सड़कों पर अन्नदाता
(किशन सिंह गतवाल, सतौन, सिरमौर )
आज भारतीय किसान बेचैन है। खेत खलिहान छोड़ वह सड़कों पर है। दरअसल हमारा कृषक वर्ग उपेक्षित, शोषित और असहाय अनुभव करता है। उस पर कर्ज भार बहुत है और आज तक उसे कोरे आश्वासन मिले और निराशा ही हाथ लगी। जिसका भी दांव लगा, उसने ही किसान को छला। शोषण तो हुआ पर पोषण नहीं। आजकल सभी के पारिवारिक खर्चे बढ़ गए हैं और महंगाई की मार कृषकों पर पड़ी है। बीज, खाद और कीटनाशकों के भाव कम नहीं हैं। गोल-मोल मीठी बोलियों और गोलियों से काम नहीं चलता। चुनाव में दिए गए कर्जमाफी के वादों ने आग में घी का काम किया है। बेहतर होगा कि असंभव या दुष्कर आश्वासनों से बचा जाए। बेचारे किसानों की सहायता जरूरी है। किसानों द्वारा यदि कृषि कार्य न किया गया तो बहुत हानि होगी क्योंकि किसान को देश की रीढ़ माना गया है। अगर वह खेती नही करेगा, तो देश भूखा मर जाएगा। हम चाहे परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गए हैं, पर जब तक हमारे देश का किसान कर्जदार होगा और जब तक वह आत्महत्या करता रहेगा, तब तक हम शक्तिहीन ही गिने जाएंगे। जो किसान पूरे देश के लिए अन्न उगाता है, वही आज राजनीति के चलते गोलियों का शिकार हो रहा है। जैसे सेना के बिना देश के अस्तित्व की कल्पना नहीं कर सकते, वैसे ही किसान के बिना भी देश की कल्पना करना मुश्किल है। किसान का सड़कों पर उतरना यही बताता है कि देश में राजनीति के सिवाय कुछ भी नहीं है। किसान मरता है और नेता राजनीति करने चले आते हैं। इट्स हैपन ओनली इन इंडिया।
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