सरस्वती नदी

By: Jun 24th, 2017 12:05 am

सरस्वती नदी पौराणिक हिदू ग्रंथों तथा ऋग्वेद में वर्णित मुख्य नदियों में से एक है। ऋग्वेद के नदी सूक्त के एक श्लोक (10.75) में सरस्वती नदी को यमुना के पूर्व और सतलुज के पश्चिम में बहते हुए बताया गया है। उत्तर वैदिक ग्रंथों जैसे तांडय और जैमिनिय ब्राह्मण में सरस्वती नदी को मरुस्थल में सूखा हुआ बताया गया है, महाभारत भी सरस्वती नदी के मरुस्थल में विनाशन नामक जगह में अदृश्य होने का वर्णन करता है। महाभारत में सरस्वती नदी को प्लक्षवती नदी वेदस्मृति, वेदवती आदि नामों से भी बताया गया है। ऋग्वेद तथा अन्य पौराणिक वैदिक ग्रंथों में दिए सरस्वती नदी के संदर्भों के आधार पर कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि हरियाणा से राजस्थान होकर बहने वाली मौजूदा सूखी हुई घग्गर-हकरा नदी प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी की एक मुख्य सहायक नदी थी, जो 5000- 3000 ईसा पूर्व पूरे प्रवाह से बहती थी। उस समय सतलुज तथा यमुना की कुछ धाराएं सरस्वती नदी में आकर मिलती थी। इसके अतिरिक्त दो अन्य लुप्त हुई नदियां दृष्टावदी और हिरण्यवती भी सरस्वती की सहायक नदियां थी, लगभग 1900 ईसा पूर्व तक भूगर्भी बदलाव की वजह से यमुना, सतलुज ने अपना रास्ता बदल दिया तथा दृष्टावदी नदी के भी 2600 ईसा पूर्व सूख जाने के कारण सरस्वती नदी लुप्त हो गई। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदीतमा की उपाधि दी गई है। वैदिक सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी। इसरो द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि आज भी यह नदी हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से होती हुई भूमि के नीचे से होकर बहती है। सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई समुद्र में जाकर विलीन हो जाती थी। इसका वर्णन ऋग्वेद में बार-बार आता है। कई मंडलों में इसका वर्णन है। ऋग्वेद वैदिक काल में इसमें हमेशा जल रहता था। सरस्वती आज की गंगा की तरह उस समय की विशाल नदियों में से एक थी। उत्तर वैदिक काल और महाभारत काल में यह नदी बहुत सूख चुकी थी। तब सरस्वती नदी में पानी बहुत कम था, लेकिन बरसात के मौसम में इसमें पानी आ जाता था। भूगर्भी बदलाव की वजह से सरस्वती नदी का पानी गंगा में चला गया, कई विद्वान मानते हैं कि इसी वजह से गंगा के पानी की महिमा हुई, भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया। इसलिए यमुना में सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ  इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया जबकि यथार्थ में वहां तीन नदियों का संगम नहीं है। वहां केवल दो नदियां हैं। सरस्वती कभी भी इलाहाबाद तक नहीं पहुंची। ऋग्वेद में संदर्भ- सरस्वती नदी का ऋग्वेद की चौथे पुस्तक छोड़कर सभी पुस्तकों में कई बार उल्लेख किया गया है। केवल यही ऐसी नदी है जिसके लिए ऋग्वेद की छंद संख्या 6.61, 7.95 और 7.96 में पूरी तरह से समर्पित भजन दिए गए है। वैदिक काल में सरस्वती की बड़ी महिमा थी और इसे परम पवित्र नदी माना जाता था, क्योंकि इसके तट के पास रहकर तथा इसी नदी के पानी का सेवन करते हुए ऋषियों ने वेदों को रचा और वैदिक ज्ञान का विस्तार किया। इसी कारण सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी के रूप में भी पूजा जाने लगा। ऋग्वेद में केवल नदी देवी के रूप में वर्णित है ,इसकी वंदना तीन संपूर्ण तथा अनेक प्रकीर्ण मंत्रों में की गई है, किंतु ब्राह्मण गं्रथों में इसे वाणी की देवी या वाच के रूप में देखा गया क्योंकि तब तक यह लुप्त हो चुकी थी परंतु इसकी महिमा लुप्त नहीं हुई और उत्तर वैदिक काल में सरस्वती को मुख्यतः वाणी के अतिरिक्त बुद्धि या विद्या की अधिष्ठात्री देवी भी माना गया है और ब्रह्मा की पत्नी के रूप में इसकी वंदना के गीत गाए गए है। ऋग्वेद मे सरस्वती को नदीतमा की उपाधि दी गई है।

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