आस्तीन के ‘कश्मीरी’ सांप!

By: Jun 17th, 2017 12:02 am

चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में भारत और पाकिस्तान की क्रिकेट टीमें आमने-सामने…बेशक जंग के मैदान सरीखा एहसास होगा। वैसी ही उत्तेजना और तनाव…एक टीम चैंपियन बनेगी, तो दूसरी टीम उपविजेता रहेगी। ऐसा सुपरहिट फाइनल 10 सालों के बाद खेला जा रहा है। 2007 में टी-20 के विश्व कप फाइनल में भारत-पाक भिड़ंत हुई थी और भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। बहरहाल मौजूदा चैंपियंस ट्रॉफी मुकाबलों में दोनों टीमों के खेल की उपलब्धियां नायाब रही हैं। दोनों ही दुनिया की श्रेष्ठ टीमों को पराजित कर इस आखिरी मुकाम पर पहुंची हैं। पाकिस्तान देश के लिए हमारे मानस में एक अलग सोच है, लेकिन खेल-भावना के स्तर पर हमें पाक टीम की बल्लेबाजी, गेंदबाजी, फील्डिंग की कद्र करनी चाहिए, लेकिन अब भी वह टीम इंडिया की तुलना में दोयम दरजे के हैं। भारत ने जिस तरह मात्र एक विकेट गंवाकर ही 265 रनों का लक्ष्य हासिल कर लिया और बांग्लादेश की टीम को 9 विकेट से कुचल कर साबित कर दिया कि टीम इंडिया ही ‘सिरमौर’ है, जाहिर है कि इस जीत का मनोबल फाइनल में भी कारगर रहेगा। दरअसल हमारा मुद्दा किक्रेट की आड़ में छिपे ‘आस्तीन के सांपों’ का है। हिंदुस्तान के कश्मीर में ऐसे भी ‘सांप’ हैं, जो पाकिस्तानी टीम की जीत पर जश्न मनाते हैं, आतिशबाजी और पटाखे छोड़ते हैं, फाइनल में प्रवेश और जीत के लिए बधाइयां और शुभकामनाएं देते हैं, लेकिन जब चैंपियंस ट्रॉफी मुकाबलों के लीग चरण में टीम इंडिया ने 124 रनों के अंतर से पाकिस्तान की टीम को रौंदा था, तब बधाइयां और जश्न भारत के हिस्से नहीं आए थे। तब ‘आस्तीन के सांपों’ ने सन्नाटा और अंधेरा पसार कर ‘मानम’ मनाया था। आखिर ऐसा क्यों. किया गया…? क्या यह सच्ची खेल-भावना है? कश्मीर घाटी में रहते हुए हिंदुस्तान के संसाधनों का इस्तेमाल करते रहे हैं,रोटी हिंदुस्तान मुहैया कराता रहा है,लेकिन जश्न के गीत पाकिस्तान के गाए जाते रहे हैं! यदि कोई प्रतिक्रियावादी इन लम्हों में टिप्पणी कर दे कि यदि मानस ऐसा ही है, तो पाकिस्तान क्यों नहीं चले जाते? ऐसा बर्ताव हुर्रियत कॉन्फे्रंस के चेयरमैन मीरवाइज उमर फारूक ने किया है। सेमीफाइनल में गोरे अंग्रेजों की टीम को 8 विकेट से कुचलने वाली पाक टीम फाइनल में पहुंची, तो रमजान का रोजा खोलने के बाद मीरवाइज ने बाकायदा ट्वीट कर ‘बेस्ट ऑफ लक’ कहा और बधाई दी, फाइनल जीतने की शुभकामनाएं भी दीं। शायद मीरवाइज को तब तक एहसास नहीं था कि फाइनल में हिंदुस्तान की टीम ही पहुंचेगी। बहरहाल कोई भी शखस किसी भी खेल और खिलाड़ी का फैन हो सकता है, उसके खेल-प्रदर्शन पर बधाइयां भी दे सकता है, लेकिन फाइनल में टीम इंडिया के पहुंचने पर ऐसा जश्न, ऐसी मुबारकबाद और जीत की शुभकामनाएं क्यों नहीं दी गईं? जाहिर है कि अलगाववादी नेता उमर फारूक पाकिस्तान को ज्यादा चाहते हैं और उनके हुर्रियती चंपू भी पाकिस्तान जाने के इच्छुक हैं। ऐसा उन्होंने जश्न के दौरान और बाद में भी कहा है। पाकिस्तान,वहां की फौज और आईएसआई,आतंकियों और आतंकी संगठनों की ‘भीख’ और ‘लालच’ पर जि़न्दा रहने वाले कश्मीर के अलगाववादी नेता ‘आस्तीन के सांप’ नहीं हैं, तो और क्या हैं? बेशक यह मुद्दा बेहद आम है और उसे नजरअंदाज भी किया जा सकता था, लेकिन क्रिकेट के जरिए यह हमारे राष्ट्रीय सम्मान, गौरव और गरिमा का सवाल है। हुर्रियत नेता एक लंबे अंतराल से हमारे कश्मीर में बसे हैं, लेकिन पाकिस्तान के पिट्ठू और चारणभाट बने हैं। कई आपराधिक मामले भी उनके खिलाफ दर्ज हैं। तो फिर उनका हुक्का-पानी बंद करने और देशद्रोह का केस चलाने में क्या दिक्कत है? कश्मीर घाटी के अलावा, देश के विभिन्न हिस्सों में बसे करीब 20 करोड़ मुसलमान तो पाकिस्तान की जीत पर फुलफुलाए नहीं, जश्न नहीं मनाए, तो हिन्दुस्तान में ये ‘पाकिस्तानी’ कौन हैं? पाकिस्तान खून बहा रहा है, फायरिंग करा रहा है,भाड़े के पत्थरबाजों से हमारी सेना और सुरक्षा बलों पर पथराव करा रहा है, लेकिन मीरवाइज सरीखे कुछ लोग उससे यारी निभा रहे हैं। यह सरासर देश के प्रति गद्दारी है। मीरवाइज सरीखों का दिल और दिमाग पाकिस्तानी है। यह कब तक जारी रहने दिया जाएगा? ऐसे ‘सांपों’ की नागरिकता समाप्त करें और पाकिस्तान की ओर खदेड़ दें। कुछ दिन चिल्ल-पौं मचेगा, लेकिन ‘आस्तीन के सांपों’ से तो निजात मिलेगी। बहरहाल टीम इंडिया आईसीसी के मुकाबलों में 9वीं बार फाइनल में पहुंची है। रविवार 18 जून, को फाइनल है। देखते हैं कि भारत की जीत पर अलगाववादी नेताओं की प्रतिक्रिया कैसी रहती है?

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