अमानवीयता का शिकार बने अयूब पंडित

By: Jun 24th, 2017 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री क्या श्रीनगर में अयूब पंडित को मध्ययुगीन बर्बरता से मारने का यह काम कश्मीर घाटी में विदेशों से संचालित आतंकवादियों की बढ़ती ताकत का प्रतीक है या फिर यह उनकी निराशा और अवसाद से उपजा घिनौना कृत्य है? बहुत से लोग इसका यही निष्कर्ष निकालेंगे कि कश्मीर घाटी में सरकार का सत्ता का अवसान हो रहा है और जनमानस पर आतंकियों का प्रभाव और आतंक दोनों बढ़ रहे हैं । लेकिन यदि यह सचमुच होता तो सरहद पार से संचालित आतंकियों को कश्मीरियों को मारने की जरूरत न पड़ती। आतंकियों का दावा है कि वे कश्मीरियों की आजादी और सुख के लिए लड़ रहे हैं….

कश्मीर घाटी के श्रीनगर में  जामिया मस्जिद के सामने मुसलमानों की एक भीड़ ने पुलिस के उप कप्तान मोहम्मद अयूब पंडित की पत्थर मार-मार कर हत्या दी। उन्हें मारने से पहले उनको अलफ नंगा किया गया। नौहट्टा में जहां उन्हें मारा गया , उससे कुछ दूरी पर ही उनका घर था। उन्हें श्रीनगर की जामा मस्जिद के बाहर मारा गया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक जब भीड़ इस अमानवीय कारनामे को अंजाम दे रही थी, तब मस्जिद के अंदर मस्जिद के मीरवाइज भी मौजूद थे। यह भी कहा जा रहा है कि यह नृशंस करनामा बहुत सुनियोजित तरीके से किसी के इशारे पर किया गया। इस घटना की निंदा से कश्मीरी बहुत आक्रोशित हैं। इस आक्रोश को देखते हुए प्रदेश की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी इस घटना की कड़े शब्दों में भर्त्सना की और लोगों को आगाह किया कि वे सुरक्षाबलों के संयम की परीक्षा न लें। हैरत की बात यह है कि देश में होने वाली हर छोटी बड़ी घटना पर ‘मॉब लिंचिंग’ का शोर मचाने वाले मीडिया के एक वर्ग ने इस घटना पर चुप्पी साध ली है। कुछ लोग तो इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए इस हत्या को यह कहकर जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं कि कुछ आक्रोशित कश्मीरियों ने इस हत्या को अंजाम दिया है। मीरवाइज पर अंगुली उठते देख वृंदा करात भी मैदान में उतर आईं और यह फतवा जारी किया कि मीरवाइज मासूम और निर्दोष हैं, उन पर अंगुली नहीं उठाई जानी चाहिए। कश्मीर घाटी में प्रत्येक छोटी- बड़ी मस्जिद का एक वाईज होता है। सीधी साधी भाषा में कहा जाए तो यह मस्जिद का इंचार्ज होता है और मस्जिद में नमाज इत्यादि पढ़ाने के अलावा हम मजहबों को उपदेश भी देता है। श्रीनगर की यह मस्जिद जामा मस्जिद अर्थात बहुत बड़ी मस्जिद है , इसलिए इनके वाईज भी साधारण वाईज न होकर मीरवाइज कहलाते हैं।

इस्लामी देशों के आक्रमणों के बाद जब कश्मीर घाटी में मस्जिदें बननी शुरू हुईं तो जाहिर है उनके मीरवाइज भी बाहर से आने वाले अरबों, तुर्कों,पठानों और मध्य एशियाई कबीलों के मौलवी बनाए गए। इन मीरवाइजों के माध्यम से कश्मीरियों को नियंत्रण में रखा जा सके, ऐसे प्रयास इस्लामी विजयों के शुरू से ही किए गए। लेकिन कश्मीरियों ने इसका जितना संभव हो सका, अपने तरीके से ही इसका विरोध किया। उन्होंने अपने जियारत खाने खोल लिए। कश्मीरी जियारत खानों में नतमस्तक होने लगे और मीरवाइज कश्मीरियों के इस पतन पर छाती पीटते रहे। अपने वक्त में एक समय कश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने सब कश्मीरियों को एकत्रित करके मीरवाइजों को कश्मीर घाटी में उनकी असली जगह बता दी थी। मामला यहां तक बढ़ा कि कश्मीरी अपने आपको शेर पार्टी कहने लगे और मीरवाइजों की सफों में बैठे अरबों, ईरानियों, तुर्कों ,पठानों और मध्य एशियाई लोगों को बकरा पार्टी कहने लगे। लेकिन मीरवाइजों के नेतृत्व में गिलानियों, खुरासानियों ने कश्मीरियों पर अपना शिकंजा कसने के प्रयास निरंतर जारी रखे और वे प्रयास अब भी जारी हैं। अब बात  अयूब पंडित की। जम्मू कश्मीर की पुलिस को अंदेशा है कि पंडित की हत्या मीरवाइज उमर फारुख के आदमियों ने की है। यह भी कहा जा रहा है कि पंडित, मीरवाइज की सुरक्षा के लिए ही तैनात किया गया था। पुलिस के उच्च अधिकारियों ने स्वीकार भी किया है कि मीरवाइज मस्जिद में अपना उपदेश देने के लिए आते हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा की व्यवस्था करना जरूरी है।  कुछ साल पहले जम्मू कश्मीर के वर्तमान विधायक सज्जाद लोन (लोन प्राचीन लावण्य जनजाति के लोग माने जाते हैं) के पिता अब्दुल गनी लोन की हत्या में भी मीरवाइज का हाथ होने की आशंका थी । वैसे अब कश्मीरियों की ओर से यह सवाल भी उठाया जाने लगा है कि हुर्रियत कान्फेंस के इन्हीं लोगों का समर्थन आतंकवादियों को मिलता है। इसलिए कश्मीरियों को इन हुर्रियत कान्फ्रेंसियों से सुरक्षा की जरूरत है, इसके उलट सरकार इन्हीं नेताओं को सुरक्षा प्रदान कर रही है ।

डीएसपी पंडित  इनको सुरक्षा देते-देते इनकी साजिश का शिकार हो गया । एक सप्ताह पहले ही आतंकवादियों ने दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में घात लगा कर स्टेशन हाउस आफिसर समेत छह पुलिस वालों की हत्या ही नहीं की थी, बल्कि उनका चेहरा भी क्षत-विक्षत  कर दिया था। विदेशी रेगिस्तानों की धरती के जीवन मूल्यों ने इन नराधामी आतंकियों को इतना अमानवीय बना दिया है कि वे मृतकों पर भी पाशविक अत्याचार करने को भी खुदा की खिदमत समझते हैं। लेकिन क्या श्रीनगर में अयूब पंडित को मध्ययुगीन बर्बरता से मारने का यह काम कश्मीर घाटी में विदेशों से संचालित आतंकवादियों की बढ़ती ताकत का प्रतीक है या फिर यह उनकी निराशा और अवसाद से उपजा घिनौना कृत्य है? बहुत से लोग इसका यही निष्कर्ष निकालेंगे कि कश्मीर घाटी में सरकार का सत्ता का अवसान हो रहा है और जनमानस पर आतंकियों का प्रभाव और आतंक दोनों बढ़ रहे हैं। लेकिन यदि यह सचमुच होता तो सरहद पार से संचालित आतंकियों को कश्मीरियों को मारने की जरूरत न पड़ती। आतंकियों का दावा है कि वे कश्मीरियों की आजादी और सुख के लिए लड़ रहे हैं। यह दावा अरब, ईरानी , तुर्क और मुगल पिछले सात सौ साल से कर रहे हैं। उनका तभी से कहना है कि वे कश्मीरियों की मुक्ति के लिए इस घाटी में आए हैं। उनको यह सुख और मुक्ति देने के लिए लाखों कश्मीरियों को उन्होंने मौत की नींद सुला दिया। कश्मीरी मरते रहे ,पिटते रहे लेकिन उन्होंने इन गिलानियों व खुरासानियों के आगे गर्दन नहीं झुकाई।  वे गर्दन झुका लें, इसका प्रयास वे आज तक कर रहे हैं। 2017 में भी उनके ये प्रयास जारी हैं। यही कारण है कि कुलगाम के 22 साल के कश्मीरी नौजवान लेफ्टिनेंट उमर फैयाज को शादी के घर में से उठा कर उनको गोलियों से भून दिया जाता है। मकसद केवल एक ही है। कश्मीरी डर कर गिलानियों और खुरासानियों के आगे आत्मसमर्पण कर दें। लेकिन चाहे वह अयूब पंडित हो, या फिर लेफ्टिनेंट उमर फैयाज, या फिर अनंत नाग के वे छह सिपाही हों , वे पूरे कश्मीरियों के प्रतीक के रूप में लड़ कर शहीद हो गए, पर उन्होंने कश्मीरियों का सिर नीचा नहीं होने दिया। कश्मीरियों ने अपने जियारतखानों में जाना नहीं छोड़ा और मीरवाइजों ने अपनी मस्जिद से अपना फरमान जारी करना बंद नहीं किया। इस लड़ाई में एक और कश्मीरी अयूब पंडित शहीद हो गया, उसको सलाम। आशा करनी चाहिए सरकार इस हत्या में मीरवाइज की भूमिका की जांच जरूर करेगी।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com

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