जी-20 का ‘आतंकी’ सरोकार

By: Jul 11th, 2017 12:02 am

दुनिया के 20 ताकतवर और आर्थिक तौर पर संपन्न देशों का सम्मेलन समाप्त हुआ। जी-20 के अंतरराष्ट्रीय आयोजन की बुनियादी चिंता कारोबार और आर्थिक संबंधों की होनी चाहिए, लेकिन इन देशों की सोच रही है कि ये समीकरण और संबंध  तभी सामान्य रह पाएंगे, जब देश परस्पर और वैश्विक स्तर पर स्थिर और शांत होंगे। दुर्भाग्य और विडंबना है कि हालात ऐसे नहीं हैं। आतंकवाद से चीन का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र अस्त-व्यस्त है। आतंकी हमले जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन सरीखे ताकतवर यूरोपीय देशों को अकाल मौत की ओर धकेल रहे हैं। बेशक अमरीका के भीतर एक लंबे अंतराल से कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं किया गया है, लेकिन 9/11 हमले की त्रासदी, पीड़ा और ढेर होती अमरीकी छवि को आज तक भुलाया नहीं जा सका है। बेशक जी-20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों और प्रधानमंत्रियों ने सामूहिक और द्विपक्षीय स्तर पर आर्थिक और कारोबारी संबंधों की चर्चा की होगी, लेकिन घोषणा पत्र का प्राथमिक बिंदु रहा आतंकवाद। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री की भूमिका खास रही। चीन सरीखे देश ने भी भारत के आतंकी संघर्षों का उल्लेख किया और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की सराहना की। जी-20 के मंच पर तय किया गया कि आतंकवाद के खिलाफ सभी देश साझा तौर पर लड़ेंगे। आतंकवाद को पनाह और प्रश्रय देने वाले देशों को जी-20 में शामिल नहीं किया जाएगा। आतंकवाद के लिए फंडिंग करने वाले और हथियार मुहैया कराने वाले देशों पर भी पाबंदी चस्पां की जाएगी। संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के आतंकवाद संबंधी जो भी प्रस्ताव हैं, उन्हें लागू किया जाएगा। सुरक्षा परिषद आतंकवाद की वैश्विक परिभाषा भी तय करेगी। जी-20 में पारित इन बिंदुओं का विश्लेषण किया जाए, तो साफ संकेत मिलेंगे कि पाकिस्तान का नाम लिए बिना ही उल्लेख किया गया है। पाकिस्तान के अलावा लीबिया, लेबनान, सूडान, सीरिया सरीखे देश भी इस दायरे में शामिल हो सकते हैं, लेकिन उन देशों के साथ चीन के अंतरंग रिश्ते नहीं हैं। यदि जी-20 के पारित प्रस्ताव पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी हस्ताक्षर किए हैं, तो बेशक पाकिस्तान के मद्देनजर किए होंगे। अब अतंरराष्ट्रीय स्तर पर चीन के लिए पाक परस्त आतंकवाद का बचाव करना मुश्किल होगा। अब संयुक्त राष्ट्र में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना आतंकी मसूद अजहर को बचाने के लिए चीन को व्यापक तार्किक कारण बताने होंगे। साफ है कि चीन अब पाकिस्तान की आतंकी हरकतों का ज्यादा बचाव नहीं कर पाएगा। यदि सुरक्षा परिषद में अमरीका या भारत के स्तर पर पाक को ‘आतंकी देश’ घोषित करने का कोई प्रसताव लाया जाता है, तो चीन वीटो पावर का इस्तेमाल करने का दुस्साहस नहीं कर पाएगा। आतंकवाद के कई नाम और रूप हैं। प्रधानमंत्री का मानना था कि अल कायदा से आईएसआईएस और बोको हरम तक और लश्कर-ए-तोएबा, जैश-ए-मोहम्मद, हक्कानी नेटवर्क और तालिबान तक आतंकवाद के नाम भिन्न हैं, लेकिन उनका बुनियादी एजेंडा एक ही है। लिहाजा प्रहार उस पर भी किया जाना चाहिए। जी-20 के देश आतंकियों के नामों की सूची और खूफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान कमोबेश जरूर करेंगे। यदि इन साझा प्रयासों के बावजूद आतंकवाद पर अंकुश लगता है, तो कमोबेश जी-20 देशों की बड़ी सफलता मानी जाएगी। अमरीका और रूस ने सीरिया में युद्ध विराम की घोषणा की है। सीरिया आईएस का रणक्षेत्र रहा है। असंख्य मिसाइलें और बम फेंकने के बावजूद आईएस का अस्तित्व बरकरार है और सरगना बगदादी भी जिंदा है। शायद जी-20 देशों ने इस बिंदु पर भी विमर्श किया होगा। युद्ध विराम एक सुखद और सकारात्मक शुरुआत है, लेकिन अमरीका और रूस साझा तौर पर यह भी रणनीति बनाएं कि आखिर बगदादी का खात्मा कैसे संभव है। बोको हरम भी इनसानियत के लिए एक बर्बर चुनौती है। मौजूदा दौर में आईएस और बोको का सर्वनाश किया जाएगा, तभी आतंकवाद के समूल नाश पर सोचा जा सकता है। यह तभी संभव है, जब जी-20 देश स्थानीय ताकतों को भी साथ लेकर चलें। जिन देशों में इन आतंकी राक्षसों की सक्रियता और विस्तार ज्यादा है वे जी-20 के सदस्य नहीं हैं, लिहाजा स्थानीय हुकूमतों का सहयोग जरूरी है। बहरहाल जी-20 के बीते सम्मेलनों में भी आतंकवाद पर प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं, लेकिन आतंकवाद यथावत के बजाय बढ़ ही रहा है, लिहाजा इस बार संकल्प  के तौर पर अमल में लाया जाना चाहिए। आतंकवाद कोई छोटी सी सीमित चुनौती नहीं है।

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