थैलेसीमिया की चपेट में स्कूली छात्र

By: Jul 24th, 2017 12:15 am

newsशिमला — प्रदेश सरकार की ओर से स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी कई बीमारियों के टेस्ट तक की सुविधा प्रदेश में नहीं है। अगर किसी को थैलेसीमिया का टेस्ट करवाना हो तो उसे सीधे पीजीआई जाना पड़ता है। थैलेसीमिया को लेकर प्रदेश में विभाग की ओर से जो सैंपल सर्वे किया गया है, उसमें चौंकाने वाले तथ्य  सामने आए हैं। प्रदेश के स्कूलों में एक फीसदी बच्चे थैलेसीमिया के शिकार हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत तीन फीसदी की है। जो सर्वे हुआ, उसमें करीब तीन हजार बच्चों के सैंपल लिए गए थे। इस सैंपल के आधार पर विभागीय रिपोर्ट के मुताबिक करीब दो लाख बच्चे थैलेसीमिया की चपेट में हैं, जबकि प्रदेश के हालात ये हैं कि यहां के अस्पतालों में थैलेसीमिया के टेस्ट ही नहीं होते। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि अभी तक प्रदेश के किसी भी अस्पताल में थैलेसीमिया की टेस्ट मशीन नहीं लग पाई है। हैरानी की बात है कि आईजीएमसी जो प्रदेश का सबसे बड़ा अस्पताल है वहां भी यह टेस्ट नहीं होता। प्रदेश में थैलेसीमिया के कितने रोगी हैं, इसका विभाग के पास अभी तक कोई डाटा ही नहीं है। प्रदेश में थैलेसीमिया को लेकर अभी तक स्वास्थ्य विभाग के पास कोई भी डाटा नहीं है। न तो विभाग के पास ऐसा कोई रिकार्ड है कि कितने लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं और न ही अस्पतालों में इलाज के लिए आने वाले मरीजों का ही कोई निश्चित आंकड़ा तैयार किया गया है। थैलेसीमिया एक माता-पिता से बच्चों में आने वाली आनुवांशिक बीमारी है, जो कि एक पैदायशी रक्त विचार है। थैलेसीमिया बच्चों को माता-पिता से अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्त रोग है। इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ी हो जाती है, जिसके कारण रक्तक्षीणता के लक्षण प्रकट होते हैं। इसकी पहचान तीन माह की आयु के बाद ही होती है। इसमें रोगी बच्चे के शरीर में रक्त की भारी कमी होने लगती है। सामान्य तौर पर खून में लाल रक्त कोशिकाओं की उम्र 120 होती है, लेकिन थैलेसीमिया के कारण इनकी उम्र कम होकर करीब 20 दिन ही रह जाती है। इसका सीधा प्रभाव हीमोग्लोबिन पर पड़ता है।

यह है थैलेसीमिया…

* अगर मां-बाप दोनों थैलेसीमिया कैरियर हों तो 25 प्रतिशत बच्चों को थैलेसीमिया रोग होना संभावित है * भारत में लगभग एक लाख थैलेसीमिया बच्चों को हर महीने खून चढ़ाया जाता है * एक थैलेसीमिक बच्चे पर हर वर्ष लगभग हजारों रुपए खर्च करने पर भी लंबी उम्र की उम्मीद कम रहती है *  भारत में हर 100 लोगों में से तीन-चार व्यक्ति थैलेसीमिया कैरियर है * हिमाचल प्रदेश में लगभग दो लाख लोग थैलेसीमिया कैरियर हो सकते हैं * छोटे बच्चे में खून की कमी, थकावट और वजन न बढ़ना इत्यादि लक्षणों से थैलेसीमिया का पहली बार पता चलता है

दो तरह का होता है थैलेसीमिया

यदि पैदा होने वाले बच्चे के माता-पिता दोनों के जींस में माइनर थैलेसीमिया होता है, तो बच्चे में मेजर हो सकता है, जो काफी घातक हो सकता है, लेकिन अभिभावक में से एक में ही माइनर थैलेसीमिया होने पर किसी बच्चे को खतरा नहीं होता। यदि माता-पिता दोनों को माइनर रोग है, तब भी बच्चे को यह रोग होने के 25 प्रतिशत संभावना है। इसलिए विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों को जांच करवाने की सलाह चिकित्सकों की ओर से दी जाती है।

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