इस चेहरे के अनेक रूप

By: Jul 8th, 2017 12:05 am

किसी भी चुनाव की ताकत का अंदाजा लगाना मुश्किल है और जब देश, नेता, पार्टियां और समाधान एकत्रित होकर गंगा सी पवित्रता दिखाने लगें, तो मानो भविष्य भी नहा लेता है। यही कसरतें हिमाचल के नजदीक खड़ी होकर हर किसी को पुकार रही हैं, तो हमारे आसपास जादू का घेरा बढ़ रहा है। लंबे होर्डिंग के किसी छोटे से कोने पर चस्पां पोस्टर की वकालत में महापुरुष होने का परिचय और सियासी कंगाली के आलम में नेताओं के फौलादी कयास की बदौलत चुनाव कितने रोमांचक हो सकते हैं, यह हिमाचली फिजाओं से बेहतर कौन जान सकता है। ताजातरीन उदाहरण बने सेवानिवृत्त मेजर विजय सिंह मनकोटिया, जो इससे पहले भी कई बार अपना राजनीतिक शुद्धिकरण करके अपना पूरा फलसफा बना चुके हैं, पुनः साधु और शैतानों के बीच अंतर बता रहे हैं। पूर्व फौजी हैं, तो राजनीति को हथियार के मानिंद देखना उनकी फितरत का पैमाना रहा। हालांकि जनता यह नहीं समझ पाई कि मनकोटिया बार-बार पाला या डगर क्यों बदल लेते हैं। मनकोटिया के आचरण को समझते हुए हम यह अंदाजा लगा सकते हैं कि राजनीति के भीतर खुद को कायम और कामयाब बनाए रखना, वास्तव में कितना कठिन है। इसीलिए शांता कुमार सरीखे वरिष्ठ नेता भी राजनीतिक व्यावहारिकता में खुद को पारंगत नहीं मानते। ऐसे में मनकोटिया का पांच बार विधायक बनना इतनी अहमियत तो रखता होगा कि इस शख्स से हिमाचल निर्माण का रास्ता पूछा जाए। ऐसा कुछ हुआ नहीं, तो इस पर मनकोटिया को गौर करना होगा और शाहपुर के विश्लेषण में भी जो अंधेरे दिखाई देते हैं, वहां जनप्रतिनिधि की मिलकीयत में खोट रहा है। बेशक आक्रोश की राजनीति में जन संवेदनाएं बटोरना आसान है और इस परिपाटी में मेजर की दमक का कोई सानी नहीं, लेकिन बेहतर क्षमता को साधे बिना कोई भी व्यक्तित्व सफल नहीं माना जा सकता। जीवन रथ को सांप-सीढ़ी का खेल नहीं बनाया जा सकता और इन गलतियों में किसी नेता के नेतृत्व की डगर की सलामती असंभव है। मनकोटिया ने राजनीति में सबसे अधिक गड्ढे खोदे और बार-बार इन्हें ही भरते रहे। हम न तो उनके व वीरभद्र सिंह के बीच के फासलों को माप सकते और न ही मनकोटिया के राजनीतिक फैसलों को पूज सकते हैं। इस चेहरे के अनेक रूप अगर बने, तो मनकोटिया सर्वप्रथम यह भी देखें कि वह कितनी बार कांग्रेस के भीतर आए और कितनी बार बाहर निकले। कितनी बार वीरभद्र सिंह के खिलाफ शेर बने और कितनी बार ढेर हुए। इस बार भी ऐसी क्या कमजोरी रही कि बिना विधानसभा चुनाव जीते उन्हें पर्यटन विकास बोर्ड का उपाध्यक्ष पद ज्यादा उपयोगी लगा और यह क्यों न पूछा जाए कि इस दायित्व के तहत जो मजे लूटे उनके प्रति जवाबदेही क्या रही। जब भाजपा अनावश्यक पदों पर कांग्रेसी नेताओं की सवारी का मुद्दा उठा रही थी, तो मनकोटिया क्यों चिपके रहे। राजनीति के जिस आचरण पर वह अब अंगुली उठा रहे हैं, तो पिछले कुछ वर्ष क्यों पिछलग्गू बने रहे। उन्होंने आज तक जितने भी आरोप लगाए, उनके प्रति मनकोटिया कितने ईमानदार रहे। राजनीतिक मुद्दों की सबसे अधिक लुगदी जाहिर तौर पर मनकोटिया के खाते में आएगी। यह भी एक हकीकत है कि वीरभद्र सिंह को सबसे अधिक कोसने व ललकारने का रिकार्ड विपक्ष से कहीं अधिक विजय सिंह मनकोटिया के नाम है। सबसे घृणित व अपमानजनक आरोप लगाने के बाद क्यों बार-बार मनकोटिया अपना रुख बदलकर वीरभद्र सिंह के ही आंचल में छिपते रहे। इस बार भी कांग्रेस में राजनीतिक पर्यटन पूरा करके पुनः खाली कारतूस की तरह अब शुचिता की बात कर रहे हैं। हैरानी तो यह कि मतदाता वर्षों बाद भी नेताओं के बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच खुद को रेखांकित नहीं कर पा रहा। मनकोटिया एक अच्छे व्यक्तित्व की मीठी गोली की तरह असर रखते हैं, लेकिन जब शक्कर पिघल जाती है, तो जहर स्पष्ट होता है। वीरभद्र बनाम मनकोटिया के युद्ध का न तो समय अब बचा है और न ही बूढ़ी राजनीति के आगे युवा क्षमता को नजरअंदाज किया जा सकता है। कांग्रेस को अपनी चुनावी ताकत के बीच फंसे घुन को हटाना ही पड़ेगा। अंततः एक बड़ा सवाल मनकोटिया की विश्वसनीयता का है, जिसका उत्तर ढूंढते हुए उन्हें यह समझना है कि पूरे राजनीतिक चक्र में इस लिहाज से उनका मूल्यांकन किस कठघरे में खड़ा है।

भारत मैट्रीमोनी पर अपना सही संगी चुनें – निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App