सिर्फ 60 साल की उम्र में एडमिशन
सीखने-पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। ‘जब जागो, तभी सबेरा’, जी हां, इस कहावत को सही कर दिखाया है महाराष्ट्र की कुछ दादी-अम्माओं ने। शिक्षा पाने में भला उम्र कैसे आड़े आ सकती है। इस बात को मुंबई के उपनगरीय इलाके थाणे के फंगाने गांव का ‘आजीबाईची शाला’ स्कूल बल देता है। यह स्कूल मोतीराम दलाल चैरिटेबल ट्रस्ट की सहायता से चल रहा है और इस अनोखे स्कूल को योगेंद्र बांगड़ ने शुरू किया है। यह स्कूल अपने आप में इसलिए खास है, क्योंकि यहां आम लोगों का एडमिशन नहीं होता। यहां उन्हीं खास महिलाओं का एडमिशन होता है, जो कम से कम 60 साल की हैं। इस स्कूल में केवल दादी-नानियां ही पढ़ती हैं। स्कूल में इन ओल्ड एज स्टूडेंट के लिए ड्रेस कोड भी है और वह है गुलाबी रंगी की साड़ी। महिलाओं को गुलाबी साड़ी, स्कूल बैग, स्लेट और चॉक-पेंसिल मोतीराम चैरिटेबल ट्रस्ट की ओर से दी जाती है। फिलहाल इस स्कूल में 29 महिलाएं पढ़ाई कर रही हैं। एक कमरे के स्कूल में हफ्ते में छह दिन पढ़ाई होती है। हर दिन दो घंटे की क्लास चलती है। इस स्कूल में महिलाओं को मराठी भाषा में शिक्षा दी जाती है। इसके साथ ही उन्हें गणित विषय में जोड़, घटा, गुणा और भाग करना भी सिखाया जाता है।
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