गोरक्षा पर प्रधानमंत्री मोदी

By: Jul 1st, 2017 12:02 am

प्रधानमंत्री मोदी ने एक बार फिर गोरक्षा के नाम पर हिंसा का मुद्दा उठाया है। उन्होंने भावुकता में यह सवाल भी किया कि क्या किसी इनसान को मारना गोरक्षा या गोसेवा है? प्रधानमंत्री ने गुजरात में यह मुद्दा उठाते हुए कहा कि गांधी और विनोबा भावे सबसे बड़े गोभक्त थे, लिहाजा उनसे कुछ सीखना चाहिए। बेशक गाय हमारी माता है। वेदों में इसका उल्लेख है। माता इसलिए नहीं कि उसने हमें जन्म दिया है। गाय को सौ लोगों का भोजन माना जाता है, क्योंकि औसत गाय के दूध से पुराने जमाने में खीर बनाकर परिवार अपना पेट भरा करते थे। हमारा यह भी दावा नहीं है कि गाय के भीतर देवी-देवताओं का बास है या समुद्र मंथन के दौरान वह प्रकट हुईं। ये प्राचीन मिथक भी हो सकते हैं, लेकिन मानव सभ्यता के विकास में गाय मनुष्य के साथ रही है। दोनों का ऐसा भावनात्मक रिश्ता रहा है कि किसी की मौत हो जाने या चोटिल होने पर गाय की आंख में आंसू देखे जा सकते हैं। यह अनुभव तो कभी भी किया जा सकता है कि मोदी ने सवाल हिंसा को लेकर उठाया है। गोरक्षा के नाम पर कथित गोरक्षकों ने लोगों की जो पिटाई की है, हत्याएं तक की गई हैं। सवाल महज यह है कि उन हरकतों को गोरक्षा, गोसेवा कैसे मान लिया जाए, जो लोग गोमांस की दलीलें देते हैं, उनसे भी सवाल है कि जीने का अधिकार तो जीवों को भी है। गाय ही क्यों, अन्य पशुओं और जीवों की हत्या सिर्फ पेट भर खाने के लिए ही क्यों की जाए? मुगल शासक बाबर ने अपने बेटे हुमायूं को विरासत में नसीहत दी थी कि यदि हिंदुओं पर सल्तनत कायम रखनी है, तो गाय को मत काटना। बहादुरशाह जफर ने भी कहा था कि यदि मुल्क में अमन-चैन कायम रखना है, तो गउओं को काटना बंद किया जाए। रमजान के पाक महीने में कई मुसलमान गाय का दूध पीकर रोजे की शुरुआत करते हैं। आखिर गाय में ऐसा कुछ तो होगा कि मुस्लिम परंपराएं भी गोवादी रही हैं। गोमूत्र, गोबर, सींगों में भयानक रोगों के औषध इलाज की क्षमता है, यह तो प्रयोगों से ही साबित हो चुका है। गाय ने ही बैल को जन्म दिया है, जिसने हमें खेती करना सिखाया और हमने स्थिर जीवन जीना शुरू किया। जंगली मानव किसान बना। यदि कोई गोमाता को काटता और उसका मांस खाता है, तो वह किसी दिन अपने मां-बाप को काटकर भी खा सकता है। इस संभावना पर चौंका क्यों जाए कि मोदी ने हिंसा का मुद्दा उठाया है और नसीहत दी है कि गोरक्षा के नाम पर इनसानों का कत्ल न किया जाए। तो इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचना और विमर्श करना चाहिए। हम एक संघीय देश के नागरिक हैं। पुलिस और ऐसी गुंडागर्दी के मामले राज्य सरकारों के अधीन हैं। फिर सिर्फ अपील कर सकते हैं। फिर भी सभी देश इस मुद्दे पर सहमत हैं, तो संसद से भी एक कानून पारित कराया जा सकता है। भीड़ की हिंसा और हत्याएं बिलकुल नामंजूर होनी चाहिएं। प्रधानमंत्री मोदी ने यही मुद्दा दिल्ली के टाउन हाल में अगस्त, 2016 में भी उठाया था। तब उन्होंने गोरक्षकों के मुखौटों के असामाजिक गुंडे होने की तल्ख बात कही थी। विहिप के एक तबके में इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। अब फिर पीएम मोदी ने चुप्पी तोड़ी है और किसी भी तरह के हमलों और हत्याओं को, गोरक्षा के नाम पर खारिज किया है। क्या गोरक्षा वाले गुंडे पीएम की नसीहत को मानेंगे? यह एक यक्ष प्रश्न है।


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