शिमला से विधानसभा चुनाव तक

By: Jun 19th, 2017 12:05 am

बेशक हिमाचल भाजपा को इतना मसाला शिमला नगर निगम चुनावों और परिणामों में मिल गया कि सरकार को खुल कर कोस सके, लेकिन राजनीति की इस तस्वीर का हर पलड़ा भारी नहीं है। कम से कम मोदी लहर का अंकगणित शिमला का चुनाव नहीं कर सका, वरना एक निर्दलीय प्रत्याशी की जरूरत क्यों पड़ती। यह दीगर है कि परिवर्तन रैली के फेफड़ों में भरने को काफी मात्रा में सियासी आक्सीजन और आगे बढ़ने का मंतव्य स्पष्ट होने लगा है। विशुद्ध सियासी तरीके से कोई भी पार्टी शिमला चुनावों से राज्य चुनावों का अनुमान नहीं लगा सकती, लेकिन दोनों ओर की खामियां और खूबियां स्पष्ट हैं। जाहिर तौर पर सत्तारूढ़ दल को अपने वजूद और वीरभद्र सिंह के प्रभुत्व को नए अंदाज में समझना होगा। पार्टी अंततः अगर सम्मानजनक आंकड़ा बचा पाई, तो इस मेहनत का नायक स्वयं मुख्यमंत्री को बनना पड़ा, जबकि भाजपा ने अपने राष्ट्रीय कद को बखूबी आजमाया। अपनी प्रतिष्ठा को बरकरार रखने की जिस शिद्दत से भाजपा ने कोशिश की, उसके नजदीक भी कांग्रेस नहीं थी। कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष ने भले ही मुख्यमंत्री के वर्चस्व से डटकर मुकाबला किया, लेकिन पार्टी की हैसियत नहीं बता पाए और इसीलिए शिमला चुनाव पार्टियों से ऊपर हस्तियों पर चला गया। यहां मोदी बनाम प्रदेश सरकार के मुकाबले में कुछ लाभ अवश्य ही भाजपा को हुआ, लेकिन उन लहरों का आगाज नहीं हुआ जो उत्तर प्रदेश में बहती रहीं। इसलिए भाजपा की जीत को स्थानीय दृष्टि से कहीं अधिक देखें, तो हिमाचल सरकार के कुछ कसूर कम होंगे, लेकिन शिमला के संकट और चुनौतियां अभिव्यक्त हुई हैं। कांग्रेस की राजनीति को पीलिया हुआ और मरीज के मानिंद पार्टी को अगले चुनाव के संकट देखने होंगे। बेशक इस पीलिया की वजह सरकार भी हो सकती है, क्योंकि शिमला की जलापूर्ति का खोट अंततः नगर निगम के बजाय प्रदेश का मामला बना और नागरिक अपेक्षाओं ने परिणामों से राजनीति के सत्तारूढ़ पक्ष को प्यासा बना दिया। शिमला की अपनी एक अलग संवेदना और सहमति है, जिसने काफी सालों तक कांग्रेस को हकदार माना, लेकिन अब भाजपा के वादों और विश्वसनीयता का प्रभाव दिखाई दे रहा है। इन आशाओं की भिड़ंत का सामना अगले चुनाव तक होगा और इसलिए प्रदेश में कांग्रेस संगठन को अपनी सरकार की उपलब्धियों का बोझ उठाकर ही चलना होगा, वरना भाजपा के लिए तो केंद्रीय मंत्रियों की सियासी दिहाड़ी लग रही है। शिमला चुनाव केवल कांग्रेस या सरकार को सबक नहीं दे रहा, बल्कि भाजपा की नसीहतें भी स्पष्ट हैं। पार्टी के भीतर कलह और अनुशासनहीनता के दाग, व्यक्तिगत महत्त्वाकांक्षा से अलहदा नहीं हैं, इसलिए विधानसभा चुनाव तक इस खाई को कम करने की आवश्यकता है। पार्टी घोषित उम्मीदवारों के खिलाफ भाजपा समर्थक न होते, तो फैसले का अंजाम नई कलम लिखती। कांग्रेस के लिए चुनाव परिणामों में आंतरिक विध्वंस है, तो सुखद पहलू यह भी कि जमीन अभी खिसकी नहीं। विरोध के खिलाड़ी क्यों पैदा हो रहे हैं और अगर अगले चुनाव की परिपाटी में उम्मीदवारों का चयन इसी तरह कुनबे को विचलित करेगा, तो राष्ट्रीय सदमे में पार्टी का हिमाचली चेहरा भी शरीक होगा। हिमाचल सरकार के पक्ष में शिमला चुनाव ने दो तथ्यों को रेखांकित किया है और इसे भाजपा के लिए समझना आवश्यक है। विधानसभा चुनाव के पहर तक पहुंचती सरकार ने सत्ता विरोधी माहौल बनने नहीं दिया है और दूसरे यह भी कि हिमाचल में अभी एकतरफा मोदी लहर का प्रवेश नहीं हुआ है। यह दीगर है कि भाजपा का वर्तमान दौर एक रणनीतिक कौशल है। इसी लहजे में पार्टी ने कार्यक्रम चलाए हैं और अब परिवर्तन रैली के जरिए चुनावी उत्साह में अपनी संभावनाएं बुलंद कर रही है। भाजपा जिस तरह सत्ता वापसी की प्रतीक्षा कर रही है, उस लिहाज से  राजधानी का तिलक समारोह, इस कारवां का ध्वजधारक बन सकता है। आत्मविश्वास और आत्मबल के इजाफे के साथ यह पार्टी अब प्रदेश को चुनावी माहौल के करीब खड़ा करेगी, अतः सत्ता के बाकी बचे दिनों का हिसाब सरकार को देना है। क्या हिमाचल कांग्रेस शिमला चुनाव में अपनी खामियां देखेगी या सरकार अपनी पार्टी के साथ तैयारी में जुटेगी, एक बड़ा प्रश्न है। शिमला चुनाव में वास्तविक जीत उस मतदाता की है, जो स्वयं ही दावों और हकीकत के बीच फैसला करता है। मतदाता का यही जागरूक स्वभाव विधानसभा चुनाव की इबारत लिखेगा। यह वर्ग वादों के कोरे कागज पर हस्ताक्षर करने के बजाय, हकीकत की जमीन पर कांटों पर भी चलना जानता है। यह न तो सियासी नकल में प्रदेश का मूल्यांकन करता है और न ही राजनीतिक जयकारों में गर्दन हिलाता है। इसलिए पंजाब या उत्तर प्रदेश की परिस्थितियों से हटकर हिमाचल की बुनियाद पर दोनों पार्टियों की क्षमता और संभावना का विश्लेषण होगा। जनता सफल और सक्षम उम्मीदवारों की बाट जोह रही है, जो पार्टी परिवारवाद, क्षेत्रवाद और बार-बार के प्रत्याशियों से हटकर नए चेहरे उतारेगी, उसी के साथ होगी भविष्य की नई करवटें। बहरहाल शिमला चुनाव ने एक पटकथा जरूर लिखी है, जिसके आधार पर विधानसभा चुनाव का जोरदार मंचन शुरू होगा।

 भारत मैट्रीमोनी पर अपना सही संगी चुनें – निःशुल्क रजिस्टर करें !

 


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App