शिक्षा से हो योग का संयोग
अदित कंसल
लेखक, नालागढ़, सोलन से हैं
योग केवल कसरत ही नहीं, बल्कि मन और शरीर के बीच संतुलन स्थापित करता है तथा व्यक्ति की आंतरिक शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। इसके द्वारा विद्यार्थियों में नैतिक मूल्यों जैसे अनुशासन-प्रियता, भाईचारा, राष्ट्र प्रेम, यौन संयम, आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन, आत्मविश्वास इत्यादि का विकास होता है…
भारत की पहल पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2015 में 177 देशों के समर्थन से 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित किया। निःसंदेह आज पूरे विश्व ने भारतीय संस्कृति की प्राचीन विद्या योग को पहचाना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन कई भारतीय केंद्रों के साथ मिलकर योग को नियमित करने की दिशा में काम कर रहा है। योग एक विज्ञान है, जो हमें निरोग रखने के साथ-साथ आध्यात्मिक अनुशासन सिखाता है। एक सुखद भारत व खुशहाल प्रदेश का स्वप्न साकार करने के लिए आवश्यक है कि विद्यार्थियों को योग परिचय व प्रशिक्षण शैशवकाल में ही प्राइमरी विद्यालयों, उच्च विद्यालयों व अन्य शैक्षणिक संस्थानों में करवा दिया जाए, ताकि विद्यार्थी योग से अपनी दिनचर्या नियमित कर सकें तथा जीवन में योग का सदुपयोग कर एक अच्छे नागरिक बन समाज व राष्ट्र की सेवा कर सकें। प्रदेश की बात करें तो आज विद्यार्थी वर्ग नशे का गुलाम है। अधिकतर विद्यार्थियों को गुटखा, जर्दा, खैनी, बीड़ी-सिगरेट, शराब व नशे के कैप्सूल इत्यादि का सेवन करते देखा जा सकता है। नशा माफिया भी शिक्षण संस्थानों के आसपास ही सक्रिय रहते हैं। विद्यार्थी अपने आप को काल्पनिक दुनिया में रखना चाहते हैं, जो वास्तविकता से कोसों दूर होती है। नशे की ललक ने प्रदेश के कई विद्यार्थियों को देह व्यापार के अनैतिक कारोबार में धकेल दिया। इस कारोबार में कई छात्र फंस चुके हैं। प्रदेश के युवाओं में अवसाद व तनाव एक आम दिमागी बीमारी बनती जा रही है।
आज का विद्यार्थी पढ़ाई के बोझ, पारिवारिक क्लेश, प्रतियोगी परीक्षाओं व बेरोजगारी के दबाव तले है। यूथ हैल्थ सर्वे के अनुसार प्रदेश में 6.94 फीसदी युवक व युवतियां अवसाद से ग्रसित, 15.54 फीसदी पूरी तरह चिंताग्रस्त, 19.19 फीसदी दिमागी परेशानी वाले पाए गए। टांडा मेडिकल कालेज के चिकित्सा विशेषज्ञों ने शोध में पाया कि प्रदेश में छह से दस साल के बच्चों के मानसिक रूप से कमजोर होने का आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से तीन गुना ज्यादा है। इस सबके चलते विद्यार्थियों में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ रही है। विद्यार्थी स्वयं को जीवन के उतार-चढ़ाव में समायोजित नहीं कर पाते। वहीं हिमाचल के अस्पतालों के ओपीडी रिकार्ड के मुताबिक हर तीसरे हिमाचली को डायबिटीज है। मोटापे ने प्रदेश के मेहनतकश युवाओं व विद्यार्थियों को आलसी बना दिया है। अधिकतर विद्यार्थी सोशल मीडिया के दास हैं तथा अपना कीमती समय टेलीविजन, कम्प्यूटर, मोबाइल व अन्य गैजेट्स के प्रयोग में व्यर्थ गंवा रहे हैं। शारीरिक गतिविधियां, खेलकूद और कसरत का अभाव है। विद्यार्थियों की जीवन शैली दूषित व दोषपूर्ण होती जा रही है। आंकड़ों के मुताबिक हिमाचल मोटापे में देश में आठवें स्थान पर है। यह इस पहाड़ी राज्य के लिए काफी शर्मनाक है। विद्यार्थी वर्ग तनाव व अवसाद के कारण झगड़ालू, असहज, हताश व कुंठाग्रस्त होता जा रहा है। स्कूलों व कालेजों में अनुशासनहीनता का वातावरण पनप रहा है। अभिभावक व अध्यापक बच्चों को नियंत्रित करने में स्वयं को असहाय व अक्षम महसूस कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर विद्यार्थी समय के मूल्य व अपनी जिम्मेदारियों को नहीं पहचानते। परीक्षाओं में नकल करने की प्रवृत्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विद्यार्थियों की इन सब समस्याओं का समाधान केवल योग है। योग मानव चेतना का विज्ञान है। योग केवल कसरत ही नहीं, बल्कि मन और शरीर के बीच संतुलन स्थापित करता है तथा व्यक्ति की आंतरिक शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। इसके द्वारा विद्यार्थियों में नैतिक मूल्यों जैसे अनुशासनप्रियता, भाईचारा, राष्ट्र प्रेम, यौन संयम, आत्मनिर्भरता, स्वावलंबन, आत्मविश्वास इत्यादि का विकास होता है।
योग से जहां विद्यार्थी अपने शरीर को स्वस्थ एवं बलिष्ठ रख सकेंगे, वहीं दूसरी ओर मन पर नियंत्रण पा अपना चहुंमुखी विकास कर पाएंगे। योग से विद्यार्थियों की ऊर्जा का सही दोहन हो सकेगा। योग से ध्यान, एकाग्रता व स्मरण शक्ति का विकास होता है। इससे विद्यार्थियों का मनोबल बढ़ेगा तथा परीक्षाओं में नकल करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगेगा। विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने में भी सरलता रहेगी। योगी विद्यार्थी असफलता सहने की क्षमता भी बखूबी रखता है। वह नशे के चक्रव्यूह में नहीं फंसेगा। योग से मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त कर विद्यार्थी भ्रष्टाचार, नकल, आत्महत्या, यौन संलिप्ता, अवसाद, अनुशानहीनता इत्यादि बुराइयों से स्वयं को दूर रख पाएंगे। सरकार को योग शिक्षक की नियुक्ति सुनिश्चित कर योग को प्रथम कक्षा से कालेज तक अनिवार्य विषय बनाना चाहिए। शिक्षण संस्थानों में योगमय वातावरण पैदा किया जाना चाहिए तथा योग कक्षाएं प्रातःकालीन समय में हों, ताकि नियमित विद्यालय आरंभ होने से पूर्व विद्यार्थी योग क्रियाएं समाप्त कर लें। इन योग कक्षाओं में स्थानीय लोगों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाए। पंचायतें इसमें अपना सहयोग दे सकती हैं। योग अध्यापक को चाहिए कि विद्यार्थियों को अष्टांग योग-यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि से अवगत कराए तथा इनके लाभ पूर्ण रूप से बताए जाएं। यही विद्यार्थी आने वाले समय में एक सशक्त व समृद्ध प्रदेश व भारत की नींव रखेंगे। विद्यार्थियों की सभी शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक समस्याओं का समाधान एकमात्र योग ही है।
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