर्थिकी सृजित करता है। इस मौके पर अतिरिक्त मुख्य सचिव तरुण कपूर ने कहा कि जैव विविधता अधिनियम में ग्राम पंचायत स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियों का गठन करने और जैव विविधता रजिस्टर तैयार करने का प्रावधान है। इसका उद्देश्य स्थानीय निकायों को जैव संसाधनों का पता लगाने तथा उनके लाभ पर नियंत्रण करना है। उन्होंने राज्य जैव विविधता बोर्ड ने राज्य में तीन जैव प्रणालियों सहित 425 जैव विविधता प्रबंधन समितियों का गठन किया है। उन्होंने कहा कि आर्थिक तौर पर मूल्यवान लगभग 350 जैव संसाधनों का पता लगाया गया है। राज्य में प्रति वर्ष करोड़ों रुपए के 2500 मीट्रिक टन गैर लकड़ी वन उत्पादों का व्यापार होता है। बोर्ड के प्रधान वैज्ञानिक अधिकारी कामराज कायस्थ तथा राज्य परियोजना समन्वयक डा. एमएल ठाकुर ने भी अधिनियम के प्रावधानों तथा बोर्ड के कार्यकलापों पर विस्तृत प्रस्तुतियां दी। सूचना एवं जन संपर्क विभाग के संयुक्त निदेशक यादविंद्र सिंह चौहान तथा प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडियों के सदस्यों व वरिष्ठ विभागीय अधिकारियों ने भाग लिया।
कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर
पर्यावरण, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की निदेशक अर्चना शर्मा ने कहा कि भारत वर्ष में जानवरों व पौधों की पांच से दस मिलियन प्रजातियां विद्यमान हैं, जिनमें से 1.70 मीलियन पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं, जबकि दो मिलियन अगले दशक में विलुप्त होने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि बोर्ड द्वारा खतरे में प्रजातियों की सूची तैयार की जा रहा है।
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