फिर तांगी संगम पर

By: Jun 14th, 2017 12:02 am

तांगी संगम पर तैयार हो रहा पर्यटन अपने साथ कई धाराएं भी लेकर चल रहा है। लगातार दूसरी बार लाहुल-स्पीति के सर्द मरुस्थल ने अपनी हिफाजत में जो वीआईपी मार्ग बनाया उस पर पर्यटन का रोडमैप, देश के पर्यटन मंत्री डाक्टर महेश शर्मा स्वयं चिन्हित कर रहे हैं। यह आने वाले कल को तसदीक करता है और अगर सियासत को न पढ़ा जाए तो यह प्रक्रिया अपने पावन मकसद से हिमाचल को अलहदा दिशा में लेकर चलेगी। यह दीगर है कि तांगी संगम अभी तक पर्यटन का जो चेहरा देख रहा है, उस कवायद में धार्मिक अनुष्ठान से जुड़ी एक विशेष विचारधारा और यात्रा का समावेश भी है। इसे न आधिकारिक दर्जा मिला है और न ही औपचारिक परिपाटी, लेकिन एक अंतरधारा बहने लगी है, क्योंकि विश्व हिंदू परिषद का शीर्ष नेतृत्व और पड़ोसी राज्य हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी शिरकत करके अपनी शुमारी की मुहर लगाते हैं। तांगी की ध्वनि में इरादों का शहद प्रशंसनीय है और इन घाटियों की खूबी यह भी कि प्रतिध्वनि ऊर्जा बढ़ाती है। इस परिदृश्य की आलौकिक अनुभूति का वृत्तांत अगर केंद्रीय मंत्री अपने दायित्व के माध्यम से देंगे, तो निश्चित रूप से हिमालय के पर्यटन कपाट पूरी तरह खुल जाएंगे। केंद्रीय योजनाओं में लेह-लद्दाख जैसा महत्त्व अगर लाहुल-स्पीति को भी मिले, तो नैसर्गिक आभा में अंतरराष्ट्रीय पर्यटन की उड़ान संभव है। एक अदद हवाई पट्टी की स्थापना से हाई एंड पर्यटन का कद्दावर चेहरा यह क्षेत्र देखेगा और इसी के साथ परंपराओं के कई संगम जमीन पर उतर आएंगे। खुशी की बात यह कि रोहतांग से आगे निकलकर पर्यटन के रास्ते पर डा. महेश पहुंचे और बुद्धिस्ट सर्किट के बाजुओं ने लाहुल-स्पीति को अपने भीतर भरने की हामी भर दी। वास्तव में तांगी में हुए इस समागम की विचारधारा में पौराणिक अस्तित्व की मर्यादा और प्रतिष्ठा भी खोजी जा रही है, ताकि जीवन के संस्कार अपनी अंतिम इच्छा का हरिद्वार स्थापित कर पाएं। जाहिर तौर पर हिमाचल में नदी-नालों की जलधाराएं जब संगम बनाती हैं, तो कई तीर्थ स्थल हरिद्वार बन जाते हैं। इन स्थलों का महत्त्व अगर जीवन यात्रा का अंतिम पड़ाव समझकर देखा जाए, तो अस्थि विसर्जन की परंपरा अपने साथ पर्यटन की किश्ती को भी संगम से आगे लेकर चलेगी। वास्तव में हमने नदी पर्यटन को उसके पौराणिक महत्त्व में नहीं देखा और न ही साहित्यिक-सांस्कृतिक शोध  ने सामाजिक जीवन को परिमार्जित किया। यहां संगम पर्व के अध्यक्ष डाक्टर चंद्रमोहन परशीरा की तारीफ होनी चाहिए, जिनकी वजह से चंद्रभागा अपने मौलिक आचरण की डुबकी हमारे लिए गंगा सरीखी पवित्रता ही नहीं, बल्कि पर्यावरण की स्वच्छता का मार्ग प्रशस्त करती है। हम इसे पर्यावरण या परंपरागत धार्मिक पर्यटन बनाकर ओढ़ लें, तो हिमाचल की हर नदी हमें सांस्कृतिक विरासत का पहरेदार बना देगी। ऐसे में तांगी की तरह करीब आधा दर्जन अन्य संगम स्थल अपने आप में हरिद्वार से कम नहीं और अगर इनके केंद्र में धार्मिक रीति-रिवाजों को स्थापित किया जाए, तो ये आर्थिकी के स्रोत साबित होंगे। बहरहाल तांगी के संगम पर पहुंचकर केंद्रीय मंत्री के साथ हरियाणा के मुख्यमंत्री ने भी महसूस किया होगा कि किस तरह पर्वत को निचोड़कर जो पानी निकलता है, उससे मैदान की प्यास बुझती है। पहाड़ के ऐसे योगदान को तांगी का संगम तो सदियों से बरकरार रखे हुए है, लेकिन कहीं सतलुज और यमुना से निकली संपर्क नहर ऐसी संस्कृति की धारा नहीं बन पाई। सतलुज-यमुना जोड़ नहर के मुहाने पर  बसी पानी की राजनीति भी अगर तांगी संगम पर नहा ले, तो पर्वत की अस्मिता समझ आएगी। ऐसे में तांगी संगम के इस पर्व के मार्फत हिमाचल अपने अस्तित्व से जुडे जल संस्कारों को रेखांकित करता है और इसे राष्ट्र को स्वीकार करना होगा।

भारत मैट्रीमोनी पर अपना सही संगी चुनें – निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App