अपने दौर के बाली

By: Jul 5th, 2017 12:02 am

किसी भी सरकार की प्रस्तुति इसके मंत्रियों के हिसाब से हो सकती है, लेकिन हिमाचल में मुख्यमंत्री का ही पलड़ा सदा भारी रहता है। यह विडंबना है कि विजन की पड़ताल में चंद ओहदेदार ही परिचय पाते हैं, जबकि सुस्त धमनियों में तो इस बार भी कई मंत्री शरीक हैं। सक्रियता के अंजाम में वीरभद्र सरकार के मंत्रियों का लेखा-जोखा अगर तसल्ली से देखा जाएगा, तो परिवहन मंत्री का जिक्र काफी महत्त्व रखता है। परिवहन विभाग की खाली हथेली पर तिल उगाने जैसी मशक्कत में अगर कोई मंत्री कामयाब है, तो हिमाचल की हर मंजिल पर पथ परिवहन निगम के चिन्ह अंगीकार किए जाएंगे। हम निगम के अलाभकारी आचरण से वाकिफ होते हुए भी, इसकी करवटों में प्रतिस्पर्धा की ताजगी और मंत्री के निरंतर प्रयोगों का ब्यौरा देख सकते हैं। विभागीय जीवंतता के खुद उदाहरण बने परिवहन मंत्री जीएस बाली में ऐसी काबिलीयत तो है कि वह अपनी छाप से विभाग को खींचते हैं। कम से कम एचआरटीसी की चर्चा एक सुखद अध्याय की तरह होती है, क्योंकि हिमाचल में परिवहन के मायने काफी हद तक बदले हैं। पहले जवाहर लाल नेहरू अर्बन मिशन के वाहनों पर अपनी पताका फहरा और अब वोल्वो के पहिए घुमाकर, मंत्री ने सारे हिमाचल में उपस्थिति दर्ज की है। बेशक आलोचक भी बाली के व्यापारिक विजन की तारीफ करते हैं, लेकिन विशुद्ध राजनीति में उनकी अपनी पार्टी में इस कौशल का वजन महसूस नहीं किया जाता। कम से कम चुनावी पहर में कांग्रेसी मंत्रियों का उल्लेख जब राजनीतिक तस्वीर की तरह होगा, तो सभी पहलवान साबित नहीं होंगे, लेकिन बाली का अपना सूचकांक है और इसकी चर्चा हर मोर्चे पर होना स्वाभाविक है। एक बार फिर वह एचआरटीसी के जरिए अपनी हस्ती की पैमाइश करते हुए विजन की तामील करते हैं। यह दीगर है कि इस दौर के बाली ने परिवहन सेवाओं की मंजिल आगे बढ़ाई, लेकिन बस स्टैंड परियोजनाओं में वह अपना सिक्का नहीं जमा सके। वह सार्वजनिक आपूर्ति के जरिए डिपो की दालों का स्वाद बदलते रहे, लेकिन निरंतरता बनाए नहीं चल सके। बावजूद इसके एक मंत्री का प्रदर्शन अगर दिखाई देता है, तो कई अन्य अपनी विभागीय दक्षता का समायोजन क्यों नहीं कर पाए। खैर जब राजनीतिक लड़ाई आर-पार तक होगी, तो सबसे पहले कांग्रेसी मंत्रियों की ही पगडि़यां उछलेंगी। भाजपा की शिकारी निगाह कितने मंत्रियों को गिनती है, यह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन बाली की सियासत का संयोग विपक्ष को तिल का ताड़ बनाने में असफल करता रहा है। ऐसे में जबकि कांगड़ा में भाजपा खुद को प्रतिष्ठित करने में लगी है और क्षेत्रीय राजनीति में सबसे अधिक हसरतें अगर परिवहन मंत्री ने जाहिर की हैं, तो यह मुकाबला भी रोचक होगा। यहां कांगड़ा की दो सियासी शहादतें हमेशा याद रहेंगी और आश्चर्य यह कि ये दोनों नेता आज भी प्रासंगिकता की लड़ाई में शरीक हैं। यह फैसला करना आसान नहीं कि अधिक घायल डा. राजन सुशांत हुए या इस प्रवृत्ति का बोलबाला विजय सिंह मनकोटिया की वसीयत बन चुका है। बहरहाल सुशांत वापसी का रास्ता चुनकर भाजपा को देख रहे हैं, जबकि मनकोटिया फिर मुख्यमंत्री के खिलाफ मीडिया युद्ध में बिगुल फूंक रहे हैं। ऐसे में कांगड़ा के राजनीतिक इतिहास के टूटे स्तंभ तो बेशुमार दिखाई देंगे, लेकिन अपने वजूद को लिखने की आजमाइश में जीएस बाली की बतौर मंत्री हैसियत बढ़ती रही है। पूरे प्रदेश की जनता अगर अपने आसपास दो विभाग देख रही है, तो दोनों की चाबी बाली के पास है। कहने को कई अन्य विभाग भी जनता के करीब होने चाहिएं और उनके प्रदर्शन का स्पर्श महसूस किया जा सकता है, बशर्ते संबंधित मंत्री अपना प्रभाव बनाते। हम परिवहन या खाद्य आपूर्ति मंत्रालय की कमजोरियों को कतई नजरअंदाज नहीं कर सकते, लेकिन योजनाओं और परियोजनाओं में अगर कहीं निखार है, तो बात होगी। अब पुनः बाली के बेड़े में बसें आएंगी तो ये चलेंगी और कई दोस्ताना रूट भी चुनेंगी। वोल्वो के जरिए हिमाचल परिवहन ने इस साल के पर्यटन को चार चांद लगाए हैं, तो अब बस स्टैंड की मिलकीयत में मंत्री का शेयर भाव सामने आएगा। यह दीगर है कि पांच साल गुजरने के बावजूद हमीरपुर बस स्टैंड में एक भी ईंट नहीं लगी, लेकिन अब राजनीतिक खाके में इसका भी शिलान्यास होगा। बस स्टैंड के नए मानकों में दर्ज हो रहे वातानुकूलित प्रतीक्षालय, बच्चों के खेल कक्ष तथा स्थानीय सब्जियों की बिक्री का इंतजाम करके परिवहन मंत्री भविष्य की कल्पना और अपने विजन की प्रस्तुति दे रहे हैं। मतदाता के मुगालते में हर पहल एक नतीजा बनकर दर्ज होती है और बाली यह सब बताने में माहिर सिद्ध हुए हैं।


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