पशुओं पर राजनीति
(रूप सिंह नेगी, सोलन)
इसे विडंबना ही माना जाएगा कि हम लोग हर रोज बांझ या अपंग हुए उन बेजुबान गाय को घर से बाहर निकाल कर सड़कों पर मरने के लिए छोड़ जाते हैं और इसी वजह से हर रोज देश में हजारों की संख्या में निरंतर ये बेजुबान जानवर भूख-प्यास से या सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं। लेकिन हम लोगों का भला क्या स्वार्थ हो सकता है, जो इन जानवरों की सहायता के लिए आगे आएं। भारत में गाय पर भी राजनीति हो रही है। इसे भी विडंबना ही माना जाएगा कि हम स्वार्थ के लिए केरल प्रदेश में बछडे़ के काटने की दुर्भाग्यपूर्ण घटना के खिलाफ देश के कई शहरों, कस्बों की गलियों व सड़कों पर जुलूस निकाल कर आक्रोश को प्रदर्शित करते रहे और सोशल मीडिया पर भी स्वार्थ के लिए जम कर आलोचना और टिप्पणियां हुई हैं। इन दोनों पहलुओं पर गौर से सोचने पर यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गोमाता पर जो राजनीति हुई है, हो रही है, या हो सकती है, वह स्वार्थ से भरा है और इसे दोगली राजनीति की सोची- समझी चाल के सिवाय कुछ नही माना जा सकता है। सरकारों को राजनीति से ऊपर उठ कर गोमाता की सुरक्षा के लिए जितना भी संभव हो करना चाहिए
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