देश हितों से खिलवाड़
(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर)
वो सीमा पर नित्य ही, लेते गर्दन नाप, कुछ सीखें अफगान से, चले खेलने आप। खरबूजा मीठा बहुत, नमक खा रहे प्याज, व्यापारी फलते-फूलते, त्यागी शर्म लिहाज। चला अमन का कारवां, दौड़ रही बस-रेल, बीयर साथ में, कैसा क्रिकेट खेल, बैट बॉल के साथ में, चिपका बम बारूद, माणिक-मोती लूटता, पाक लूटता सूद। प्रायोजित नापाक का, जन्नत कर दी नर्क, गले मिले हम खेल में, बेड़ा हो गया गर्क, घायल करते फौज को, करते लहू -लुहान। भीख दे रहा पाक ही, चूस रहा है जान, गतिविधी विध्वंसक बनी, विस्फोटक हालात, जल्लादों को दे रहा, आज खेल भी मात। देश भक्ति से खेल है, देश हितों से खेल, अपनी इज्जत आबरू, गई बेचने तेल। सैनिक का सिर काटकर, खेल रहे फुटबाल, परिजन में आक्रोश है, खून रहा है खौल। योद्धाओं का मनोबल मत तोड़ें श्रीमान, क्यों शहीद का कर रहे, खेलों से अपमान।
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