सड़क, सवारी और सफर

By: Jun 17th, 2017 12:02 am

ढलियारा-देहरा का सफर फिर कातिल बनकर घूमता रहा और पंजाबी सवारियों को ढोती अलबेली बस इसका ग्रास बन गई। मौत के कारणों को समझते हुए खुद मौत भी परेशान होती होगी, क्योंकि सफर और रास्ता तो आस्था से भरपूर था। जाहिर तौर पर जो भी कारण बने, वे सभी हिमाचल के न होते हुए भी  प्रदेश को मातम के नजदीक खड़ा जरूर करते हैं। अमृतसर की बस ने यमदूत बनकर दस यात्रियों की जीवन यात्रा छीन ली, तो न जाने कितने परिवार जीवन भर इस सफर को नहीं भूलेंगे। हर बार तीर्थ यात्री बनकर मौत यहां क्यों कफन ओढ़कर सो जाती है, यह विषय अवश्य ही हिमाचल का है। पिछले कुछ सालों में इसी रास्ते मौत ने मंडराना शुरू किया, फिर भी प्रदेश ने भागते पर्यटक को मुकम्मल हिदायत नहीं दी। प्रायः चालक की गलती का बोझ कफन में लिपट जाता है और हिमाचल लाशों का पहरेदार बन जाता है या घायलों के उपचार में जुट जाता है। पर्यटन का दबाव जिस तरह सड़क और सफर को प्रभावित कर रहा है, उसे समझना होगा। अमृतसर से निकली बस भी यही प्रमाणित करते हुए चिंतपूर्णी पहुंची और बाद में आगे रवाना हो गई। ऐसा लगता है कि बस का चालक पर्वतीय सड़क और सफर की प्रवृत्ति से न वाकिफ था और न ही सवारियों की सुरक्षा को लेकर गंभीर रहा होगा। पहाड़ी सफर की परिभाषा में बाहरी वाहन चालकों को हम किस आधार पर छूट देते हैं। क्या हमारा दायित्व केवल एंट्री फीस की पर्ची काटने तक ही है। आश्चर्य यह कि हिमाचल के तमाम प्रवेश द्वार केवल चंद सिक्कों के बदले स्वागत करते हैं, जबकि ये प्रदेश के सूचना व कानून-व्यवस्था के तंत्र होने चाहिएं। पर्यटन, परिवहन, प्रदूषण और कानून-व्यवस्था के रूप में जब तक प्रवेश द्वार अपना दायित्व नहीं निभाएगा, तब तक इस तरह के चालक ताबूत सिर पर उठाकर हिमाचल में घूमते रहेंगे। बाहरी चालकों और वाहनों की तफतीश की एक सरल सी प्रक्रिया शुरू करते हुए, इन्हें कुछ आवश्यक हिदायतें जारी होनी चाहिएं। विडंबना यह भी कि प्रदेश में ट्रैफिक पुलिस भी अपनी नफरी व ढांचा मुकम्मल नहीं कर पाई। दौड़ते वाहनों पर नजर रखने की न कार्यप्रणाली और न ही उपकरणों की उपलब्धता मुकम्मल हुई। खास तौर पर पर्यटन सीजन के दौरान यातायात के सलीके को दुरुस्त रखने के लिए जांच-पड़ताल व चौकसी की कम्प्यूटरीकृत व्यवस्था कायम करनी पड़ेगी। ओवरलोडिंग या वाहनों की यांत्रिक स्थिति पर अंकुश नहीं लगा, तो ये मौत के संदेश वाहक ही साबित होंगे। प्रदेश के परिवहन विभाग तथा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जांच दायरे में पर्यटन यात्रा को समझना होगा। पड़ोसी राज्यों में पुराने वाहनों की बिक्री के कारण एक ऐसे पर्यटन का उदय हुआ है, जो केवल हिमाचली सड़कों को नाप कर खतरे बढ़ा रहा है। इसके अलावा सड़क यात्रा के दौरान बढ़ता मादक द्रव्यों का प्रयोग, वाहन दुर्घटनाओं का कारण बन रहा है। पर्यटन सीजन अब हिमाचली समाज के लिए आफत का सीजन भी साबित हो रहा है, अतः इसके साथ जुड़ी चुनौतियों और सुरक्षा के इंतजाम पुष्ट करने पड़ेंगे। हिमाचल के प्रवेश द्वार वास्तव में पर्यटक की सुरक्षित यात्रा को प्रमाणित नहीं करेंगे, तो खतरे सड़क से समुदाय तक पहुंचेंगे। बाहरी वाहन चालकों के रूप में पर्यटकों की एक ऐसी पीढ़ी भी प्रवेश कर रही है, जिसे सड़क सुरक्षा के नाम पर रत्ती भर भी परवाह नहीं। बहरहाल हिमाचल को तो अपने ब्लैक स्पाट पर केंद्रित सुरक्षित यातायात को रेखांकित करती व्यवस्था को चुस्त करना होगा, ताकि ढलियारा-देहरा जैसे मार्ग, मौत के घाट बनकर बार-बार न डराते रहें।

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