कभी 80 ट्रक जाते थे दिल्ली, अब आठ

By: Jul 5th, 2017 12:05 am

राजगढ़ —  मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह द्वारा दिया गया राजगढ़ को विशेष सम्मान ‘पीच वैली ऑफ हिमाचल प्रदेश’अब उक्त सम्मान के अनुरूप अपना संबोधन बरकरार नहीं रख पा रहा है। राजगढ़ के आड़ू का उत्पादन साल दर साल गिरता ही जा रहा है। कभी समय था जब क्षेत्र से एक दिन में 70-80 गाडि़यां दिल्ली की मंडी आजादपुर में तहलका मचा देती थी और आज भी समय है जब मात्र सात-आठ गाडि़यां मुश्किल से ही दिल्ली मंडी में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने को मजबूर हैं। कभी माइको प्लाज्मा तो कभी फायटो प्लाज्मा की जानलेवा बीमारियां तो कभी अन्य स्टोन फू्रट तो कभी सेब की नई-नई किस्में आड़ू के भविष्य को प्रभावित करने में जुटी हुई हैं। राजगढ़ में आड़ू की कहानी कोई अधिक पुरानी नहीं है। प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री डा. वाईएस परमार ने राजगढ़ को भी कोटगढ़ की तर्ज पर सेब बाहुल्य क्षेत्र बनाना चाहा था। कोटगढ़ से सेब के पौधे लाए गए और अग्रणी किसानों ने लगाने आरंभ कर दिए, मगर इस नर्सरी खरीद पर कोटगढ़ के नर्सरी मालिक धोखा दे गए। उन्होंने किसी को रॉयल ही रॉयल दिए और किसी को गोल्डन ही गोल्डन। ध्यान रहे गोल्डन पोलेनाइजर का काम करता है और रॉयल सेब की सबसे अच्छी किस्म है, लेकिन गोल्डन के बिना इसमें पोलीनेशन नहीं होता और सेब नहीं लगते। इसी ठगी के चलते सात-आठ साल बाद रॉयल नहीं लगे और गोल्डन के भाव नहीं मिले जिसके परिणामस्वरूप राजगढ़ क्षेत्र कोटगढ़ नहीं बन सका। इसी दौरान लगभग 40 वर्ष पहले भाणत गांव के लक्ष्मी चंद वर्मा ने आड़ू को सेब का विकल्प बनाने की योजना बनाई और प्रयोग के तौर पर बागीचे में लगे आड़ू के कुछ पौधों से कलमें लेकर स्थानीय किस्म के आड़ू पर ग्राफ्ट कर ली। अगले साल उन्हें सेब के बीच में रोप दिया। चार साल बाद अच्छे आड़ू की पैदावार हुई तो बेचने की मुश्किल आ गई। कुछ वर्षों तक गांव-गांव जाकर गेहूं मक्की के साथ बदलते रहे, मगर कुछ जमी नहीं बात। फिर दिल्ली के सेब आढ़तियों को दिए और कहा कि लोगों को इसका स्वाद चखाओ। उनको पसंद आ गया और आड़ू की मंडी खुल गई। उसके बाद तो क्षेत्र में आड़ू के बागीचों की भरमार हो गई और एक समय ऐसा आया कि आड़ू फेंकने के लिए भी पैसे देने पड़े थे जब बिके नहीं और पक गए।  आड़ू लगभग 10 गुणा कम हो गया है। इस कारण भाव आजकल अच्छे मिल रहे हैं परंतु अब आड़ू ही नहीं रहे तो अच्छे भाव का क्या लाभ। यदि सभी पहलुओं पर गौर किया जाए तो उनमें प्रमुख कारण के तौर पर आड़ू के अच्छे दाम न मिलना, आड़ू का लाइलाज बीमारियों की चपेट में आ जाना, क्षेत्र में आड़ू आधारित उद्योगों का न लगना आदि है। प्रदेश सरकार को इस दिशा में कारगर कदम उठाने होंगे।


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