फिल्म में नहीं दिखी प्रोमोशन की क्रिएटिविटी

By: Jun 17th, 2017 12:05 am

NEWSरितेश देशमुख और विवेक ओबरॉय ने अपनी फिल्म ‘बैंक चोर’ का काफी प्रचार किया। कभी सुपरहिट फिल्मों का पोस्टर चुराकर तो कभी चोरी का नाटक करके, दोनों ने इस फिल्म को प्रोमोट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन फिल्म उतनी बेहतर नहीं बन पाई, जितनी उम्मीद थी। फिल्म में तीन मासूम, भोले और नौसिखिये चोर चंपक, गेंदा और गुलाब एक बैंक में चोरी करने घुसते हैं। तीनों खूब बेवकूफियां भी करते हैं, लेकिन बैंक में मौजूद कस्मटर्स और एम्प्लॉई को बंदी बना लेते हैं। थोड़ी ही देर में बाहर पुलिसवाले, सीबीआई और मीडिया का जमावड़ा लग जाता है। आधी फिल्म देखने के बाद पता चलता है कि जिस बैंक चोर के पीछे सीबीआई लगी है, वे चंपक और उसके दोस्त नहीं बल्कि कोई और ही है। अब ये तीनों आम आदमी और अच्छे इनसान की तरह बैंक में मौजूद लोगों को नकली चोर से बचाते हैं। इस काम में उसकी मदद करती है, न्यूज रिपोर्टर गायत्री उर्फ गागा। हालांकि क्लाइमेक्स में एक बार फिर से फिल्म की कहानी बदलती है। फिल्म में आम आदमी का इतनी बार जिक्र हुआ है कि कहीं-कहीं नसीरुद्दीन शाह की फिल्म ‘अ वेडनेसडे’ याद आने लगती है। फिल्म में सबसे अच्छा जो लगा है, वह दिल्ली और मुंबई वालों की लड़ाई है। एक्टिंग की बात करें तो रितेश देशमुख ने अच्छी एक्टिंग की है। सीबीआई आफिसर के रोल में  विवेक ओबरॉय फिट लगे हैं। भुवन अरोरा और विक्रम थापा ने भी अच्छा अभिनय किया है।

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