कुल्लू की रक्तदानी नीलम

By: Jun 11th, 2017 12:07 am

Utsavअमूनन खून की कमी से लड़ने वाली महिलाओं के लिए कुल्लू की नीलम मिसाल बनी हैं। कुल्लू की यह महिला रक्तदान के जरिए समाजसेवा का अलख जगा रही है। वह समाज की महिलाओं के  दिनचर्या और खान-पान में बदलाव की लड़ाई भी लड़ रही हैं। अपने संकल्प को मजबूत हौसलों का सहारा देकर अब  तक साल भर में कुल्लू की यह आयरन लेडी 16 बार रक्तदान कर बुरे वक्त में खून की कमी से जूझने वाले लोगों का संबल और सहारा भी बन चुकी हैं। यह हिमाचली महिलाओं के लिए  प्ररेणा और मिसाल हैं, जो पहाड़ पर पहाड़ सी मुश्किल चुनौतियों का सामना करने के कारण अकसर खून की  कमी का  शिकार होकर रह जाती हैं। नीलम की मानें तो  खून की कमी के कई कारण होते हैं पर  हिमाचल में महिलाओं को घर-परिवार, खेत-खलिहान की जिम्मेदारी का निर्वाह करते-करते सही तरीके से  अपना ख्याल रख पाना भारी पड़ता है। ऐसे में सेहत  पर ध्यान नहीं रहता है और  खून की कमी होने लगती है। इसी वजह से हिमाचली महिलाएं इस सकंट में पड़ जाती हैं। उनका कहना है कि रक्तदान करने के लिए सभी को आगे आना चाहिए। यह दान सभी दानों से बड़ा है। कुल्लू का एक परिवार भी इस दान को बड़ा महादान मानते हुए आगे आया है और रक्तदानी बना हुआ है। जैसे-जैसे परिवार बड़ा हो रहा है सभी को रक्तदान करने की शिक्षा परिवार के बडे़ दे रहे हैं। जो रक्त दान करता है वह होता है सबसे महान। रक्तदान से बडे़ नहीं गीता, बाइबल और कुरान। कुल्लू के मौहल क्षेत्र से संबंध रखने वाली  नीलम ठाकुर भी कुछ इसी तर्ज पर पिछले चार सालों में 16 बार रक्तदान कर समाज की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई हैं। अपने जन्मदिवस चार मार्च, 2013 से रक्तदान करने की परंपरा को शुरू कर नीलम ठाकुर अब हर तीसरे से चौथे महीने रक्तदान करती हैं, वहीं, उनकी 21 वर्षीय बेटी शबनम ठाकुर भी निरंतर रक्तदान कर रही हैं। शबनम ठाकुर अब तक तीन बार रक्तदान कर चुकी हैं। 18 वर्ष होने से तीन से चार माह पहले ही शबनम ठाकुर ने रक्तदान करना शुरू कर दिया था। नीलम ने बताया कि रक्तदान करने के दो माह बाद ही उन्हें लगता है कि अब उन्हें रक्तदान करना चाहिए। वहीं स्वास्थ्य विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि रक्तदान करने से व्यक्ति अपने आपको काफी तरोताजा महसूस करता है। समाजसेवा के लिए हमेशा आगे रहने वाली नीलम ठाकुर समाज में अन्य महिलाओं को भी रक्तदान करने के लिए प्रेरित करती रहती हैं। उनके इस जज्बे को देखकर अन्य महिलाएं भी इसके लिए जागरूक हो रही हैं। उन्होंने बताया कि उनका बेटा सतीश ठाकुर अभी 19 वर्ष का है, लेकिन अभी वह अपने आपको कमजोर महसूस करता है। आने वाले समय में वह भी रक्तदान जैसा महापुण्य कमाएगा। उनकी बहन चमना ठाकुर भी उनके कहने से तीन से चार बार रक्त दान चुकी हैं। नीलम ठाकुर के पति सुरेश ठाकुर मनाली में अपना व्यवसाय चलाते हैं। वह अपनी पत्नी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खडे़ हैं। इस पूरे ही परिवार का रक्त गु्रप ए पॉजिटिव है।

संदीप शर्मा, कुल्लू

Utsavमुलाकात

मेरे खून की वजह से किसी को जिंदगी मिले, यही ख्वाहिश और खुशकिस्मती …

खून रिश्तों से बड़ा फर्ज कब-कब निभाता है?

जब किसी जरूरतमंद को हमारे खून की जरूरत पड़ती है।

जब आपकी वजह से किसी की जान बचती है, तो क्या महसूस करती हैं?

ऐसा लगता है कि जैसे हमें नया जीवन मिल गया हो। भगवान ने हमें इस लायक बनाया है कि हम किसी के काम आ सकते हैं।

पहली बार रक्त दान कब, किस उम्र में किया और प्रेरणा कहां से मिली?

पहली बार अपने जन्मदिन के दिन रक्तदान किया, उस दौरान उम्र 35 थी, मुझे किसी  ने रक्तदान के लिए नहीं बोला था। मै स्वयं ही रक्तदान करना चाहती थी।

कितने लोगों को रक्तदान के लिए प्रेरित कर पाईं?

हमेशा लोगों को रक्तदान के लिए बोलती रहती हूं। अपनी दीदी और बेटी को भी रक्तदान के लिए प्रेरित किया।  उसके बाद वे अब रक्तदान कर रहे है।

रक्तदान से सुकून, सराहना या संकल्प।

रक्तदान करने से सुकून मिलता है। मेरा रक्त किसी के काम आ रहा है। जब तक शरीर स्वस्थ्य है तब तक रक्तदान करती रहूंगी।

लक्ष्य क्या है और इस योगदान की मंजिल कहां पुकार रही है?

मुझे रक्तदान करते रहना है, अस्पताल में रक्तदान की कमी को लेकर जूझते रहते हैं,  ऐसे में हमेशा रक्तदान करती रहूंगी।

हिमाचल में रक्तदानियों के बारे में क्या कहेंगी और इनसे किस तरह समन्वय कायम करके इस अभियान को आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है?

मैं कहूंगी कि जो आज तक रक्तदान नहीं कर पाए हैं, वे भी रक्तदान करें।  रक्तदान करने से कोई कमी नहीं होती।  इस अभियान को आगे बढऩे के लिए अपने रिश्तेदारों को प्रेरित करती रहती हूं।

ब्लड बैंकों की मौजूदा व्यवस्था में आपका अनुभव इन्हें सुदृढ़ करने में कोई सुझाव?

बल्ड बैंक में जो आफिसर होते है, वे अपने जान पहचान को कई बार ब्लड देते है, वहीं गरीब जो लोग होते हैं वे ब्लड के लिए भटकते रहते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए, जरूरत के समय अमीर, गरीब दोनों को ही रक्त मिलना चाहिए।

कोई ऐसी घटना, जिसने आपके जीवन की दिशा बदल दी?

मन में एक ही ख्याल है कि अपने शरीर को जलाने के बजाय, इस शरीर  के पार्ट किसी दूसरे के लिए काम में लाए जा सकें।

कोई सुखद घटना या अनुभव?

जिस दिन रक्तदान करके आती हूं, तो अच्छा लगता है कि किसी के काम मेरा रक्त आ रहा है।

औरतों में रक्तदान के बारे में भ्रातियां हैं, आपका अनुभव क्या कहता है?

ऐसा कुछ नहीं है, औरतों के दिमाग में एक बार जो बात बैठ जाती है, तो वह नहीं हटती है। ऐसी महिलाएं भी एक बार रक्तदान करके देखें, उसके बाद उन्हें स्वयं लगेगा कि रक्तदान करना कितना सुकून देता है। मैं सभी औरतों को रक्तदान के लिए प्रेरित करती रहती हूं।

जिदंगी दूसरों के लिए भी काम आती है, इस सिद्धांत का आपके जीवन से क्या ताल्लुक रहा?

जिदंगी नाम ही है दूसरों के लिए जीने का। बचपन से ही लडक़ी मां, बाप  और बड़े होकर अपने परिवार के लिए जीती है। हमें औरों के बारे में भी सोचना चाहिए।

कोई सपना जो आपके रक्त में बहता है?

सपना यही है कि मैं जो यह सब कर रही हूं, मेरे बच्चे भी आगे इस प्रक्रिया को जारी रखें। अपने खून की वजह से किसी को जिंदगी मिले, इससे बड़ी ख्वाहिश और खुशकिस्मती क्या होगी।

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