एक राष्ट्र, एक बाजार

By: Jul 17th, 2017 12:01 am

(डा. राजेंद्र प्रसाद शर्मा (ई-मेल के मार्फत) )

अनके अवरोधों के बावजूद पहली जुलाई से सारे देश में ‘एक राष्ट्र-एक कर-एक बाजार’ का सपना पूरा हो ही गया। संसद के सेंट्रल हॉल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बटन दबाने के साथ ही कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में एक कर व्यवस्था लागू हो गई थी। केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा करों के साथ ही उपकरों के रूप में देश के नागरिकों की जेब पर पड़ने वाले अतिरिक्त भार से राहत मिल गई। एक मोटे अनुमान के अनुसार देश में 17 तरह के कर और 23 तरह के उपकर लागू थे। इससे पूरी कर व्यवस्था बेहद जटिल बन चुकी थी। सरकार की मानें तो जीएसटी के लागू होने से आम नागरिकों को 500 तरह के करों से राहत मिली है। जीएसटी के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव भविष्य के गर्भ में हैं, पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने वित्त मंत्री रहते जीएसटी लागू करने के प्रयास किए थे, उनके फलीभूत होने पर उन्होंने अपार संतोष व्यक्त किया। आजादी के बाद देश में आर्थिक सुधारों की दिशा में यह चौथा बड़ा कदम माना जा सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीकरण कर बड़ा कदम उठाया। इसके बाद नरसिंह राव के समय आर्थिक उदारीकरण ने देश में विकास की राह खोल दी। पिछले साल नवंबर में  विमुद्रीकरण आर्थिक सुधारों की दिशा में अग्रगामी कदम बताया गया। अब ‘एक राष्ट्र, एक कर’ का कदम बड़े आर्थिक बदलाव के रूप में देखा जाना चाहिए। जब आम उपभोक्ता कर पेचिदगियों दो चार हो रहा था, तो जीएसटी से उसे कोई शिकायत नहीं हो सकती। इसलिए केवल विरोध के लिए विरोध के स्थान पर संवैधानिक संस्थाओं व व्यवस्थाओं की अहमियत को समझना होगा। विपक्ष पर खास कर यह बात लागू होती है।

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