इनसानियत का पैगाम देती है ईद

By: Jun 24th, 2017 12:12 am

रोजा वास्तव में अपने गुनाहों से मुक्त होने, उससे तौबा करने, उससे डरने और मन व हृदय को शांति एवं पवित्रता देने वाला है। रोजा रखने से उसके अंदर संयम पैदा होता है। पवित्रता का अवतरण होता है और मनोकामनाओं पर काबू पाने की शक्ति पैदा होती है। एक तरह से त्याग एवं संयममय जीवन की राह पर चलने की प्रेरणा प्राप्त होती है। इस लिहाज से यह रहमतों और बरकतों का महीना है…

Aasthaभारत जहां एक ओर सांप्रदायिक सौहार्द एवं आपसी सद्भावना के कारण दुनिया में एक अलग पहचान बनाए हुए है, वहीं यहां के पर्व-त्योहारों की समृद्ध परंपराएं भी उसकी स्वतंत्र पहचान का बड़ा कारण है। इन त्योहारों में इस देश की सांस्कृतिक विविधता झलकती है। यहां अनेक कौमें एवं जातियां अपने-अपने पर्व-त्योहारों तथा रीति-रिवाजों के साथ आगे बढ़ी हैं। इन पर्व-त्यौहारों की शृंखला में मुसलमानों के प्रमुख त्यौहार ईद का विशेष महत्त्व है। हिंदुओं में जो स्थान ‘दीपावली’ का है, ईसाइयों में ‘क्रिसमस’ का है, वही स्थान मुसलमानों में ईद का है। यह त्योहार रमजान के महीने की त्याग, तपस्या और व्रत के उपरांत आता है। यह प्रेम और भाईचारे की भावना उत्पन्न करने वाला पर्व है। इस दिन चारों ओर खुशी और मुस्कान छाई रहती है।  इस वर्ष ईद-उल-फितर 26 जून, 2017 को मनाया जाएगा। इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने को रमजान का महीना कहते हैं और इस महीने में अल्लाह के सभी बंदे रोजे रखते हैं। इसके बाद दसवें महीने की पहली चांद रात में ईद-उल-फितर मनाया जाता है। इस दिन सबको एक समान समझने और गरीबों को खुशियां देने पर विशेष जोर दिया जाता है। कहते है कि रमजान के इस महीने में जो नेकी करता है और रोजा के दौरान अपने दिल को साफ-पाक रखता है, नफरत, द्वेष एवं भेदभाव नहीं रखता, मन और कर्म को पवित्र रखता है, अल्लाह उसे खुशियां जरूर देता है। रमजान महीने में रोजे रखना हर मुसलमान के लिए एक फर्ज कहा गया है। भूखा-प्यासा रहने के कारण इनसान में किसी भी प्रकार के लालच से दूर रहने और सही रास्ते पर चलने की हिम्मत मिलती है।  ईद लोगों में बेपनाह खुशियां बांटती है और आपसी मोहब्बत का पैगाम देती है। गरीब से गरीब आदमी भी ईद को पूरे उत्साह से मनाता है। दुःख और पीड़ा पीछे छूट जाती है। अमीर और गरीब का अंतर मिट जाता है। खुदा के दरबार में सब एक हैं, अल्लाह की रहमत हर एक पर बरसती है। अमीर खुले हाथों दान देते हैं। यह कुरान का निर्देश है कि ईद के दिन कोई दुःखी न रहे। यदि पड़ोसी दुःख में है तो उसकी मदद करो। यदि कोई असहाय है तो उसकी सहायता करो। यही धर्म है, यही मानवता है। सिर्फ  अच्छे वस्त्र धारण करना और अच्छे पकवानों का सेवन करना ही ईद की प्रसन्नता नहीं बल्कि इसमें यह संदेश भी निहित है कि यदि खुशी प्राप्त करना चाहते हो, तो लोगों की सेवा कर  प्रभु को प्रसन्न कर लो।  ईद मानव का खुदा से एवं स्वयं से  साक्षात्कार का पर्व है। यह त्योहार परोपकार एवं परमार्थ की प्रेरणा का विलक्षण अवसर भी है, खुदा तभी प्रसन्न होता है जब उसके जरूरतमंद बंदों की खिदमत की जाए, सेवा एवं सहयोग के उपक्रम किए जाए। असल में ईद बुराइयों के विरुद्ध उठा एक प्रयत्न है, इसी से जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है, औरों के दुख-दर्द को बांटा जाता है, बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा जाता है। आनंद और उल्लास के इस सबसे मुखर त्योहार का उद्देश्य मानव को मानव से जोड़ना है। मैंने बचपन से देखा कि हिंदुओं का दीपावली और मुसलमानों की ईद-दोनों ही पर्व-त्योहार इनसानियत से जुडे़ हैं। अजमेर एवं लाडनूं की हिंदू-मुस्लिम सांझा संस्कृति में रहने के कारण दोनों ही त्योहारों का महत्त्व मैंने गहराई से समझा और जिया है। मैंने अपने इर्द-गिर्द महसूस किया कि सद्भाव और समन्वय का अर्थ क्या है। मतभेद रहते हुए भी मनभेद न रहे, अनेकता में एकता रहे। आचार्य तुलसी के समन्वयकारी एवं मानव कल्याणकारी कार्यक्रमों से जुड़े रहने के कारण हमेशा जाति, वर्ण, वर्ग, भाषा, प्रांत एवं धर्मगत संकीर्णताओं से ऊपर उठकर मानवधर्म को ही अपने इर्द-गिर्द देखा और महसूस किया। इस्लाम का बुनियादी उद्देश्य व्यक्तित्व का निर्माण है और ईद का त्योहार इसी के लिए बना है। धार्मिकता के साथ नैतिकता और इनसानियत की शिक्षा देने का यह विशिष्ट अवसर है। इसके लिए एक महीने का प्रशिक्षण कोर्स रखा गया है, जिसका नाम रमजान है। इस प्रशिक्षण काल में हर व्यक्ति अपने जीवन में उन्नत मूल्यों की स्थापना का प्रयत्न करता है। इस्लाम के अनुयायी इस कोर्स के बाद साल के बाकी 11 महीनों में इसी अनुशासन का पालन कर ईश्वर के बताए रास्ते पर चलते हुए अपनी जिंदगी सार्थक एवं सफल बनाते हैं। रोजा वास्तव में अपने गुनाहों से मुक्त होने, उससे तौबा करने, उससे डरने और मन व हृदय को शांति एवं पवित्रता देने वाला है। रोजा रखने से उसके अंदर संयम पैदा होता है। पवित्रता का अवतरण होता है और मनोकामनाओं पर काबू पाने की शक्ति पैदा होती है। एक तरह से त्याग एवं संयममय जीवन की राह पर चलने की प्रेरणा प्राप्त होती है। इस लिहाज से यह रहमतों और बरकतों का महीना है। हदीस शरीफ  में लिखा है कि आम दिनों के मुकाबले इस महीने 70 गुना पुण्य बढ़ा दिया जाता है और यदि कोई व्यक्ति दिल में नेक काम का इरादा करे और किसी कारण वह काम को न कर सके, तब भी उसके नाम पुण्य लिख दिया जाता है। बुराई का मामला इससे अलग है, जब तक वह व्यक्ति बुराई न करे उस समय तक उसके नाम गुनाह नहीं लिखा जाता। ईद जीवन का दर्शन देती है। स्वस्थ और उन्नत जीवनशैली का संपादन करती है। ईद से हमारे आसपास अच्छे लोगों और अच्छे विचारों का परिवेश बनता है। यहां की उत्सवप्रियता में भी जड़ता नहीं, विवेक जागता है। हर इनसान के भीतर जीने का सही अर्थ विकसित होता है। ईद और उनसे जुड़ा दर्शन संसार की बीहड़ वीथियों के बीच मंजिल के सही रास्ते तलाशने की दृष्टि देता है। जीवन की दिशा और दर्शन का मूल्यांकन इसी से जुड़ता है। मेरी दृष्टि में बीज से बरगद बनने और दीये से दीया जलने की परंपरा का यही आधार है। ईद के बाद प्रत्येक मुसलमान दूसरे व्यक्ति से गले मिलता है, भले ही वह उसे न जानता हो। इस प्रकार ऊंच-नीच, जात-पात के सभी भेद और रंग या नस्ल की सभी सीमाएं इस अवसर पर मिट जाती हैं और परस्पर मिलने वाले उस समय केवल इनसान ही होते हैं। बराबर होकर खुशी देने और महसूस करने का यही संदेश है, जो ईद के माध्यम से समस्त संसार को दिया जाता है। ईद की खुशियों में उन बेबस, लाचार, मजबूर लोगों को भी सम्मिलित करना जरूरी है, जो इसमें शामिल होने की हैसियत नहीं रखते। इसीलिए इस्लाम में हर मुसलमान पर सदका ए फित्र वाजिब है। एक संतुलित एवं स्वस्थ समाज निर्माण का यह एक आदर्श प्रकल्प है। इसलिए ईद के दिन प्रत्येक मुसलमान ईद की नमाज पढ़ने के लिए ईदगाहों में एकत्रित होते हैं, आपस में गले मिलते हैं, अपने मित्रों-संबंधियों से मिलने जाते हैं, दान करते हैं और अपने पूर्वजों की मजारों पर जाकर प्रार्थना करते हैं। ईद का संदेश समतामूलक मानव समाज की रचना है।

— ललित गर्ग, ई.253, सरस्वती कुंज, अपार्टमेंट, 25 आईपी एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली.92

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