फारुख अहमद धर और किस्सा-ए-बाबा जान

By: Jun 10th, 2017 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्रीडा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

फारुख अहमद धर और बाबा जान दोनों ही सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। पहले को जीप के बोनट पर बिठा कर छोड़ दिया गया और दूसरे को जिंदगी भर के लिए जेल में डाल दिया गया। वैसे यदि शुद्ध रूप में पार्थ चटोपाध्याय के शब्दों का ही इस्तेमाल करना हो, तो यह भी कहा जा सकता है कि जब प्रदर्शन हो रहा था तो बाबा जान वहां से गुजर रहा था, लेकिन मुझे लगता है कि हमें पार्थ चटोपाध्याय के स्तर तक नीचे जाने की जरूरत नहीं है। इसलिए  हम यही कहेंगे कि वह प्रदर्शन में शामिल ही नहीं था बल्कि उसका नेतृत्व कर रहा था…

भारतीय सेना ने कश्मीर घाटी के बडगाम जिला में पिछले दिनों हुए उपचुनाव में एक मतदान केंद्र पर पत्थरबाजों को हल्लाशेरी दे रहे किसी फारुख अहमद धर को जीप के बोनट पर बांध कर कितने ही लोगों को मरने से बचा लिया था, उसका किस्सा अभी तक लोग भूले नहीं हैं। हजारों की संख्या में जो लोग उस दिन मतदान केंद्र को घेर कर पत्थरबाजी कर रहे थे, वे भी व्यक्तिगत बातचीत में कह रहे हैं कि मेजर गोगोई ने ऐसी तरकीब निकाली कि घिरे हुए सभी कर्मचारियों और सुरक्षा बल के जवानों को बचा कर ले गया। कश्मीर में लाशों की राजनीति करने वाले गोगोई की इस कारगुजारी को पचा नहीं पा रहे, इसलिए वे उसे गालियां दे रहे हैं। स्वाभाविक ही इसमें गिलानियों का कुनबा, मीरवाइजों की जमात शामिल है। अब्दुल्ला परिवार, मरहूम शेख अब्दुल्ला के कुनबे के लोग भी इसमें शामिल है। यह उसकी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हैं, जिसमें लाशें भी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। साम्यवादी कुनबा, सीपीआई से लेकर एम से होते हुए जैड तक इसमें न जाने कितनी जमायतें हैं। वैसे घाटी की तर्ज पर कहना हो तो जमायत, कम्युनिस्ट कहा जा सकता है। इस जमायत के एक आलातरीन दानिशमंद पार्थ चटोपाध्याय ने ग़ुस्से में आकर भारतीय सेना के सेनापति को जनरल डायर के बराबर बता दिया है। आदमी अकलमंद है, इसलिए पूरी घटना को घुमाने में माहिर है ही। इसलिए फारुख अहमद धर की वाकफियत अपने पाठकों से यह कह कर करवाता है कि वह अपनी मोटरसाइकिल पर घटनास्थल के पास से गुजर रहा था। इतना सफेद झूठ बोलने की हिम्मत ख़ुद फारुख अहमद धर की भी नहीं हुई। उसने भी यह कहा कि वह मतदान केंद्र पर वोट डाल रहा था। वह अपने अंगूठे पर काला निशान भी दिखा रहा है। सीताराम येचुरी भी ग़ुस्से में झाग छोड़ रहे हैं। साम्यवादियों की ये कलाबाजियां किसी को हैरान नहीं करतीं बल्कि मनोरंजन करती हैं। लोग बाग जानते हैं, ये इस प्रकार की अजीबोगरीब हरकतें करते रहते हैं। वैसे ये आत्मा में विश्वास नहीं करते परंतु कभी-कभी वह जाग जाती है तो इस जमायत में क्या बड़ा क्या छोटा, सब हैरतअंगेज करतब दिखाता है। अब यह आत्मा जागी हुई है।

इसलिए कश्मीर घाटी में मानवाधिकारों का जो हनन हो रहा है, उसको देख कर चिंघाड़ रही है। लेकिन इस जागी हुई आत्मा को लाइन के उसपार दिखाई नहीं दे रहा, यह सचमुच हैरानी की बात है। उस पार यानी जम्मू- कश्मीर का जो हिस्सा पाकिस्तान ने अपने कब्जे में किया हुआ है, उस हिस्से में जमायत, कम्युनिस्ट का ही एक आला कारकून भी गिलगित बाल्तीस्तान में वही कुछ कर रहा था जो बड़गाम में फारुख अहमद धर कर रहा था। उस कारकून का नाम बाबा जान है और वह गिलगित बाल्तीस्तान की अवामी वर्कर्ज पार्टी का उपाध्यक्ष है। वह भी उसी कार्ल मार्क्स का चेला है, जिसकी कसमें हिंदोस्तान में जमायत, कम्युनिस्ट के लोग खाते हैं। इस लिहाज से बंदा अपनी बिरादरी का ही हुआ। उसकी सहायता करना एक ही कुनबे के नाते भी फर्ज बनता है। किस्सा क्या है, यह बयान करना भी लाजिमी है। जनवरी 2010 में गिलगित बाल्तीस्तान में हुंजा नदी का प्रवाह रुक गया था क्योंकि पहाड़ का एक हिस्सा उसमें गिर गया था, जिसने नदी का प्रवाह रोक दिया था। उससे बनी झील में अनेकों गांव डूब गए थे और हजारों लोग बेघर हो गए थे। ये लोग 11 अगस्त 2011 को  मुआवजे की मांग कर रहे थे। बदकिस्मती से वे यह मांग कराकोरम सड़क पर खड़े होकर कर रहे थे। यह वही कराकोरम मार्ग है जिसे चीन सरकार ने बनाया है। यह सैयद अहमद शाह उन अरब-इरानियों के कुनबे में से हैं जो सैकड़ों साल पहले जम्मू कश्मीर को जीतने के लिए यहां आए थे। सैयद साहिब को पाकिस्तान सरकार ने गिलगित बाल्तीस्तान का मुख्यमंत्री बनाया हुआ था। चीन की बनाई हुई सड़क और उस पर सैयद साहिब की सवारी और उसमें दीवार बन कर खड़े गिलगित बाल्तीस्तान के पहाड़ी लोग! लाहौल बिला काबूत। ऐसे मौके पर गोली चलाना तो बनता है। इसी तर्क से गोली चली और एक बाप-बेटा उसकी बलि चढ़ गए। बाबा जान ने इसका विरोध किया। वहां की पुलिस ने उसे जीप के बोनट पर बिठा कर घुमाया नहीं। जाहिर है इससे उसके मानवाधिकारों का हनन होता। उसने उसको आतंकवादी घोषित कर दिया और ताउम्र के लिए जेल में बंद कर दिया। अब बाबा जान लगभग छह साल से जेल में बंद है। कायदे से वह भी जम्मू- कश्मीर का उसी प्रकार बाशिंदा है जिस प्रकार फारुख अहमद धर है।

फर्क केवल इतना है कि वह जम्मू- कश्मीर के उस हिस्से का वाशिंदा है जिस  पर पाकिस्तान ने बलपूर्वक गैरकानूनी कब्जा किया हुआ है। फारुख अहमद धर और बाबा जान दोनों ही सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। पहले को जीप के बोनट पर बिठा कर छोड़ दिया गया और दूसरे को जिंदगी भर के लिए जेल में डाल दिया गया। वैसे यदि शुद्ध रूप में पार्थ चटोपाध्याय के शब्दों का ही इस्तेमाल करना हो, तो यह भी कहा जा सकता है कि जब प्रदर्शन हो रहा था तो बाबा जान वहां से गुजर रहा था, लेकिन मुझे लगता है कि हमें पार्थ चटोपाध्याय के स्तर तक नीचे जाने की जरूरत नहीं है। इसलिए  हम यही कहेंगे कि वह प्रदर्शन में शामिल ही नहीं था बल्कि उसका नेतृत्व कर रहा था। अपने इस जघन्य अपराध के लिए अब वह जिंदगी भर के लिए जेल की सलाखों के पीछे चला गया है। फारुख अहमद धर की तरह अपने घर में नहीं बैठा है। उसका कसूर केवल इतना था कि वह प्राकृतिक आपदा में फंसे लोगों के लिए मुआवजे की मांग कर रहा था। उसे कोई मेजर गोगोई जैसा मिल जाता, तो उसे भी जीप के बोनट पर घुमा कर छोड़ देता। लेकिन उसे मिला पाकिस्तान की सेना का मेजर। उन्होंने उसकी जितनी पिटाई हो सकती थी की और फिर उसे उम्र भर जेल में सड़ने के लिए डाल दिया। जेल में से ही वह गिलगित बाल्तीस्तान की विधानसभा के चुनावों में उम्मीदवार हो गया था और वहां के लोगों ने उसे अच्छी संख्या में वोट डाले। लेकिन इसे बाबा जान का सौभाग्य ही कहना चाहिए कि दुनिया भर के लोगों का ध्यान उसके साथ हुए अन्याय की ओर गया है। अनेक देशों में लोग शोर मचा रहे हैं कि बाबा जान को जेल से छोड़ना चाहिए। गिलगित बाल्तीस्तान में तो लोग सड़कों पर उतर कर इस बात के लिए प्रदर्शन भी कर रहे हैं ।

यहां तक कि वामपंथियों में जिसको सिर आंखों पर बिठाया जाता है,  ऐसे नोयम चोमस्की ने भी मांग कर डाली कि बाबा जान बेकसूर हैं और उसे छोड़ दिया जाना चाहिए । लेकिन भारत की जमायत-ए-कम्युनिस्ट इस पर मौन साधे हुए है । सीता राम येचुरी जिनकी नींद, जीप के बोनट पर बैठे फारुख अहमद धर के चित्रों ने हराम कर रखी है और उसके कारण मेजर गोगोई के चित्र को देख कर जिनकी आंखों में ख़ून उतर आता है उनके जहन में जेल में बैठा बाबा जान खलबली क्यों नहीं मचाता। बाबा जान और सीता राम येचुरी तो वैसे भी एक ही गुरु कार्ल मार्क्स के शिष्य हैं। इसलिए उनके लिए तो और भी जरूरी है कि वे पाकिस्तान के पास बाबा जान के मामले को लेकर प्रोटेस्ट दर्ज करवाएं । जमायत-ए-कम्युनिस्ट दिल्ली में पाकिस्तान के दूतावास के आगे प्रदर्शन भी कर सकती है । उनके मित्र पार्थ चटोपाध्याय अपनी भाषा और लियाकत का प्रयोग बाबा जान के मामले में भी कर सकते हैं । पाकिस्तानी सेना की तुलना वह जनरल डायर से चाहे न करें, पर वह उसे मानवाधिकारों का हनन करने वाली सेना तो लिख ही सकते हैं । यकीनन वह ऐसा नहीं करेंगे । क्योंकि इससे जम्मू- कश्मीर के उस हिस्से के लोगों को, जो पाकिस्तान के कब्जें  में हैं, संदेश जाएगा कि भारत के लोग उनकी लड़ाई में उनके साथ हैं । यह संदेश न तो पार्थ चटोपाध्याय देना चाहते हैं और न ही हिंदोस्तान में जमायत-ए-कम्युनिस्ट के लोग । वे तो फारुख अहमद धर के साथ हैं, जो जम्मू -कश्मीर की अपनी ही पुलिस पर पत्थर बरसाता है और लोगों को भय से वोट डालने से रोकता है ।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com

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