मर्यादित आवरण की चीख

By: Jun 16th, 2017 12:02 am

जंगल की सिसकियों में मातम का मंजर और पहरेदार की लाश का सबूत इस काबिल भी नहीं कि हम बता पाएं कि कसूर किसका और कसूरवार कौन। वन रक्षक होशियार सिंह की लाश से अशांत होने का सबब बढ़ता है और इसीलिए विरोध प्रदर्शन पूरे मामले से जुड़े आक्रोश को बयां कर रहे हैं। क्या कहीं जंगल राज की सीमा के भीतर होशियार सिंह वन रक्षक के रूप में काम कर रहा था या माफिया की जड़ों ने पूरे जंगलात महकमे को इतना खोखला कर दिया कि अपराध के बिल इसके नजदीक बन गए। मामले के बिछौने पर कई तत्त्व सक्रिय हैं, लेकिन कहीं मर्यादित आवरण की चीख हर कोई सुन सकता है। यह चीख वीभत्स कांड की कालिमा से निकलती है और पूरी व्यवस्था के कानों में पिघलते सीसे की तरह असर रखती है। मामला गंभीर है, और गंभीर बन रहा है, इसलिए विशेष जांच दल को सवालों की सूलियों और गुनाह की गंदगी से छीनकर सत्य को सामने लाना होगा। यह इनसाफ की डगर है और इस पर हिमाचल को अपनी मर्यादा की कसौटी पर खरा उतरना है। गुनाह का केवल एक पक्ष गुनाह ही होता है, इसलिए सारे मामले के सामने कई दायित्व खड़े हैं। यहां जनता कानून का सख्त अंदाज देखना चाहेगी, तो पुलिस जांच की ईमानदारी पर प्रदेश की छवि टिकी रहेगी। यह जांच वन विभाग की अदाकारी और असलीयत में फर्क का एहसास करा सकती है, तो सबसे अधिक संख्या के वरिष्ठ अधिकारियों के जंगल में वैध-अवैध खोज सकती है। जांच की रफ्तार में राजनीतिक मुद्दा खोजने की संभावना भले ही बढ़ जाती है, लेकिन मीडिया भी मामले की अदालत बन जाए, तो शब्द की आत्मा का कत्ल होगा। हैरानी यह कि होशियार सिंह की लाश में मीडिया के एक वर्ग ने अपने हिस्से की पत्रकारिता खोज निकाली। यही डंके विरोध के कानों में पत्रकारिता का ऐसा मंत्र फूंक गए कि सारी बिरादरी को गालियां पड़ीं। मंडी का मीडिया बंधुत्व इस सारे घटनाक्रम में यह सुर्खी भी ढूंढ रहा है कि कहीं अपनी ही फौज में पत्रकारिता का घृणित आचरण घुसपैठ तो नहीं कर रहा। कौन है यह मीडिया और हिमाचल के शांत वातावरण में समाज के संतुलन को खुर्द-बुर्द करने की शब्दावली तैयार कर रहा है। बहरहाल मीडिया के खिलाफ नारेबाजी अपने आप में धत कर्म इंगित करती रही और अगर यह कानाफूसी खुद मीडिया के एक वर्ग ने की है, तो पत्रकारिता की खोज अपने भीतर भी होनी चाहिए। हर खबर बनाने के बजाय, समाचार में प्रदेश के सरोकारों की वजह अगर मीडिया बने तो यह सिद्धांत इसी की तरक्की का रास्ता प्रशस्त करेगा। बेशक हिमाचल में पत्रकारिता के दूत प्रदेश की हिफाजत करते रहे और इसी का नतीजा है कि समाज में इस वर्ग का रूतबा हमेशा चमत्कृत रहा, लेकिन अब आपसी प्रतिस्पर्धा ने, एक वर्ग को गैरजिम्मेदार या अप्रासंगिक बना दिया। हर प्रदेश के हिसाब से पत्रकारिता जन्म लेती है और सामाजिक मूल्यों में पलकर ही परिपक्व होती है, लेकिन जब आयातित पत्रकारिता प्रदेश की प्रतिष्ठा पर सवार होने लगे तो पत्रकार के दामन पर फूल नहीं बरसेंगे। इसलिए हर मसले पर मीडिया से सवाल होगा और समाज भी मूल्यों के आईने में इसे देखेगा। मंडी का मीडिया इस लिहाज से परिष्कृत हुआ है और अपनी नैतिकता के आधार पर इसने अपने खिलाफ हुई नारेबाजी को निरस्त करवाया है। अखबारी दुनिया का सच भी यही है कि यह माध्यम, इलेक्ट्रॉानिक व सोशल से कहीं हटकर संतुलित जवाबदेही के साथ प्रासंगिक है। अखबारी पत्रकारिता की चमक उसके अपने विश्वसनीय शब्द समूह के कारण है और यह सोशल मीडिया की नजाकत में नहीं चल सकता। किसी हिमाचली होनहार वन रक्षक की संदिग्ध मौत से मीडिया की संवेदनशीलता बढ़ती है, लेकिन यह वर्ग अदालत का गठन नहीं कर सकता, बल्कि कानून सम्मत लिखावट पढ़ सकता है। होशियार सिंह की मौत से जब पर्दा पूरी तरह हटेगा, तो सामने मंडी के मीडिया का आदर्श चेहरा भी अपने फर्ज से नहाया हुआ नजर आएगा।

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