सड़क का गुंडा कौन?

By: Jun 14th, 2017 12:02 am

कांग्रेस के दो बार लोकसभा सांसद रहे संदीप दीक्षित ने देश के सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत पर जो टिप्पणी की है,उसकी सीधी-सपाट व्याख्या है कि वह जनरल को ‘सड़क का गुंडा’ करार दे रहे हैं। संदीप दिल्ली की 15 सालों तक मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के बेटे हैं। एक पुराने कांग्रेसी, संभ्रांत परिवार से उनका नाता रहा है। आखिर संदीप की राजनीतिक कुंठाएं कहां तक पहुंच गई हैं कि उन्होंने देश के सर्वोच्च सैनिक को ही ‘सड़क का गुंडा’ मान लिया है? यह शर्मनाक ही नहीं, देशद्रोह भी है और भारत राष्ट्र का अपमान भी है। सीमापार आईएसआई के साजिशकार, फौज के दल्ले आतंकी और हुकूमत तथा फौज का एक कट्टरपंथी तबका इस बयान पर ठहाके लगा रहे होंगे! आखिर हमारी सियासत इतनी ‘सड़कछाप’ कैसे हो गई? सेना और जाहिर है कि उसके तीनों प्रमुख किसी भाजपा या कांग्रेस के नहीं होते। वे तो राष्ट्रीय होते हैं। वे तो सरहदों के रखवाले हैं। राष्ट्र के प्रति उनकी पहली प्रतिबद्धता होती है। लोकतंत्र में यह अपेक्षा रहती है कि सेना,राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रति सभी राजनीतिक दलों में सहमति का भाव हो। सभी दल इन तीन व्यवस्थाओं को सियासत से परे रखें। तो फिर पूर्व सांसद एवं कांग्रेस के प्रवक्ता संदीप दीक्षित ने किस आधार पर सेना प्रमुख को गाली दी है? सवाल है कि क्या अब कांग्रेस देश में एक विमर्श को आकार देने की कोशिश में है, जिसमें वह सेना और सेना प्रमुख को कलंकित करने की पराकाष्ठा तक जा सके? कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने भी एक साक्षात्कार के दौरान सेना प्रमुख जनरल रावत के खिलाफ  टिप्पणी की थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने न तो उनकी निंदा की और न ही उनके वक्तव्य को खारिज किया। यही नहीं, पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक के संदर्भ में खुद राहुल गांधी ने ‘खून की दलाली’ सरीखे शब्दों का इस्तेमाल किया था। बेशक संदीप ने माफी मांगते हुए अपने शब्दों को वापस ले लिया है और राहुल गांधी ने भी निर्देश दिए हैं कि कोई भी नेता सेना पर टिप्पणी न करे, लेकिन यह अफसोसनुमा प्रतिक्रिया ही पर्याप्त नहीं है। कांग्रेस में मणिशंकर अय्यर, दिग्विजय सिंह और संजय निरूपम सरीखे नेताओं की पूरी परंपरा है, राहुल जिनकी जुबान पर ताला नहीं जड़ सकते। बहरहाल यह राष्ट्रहीनता कांग्रेस तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सीपीएम पार्टी के पूर्व महासचिव प्रकाश करात का आरोप यह है कि सेना प्रमुख प्रधानमंत्री मोदी की भाषा बोल रहे हैं। इसी पार्टी के वरिष्ठ लोकसभा सांसद एम सलीम का तो यहां तक मानना है कि जनरल रावत की भारतीय समाज को समझने की क्षमता और योग्यता पर ही उन्हें शक है। सीपीएम के ही मुखपत्र में बुर्जुआ इतिहासकार पार्था चटर्जी का एक लेख छापा गया है, जिसमें जनरल रावत की तुलना 1919 के जलियांवाला बाग कांड में हजारों मासूम भारतीयों को मरवा देने वाले जनरल डायर से की गई है। क्या देश के सेना प्रमुख के साथ ऐसा सियासी बर्ताव उचित है? बेशक कश्मीर के संदर्भ में जनरल रावत ने कुछ तीखे बयान दिए होंगे, जो कश्मीर के ही हालात से पनपे हैं। यदि आज कुछ पत्थरबाज युवाओं का मानस बदलने के संकेत हैं और वे सरकार के खर्च पर देश के विभिन्न हिस्सों में घूमकर विकास और वहां की जिंदगी देखना चाहते हैं, तो इसमें गुंडई क्या है? और गलत क्या है? मेजर गोगोई ने भी जीप से एक पत्थरबाज आतंकी को बांध कर सरकारी कर्मचारियों और नागरिकों को बचाया था। उसे भी ‘जनरल डायर की क्रूरता’ करार नहीं दे सकते। हमारी ही सेना और सुरक्षा बलों ने 4 दिनों में 14 आतंकियों को मार गिराया, घुसपैठिए नाकाम किए और कश्मीरी युवाओं के हृदय-परिवर्तन की कोशिश की। क्या यह सेना के मुखिया जनरल रावत की गुंडई के उदाहरण हैं? जो नेता सड़क पर सरेआम पुलिस थाना फूंकने के लिए भीड़ को उकसाते हैं, वाहनों में आग लगाने और तोड़-फोड़ करने के बयान देते हैं, विधायक ही सरेआम गैर-कानूनी आह्वान करते हैं, तो दरअसल वे नेता ही गुंडे हैं। आप समझ लीजिए कि हमारा संकेत किस ओर है। जिस सैनिक के प्राण हर समय हथेली पर रहते हैं, जो राष्ट्रहित में जूझने, लड़ने और मरने को तैयार है, उसे ‘गुंडा’ कहना ही ‘गुंडई’ है। यह बड़प्पन होता, यदि अपने गुंडे नेताओं के आधार पर सोनिया-राहुल गांधी देश से माफी मांगते और उन नेताओं के खिलाफ  कार्रवाई का विश्वास दिलाते। लेकिन ऐसे संस्कार कांग्रेस में हैं ही कहां???

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