बीबीएन में प्रवासी मजदूर महफूज नहीं
बीबीएन — उद्योगों की रीढ़ कहे जाने वाले लाखों प्रवासी कामगार बीबीएन में एक अदद छत के लिए तरस रहे हैं। हालात ये हैं कि सिर ढकने के लिए जगह न होने के कारण मेहनतकश कामगार बेबसी का जीवन जीने को मजबूर हैं। हालात ये हैं कि प्रभावशाली लोग निजी व सरकारी भूमि तक प्रवासी कामगारों को झुग्गियां बसाने के लिए दे रहे हैं। इसके बदले में मोटी रकम वसूल रहे हैं, लेकिन सुविधाआें व सुरक्षा के नाम पर कुछ नहीं दे रहे। बद्दी के सुराजमाजरा गुज्जरां में झुग्गियों पर दीवार गिरने की घटना ने एक बार फिर बीबीएन में झुग्गियां बसाकर अवैध तौर पर किराया वसूली के मामले को उजागर कर दिया है। दरअसल जिस बंद पड़े उद्योग की दीवार गिरी है, उसके साथ की जमीन पर करीब सौ से ज्यादा झुग्गियां अवैध तौर पर बसाई गई हैं। बताया जा रहा है कि इन झुग्गी मालिकों से कुछ प्रभावशाली लोगों द्वारा अवैध रूप से उगाही की जा रही थी। पुलिस इस पड़ताल में जुटी है कि यह जमीन निजी है या सरकारी। इसके बाद ही भूमि मालिक पर शिकंजा कसा जाएगा। लेकिन फिलवक्त आठ कामगारों की मौत के मामले ने बीबीएन में कामगारों के लिए सुरक्षित रिहायश का सवाल एक बार फिर खड़ा हो किया है। बताते चलें कि बीबीएन में प्रवासी कामगारों की झुग्गियों में दबकर मौत का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कई ऐसी घटनाएं घट चुकी हैं। बीते साल 22 जुलाई को भी बद्दी में दो मंजिला भवन की दीवार गिरने से मां-बेटी की मौत हो गई थी। इसके अलावा आगजनी के कई मामलों में प्रवासी कामगार जिंदा जल कर मर चुके हैं। झुग्गियों में हादसों की बढ़ती घटनाओं में जहां प्रवासियों की खून-पसीने की कमाई लुट रही हैं, वहीं अपनों को खोने की टीस भी उन्हें साल रही है। वर्ष 2003 में मिले औद्योगिक पैकेज के बाद बीबीएन में जहां हजारों की तादाद में उद्योगों की स्थापना हुई, वहीं प्रवासी कामगारों ने भी रोजगार की तलाश में यहां दस्तक दी। मौजूदा समय में औद्योगिक क्षेत्र बीबीएन में प्रवासी श्रमिकों का आंकड़ा अढ़ाई लाख से अधिक हैं और क्षेत्र में 20,000 से ज्यादा झुग्गी-झोपडि़यों में प्रवासी कामगार अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। घासफूस, तिरपालों व लकडि़यों से बनी झुग्गी-झोंपडि़यां न तो गर्मियों और न ही सर्दियों के मौसम में सुरक्षित रहती हैं। यहीं वजह रही है कि बीबीएन में हर वर्ष आगजनी कें दर्जनों मामलों में सैकड़ों झुग्गी-झोपडि़यां आग की भेंट चढ़ रही हैं या फिर दीवार ढहने , भू-स्खलन जैसे हादसों का शिकार बन रही है। बीबीएन क्षेत्र में यदि देखा जाए तो यह झुग्गी—झोपडि़यां इस कद्र से बनी हुई हैं, जिन्हें देखकर लगता हैं, जैसे झुग्गियों के शहर-शहर बस गए हों। साल दर साल औद्योगिक नगरी में दिल दहला देने वाली घटनाएं घट रहीं हैं, लेकिन अंकुश लगाने के लिए प्रशासन की ओर से कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया गया।
लो कास्ट हाउसिंग स्कीम बेअसर
बद्दी-बरोटीवाला व नालागढ़ में बीबीएनडीए ने कामगारों को सुरक्षित व किफायती रिहायश मुहैया करवाने के मक सद से लो कास्ट हाउसिंग स्कीम शुरू की है । इसके तहत निजी भूमि झुग्गियां बसाने के लिए देने वालों को इस स्कीम के तहत सुझाए गए मानकों के अनुरूप सस्ती रिहायश बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, लेकिन आलम यह है कि बीबीएन के चुनिंदा भूमि मालिकों को छोड़ कर अन्य ने इस योजना के प्रति दिलचस्पी नहीं दिखाई है। नतीजतन हादसों का सिलसिला निरंतर जारी है।
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