लालू-नीतीश अलगाव संभव !

By: Jun 30th, 2017 12:01 am

राष्ट्रपति चुनाव ने बिहार के सत्तारूढ़ महागठबंधन को विभाजित कर दिया है। राजद और कांग्रेस विपक्षी उम्मीदवार के पक्ष में वोट करेंगे, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल-यू ने एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के पक्ष में मतदान करने का फैसला लिया है। ये फैसले वैचारिक नहीं, सियासी सुविधा के हैं। यदि नीतीश ने विपक्ष के 17 दलों से अलग होकर कोविंद को समर्थन का फैसला किया है, तो वह एक महत्त्वपूर्ण सियासी संदेश है। बेशक कांग्रेस और लालू यादव समझें या न समझ पाएं। अपने फैसलों पर नीतीश खामोश दिखाई देते हैं, लेकिन उनके भीतर लगातार मंथन चल रहे होंगे कि अपनी छवि और प्रतिष्ठा की राजनीति के लिए आखिर क्या किया जाना चाहिए? राष्ट्रपति चुनाव से फिलहाल न तो महागठबंधन पर असर पड़ेगा और न ही नीतीश सरकार खतरे में आएगी, लेकिन जिस तरह लालू और उनके बेटे-बेटियां तथा मुख्यमंत्री रहीं उनकी पत्नी राबड़ी देवी के भ्रष्टाचार और बेनामी संपत्तियों के मामले सार्वजनिक हो रहे हैं, उनके मद्देनजर नीतीश को पुनर्विचार करना पड़ेगा कि अब लालू की ‘दागदार छाया’ से मुक्त कैसे हुआ जाए? बिहार के मुख्यमंत्री रहे एवं राजद के अध्यक्ष लालू यादव एक लंबे अंतराल से चारा घोटाले के अभियुक्त हैं। जेल भी जा चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद 950 करोड़ रुपए के इस घोटाले की अदालती कार्यवाही दोबारा शुरू की गई है। निष्कर्ष क्या होगा, इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, लेकिन कुछ और महत्त्वपूर्ण तथ्य सामने आए हैं, जिनसे लगता है कि लालू का पूरा परिवार घोटालों और फर्जीबाड़ों में आकंठ डूबा है। राबड़ी देवी के नाम पटना में ही 18 फ्लैट बताए जा रहे हैं। उनकी कीमत 20 करोड़ रुपए से ज्यादा होगी। राबड़ी के नाम जमीनों की खरीद-फरोख्त की गई है। समझ नहीं आता कि लोग लालू परिवार के नाम जमीनें और प्लाट दान क्यों करते हैं? छोटे बेटे एवं बिहार सरकार में उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नाम 13 प्लाट और फार्म हाउस हैं। बाजार की कीमत 125 करोड़ रुपए के करीब बताई जा रही है। दिल्ली और पटना में संपत्तियां खरीदी गई हैं। लालू की सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती को तो 1000 करोड़ रुपए की ‘मालिकिन’ आका जा रहा है। छोटी बेटियों-चंदा और रागिनी-के नाम पर भी परिसंपत्तियां हैं। परिवार का एक मॉल भी निर्माणाधीन है। दरअसल हम इन आरोपिया आंकड़ों की पुष्टि नहीं करते, लेकिन जिस तरह सीबीआई, प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग सरीखी जांच एजेंसियों ने लालू के परिजनों को अपनी गिरफ्त में लिया है, संपत्तियों को जब्त करने की प्रक्रिया शुरू की है, इसके मद्देनजर आरोप हवा-हवाई नहीं हो सकते। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह अग्निपरीक्षा का दौर है। उन्हें एहसास है कि लालू के परिवार में गलत और भ्रष्ट तरीके से संपत्तियां बनाई हैं, लेकिन वह जांच एजेंसियों के निष्कर्षों की प्रतीक्षा कर रहे हैं। तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव के मंत्री पद से इस्तीफों की मांग अभी से गूंजने लगी है, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन मामलों में आरोप-पत्र दाखिल होने तक इंतजार कर सकते हैं और फिर कार्रवाई करना उनके लिए आसान हो गया। एक सीमा के बाद वह लालू और कांग्रेस से ‘मुक्त’ होकर भाजपा-एनडीए के साथ फिर से आएंगे, यह चिंतन और निर्णय नीतीश को भी लेना है। अलबत्ता वह हर चुनाव अपने काम और छवि के आधार पर जीतते आए हैं। एक तथ्य याद दिला दें कि लालू के खिलाफ चारा घोटाले की जांच की शुरुआत भी नीतीश ने ही कराई थी और अब भी वह ‘लालू कुनबे’ के भ्रष्टाचार से मुक्त होने की सोच रहे होंगे। विडंबना यह है कि बिहार में सबसे अधिक जनादेश लालू के राजद को ही दिया था। विधानसभा में राजद के 81 सदस्य हैं, जबकि जनता दल यू के 73 । प्रथमदृष्टया लगता है कि लालू से अलग होने पर नीतीश सरकार का पतन तय-सा है, लेकिन ‘सुशासन बाबू’ ने राजनीति की कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं। वह सरकार भी बचाएंगे और लालू परिवार के कलंकों से दागदार भी होना नहीं चाहेंगे। राष्ट्रपति चुनाव का मामला हो या नोटबंदी का अथवा दिल्ली आकर प्रधानमंत्री के भोज में शामिल होने की घटना हो, नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक इच्छा और समझ से ही फैसले लेकर आए हैं। लालू यादव उनसे नाखुश भी रहे हैं। बेशक महागठबंधन सलामत है, लेकिन हकीकत यह है कि 100 से ज्यादा अधिकारी ऐसे हैं जो अपने कार्यकाल समाप्त होने के बावजूद पदों से चिपके बैठे हैं। उन्हें लालू यादव का संरक्षण हासिल है। नीतीश उन्हें हटाने पर विचार कर रहे हैं। लालू के दोनों बेटों के तहत आठ मंत्रालय आते हैं, जिन्हें रिमोट कंट्रोल से संचालित कर रहे हैं। मुख्यमंत्री फिलहाल खामोश हैं, लेकिन कुछ विभागों का काम आदर्श मान को से नीचे खिसकता जा रहा है, लिहाजा मुख्यमंत्री चिंतित भी हैं। गौरतलब यह भी है कि बिहार में ‘लोहिया पथ’ और ‘गंगा ड्राइव वे’ आदि परियोजनाएं ऐसी हैं, जो सीधा मुख्यमंत्री के सपनों से जुड़ी हैं। उनमें जानबूझ कर देरी की जा रही है, दोबारा टेंडर मंगाए जा रहें हैं, ये विभाग तेजस्वी यादव के अधीन आते हैं। नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच ऐसे कई गतिरोध और विरोधाभास हैं, जो सार्वजनिक नहीं हुए हैं। यह निर्णय नीतीश को करना है कि लालू से अलग कब और कैसे हुआ जाए। राष्ट्रपति चुनाव एक बेहतर बहाना हो सकता है, लेकिन नीतीश आनन-फानन में कोई फैसले नहीं लेते। हमारा मानना है कि वह अदालत के निर्णयों को देखेंगे और फिर उनके बाद ही कोई फैसला लेंगे। इस तरह बिहार में महागठबंधन की स्थिति 2019 के चुनाव तक क्या रहेगी, यह बड़ा अनिश्चित है।

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