नियोजित विकास का पिछड़ापन

By: Jul 3rd, 2017 12:02 am

पंद्रह हिमाचली कस्बों के नियोजन में शहरी उम्मीदों की पड़ताल होगी, तो इसके उत्तर में डिवेलपमेंट प्लान का सांचा प्रस्तुत होगा। शहरी नियोजन की करवटों में 15 नई योजनाओं में समाहित हो रहे सुजानपुर, वाकनाघाट, धौलाकुआं, नारकंडा, मैहतपुर, गरली-परागपुर, चामुंडा, खजियार, भरमौर व सराहन जैसे स्थान अपनी समीक्षा कर सकते हैं। बेशक हिमाचल का नियोजित विकास कहीं पीछे चल रहा है, जबकि शहरी दृश्य व दृश्यावलियां नवनिर्माण के आगे छिप रही हैं। इस दौरान गांव अपनी निर्मलता, सहजता और व्यावहारिकता भूल कर औपचारिकता के आवरण में चले गए। प्राकृतिक स्रोत और प्रकृति से समन्वय टूट गया और इमारतों के जंगल में सामुदायिक भावना क्षीण हो गई। चयनित स्थलों के भविष्य को देखते हुए समाधान की एक कोशिश  इनकी विकास योजनाओं में होगी, लेकिन सबसे पहले गांव और शहरी परिपाटी में आदर्श भी तो स्पष्ट हों। पूरे प्रदेश के लिए शहरी नियोजन के दिशा निर्देश अगर खुद नहीं चल सकते, तो सीमित परिधि के उपचार की बैसाखियां भी टूटेंगी। विभागीय कसरतों के मुगालते में पनप रहे अवैध निर्माण को क्या कहें और जहां कमोबेश हर तरह की राजनीति राज्यपाल से ही ऐसे विधेयक को स्वीकार करने की मन्नत मांगती हो, जो अवैध को वैध बनाने का संकल्प लेता है, तो शहरी निर्देश शायद ही सशक्त हो पाएंगे। ऐसे में शहरी नियोजन की वास्तविक आरजू है क्या। नियोजन के संदर्भ सबसे अधिक सरकारी इमारतों के कारण खुर्द-बुर्द होते हैं, तो व्यक्तिगत प्रभाव के कारण प्रदेश की राजधानी का हुलिया भी बिगड़ता है। ऐसा प्रतीत होता है कि शहरीकरण को हम भवनों के दस्तूर में स्वीकार करते हैं और इसलिए देखते-देखते हर शहर ने अपने आसपास के दर्जनों गांव निगल लिए। शहर की सीमा छोटी रह गई, जबकि इसके फैलते दायरे में अव्यवस्थित हो गए गांव और अब चिंता यह कि कहीं शहरीकरण की अगली मंजिल में एक साथ कई स्लम एरिया पनप जाएंगे। शिमला पर ही गौर करें, तो स्लम होने के चिन्ह बीच शहर में आस्तीन के सांप बन गए। शहरी नियोजन के उद्देश्यों से अगर राजधानी भटक सकती है, तो पूरे प्रदेश की तस्वीर में ऐसे खोट का साम्राज्य दर्ज है। शहर की परिधि में बर्बाद हो रही शहरीकरण की तहजीब को जब तक मर्यादित नहीं किया जाता, तब तक विकास योजनाओं को वास्तविक धरातल पर खड़ा नहीं किया जा सकता और इसके लिए एक साथ पूरे  हिमाचल में ग्राम एवं नगर योजना कानून को अमल में लाना होगा। शहरी एवं ग्राम नियोजन के विस्तृत खाके में जब तक नवनिर्माण की शर्तें अमल में नहीं आतीं, हिमाचल अपनी जमीन के एक बड़े भाग पर स्लम बन चुका होगा। उदाहरण के लिए हमीरपुर के बाजार में भरती रौनक के कदम जब ऐसी गलियों में पहुंचते हैं, जहां शहरी विकास के मायने शून्य हों, तो तरक्की के इस फलक से कितना भविष्य नापेंगे। कहना न होगा कि हमीरपुर जैसे तरक्की पसंद शहर की यह कौन सी विकास योजना है, जो घरों को साथ लगते खेतों में तो उगाती है, लेकिन एमर्जेंसी में एंबुलेंस तक को घुसने नहीं देती। यह अनेक शहरों की व्यथा है, लेकिन इसके प्रतिफल में सड़कों पर डटे वाहनों ने नासूर बनकर ट्रैफिक संचालन को अपंग कर दिया। क्या वाहन खरीद के नियमों में शहरी नियोजन का सीधा ताल्लुक नहीं होना चाहिए। बिना पार्किंग के घर या  मात्र पैदल चलने योग्य गली में आवासीय व्यवस्था के मालिकों को वाहन खरीद से न रोका गया  या उचित पार्किंग इंतजाम के बिना अनुमति दी गई तो हालात और बिगडें़गे। हैरत यह कि शहरी नियोजन के चार दशकों बाद भी विकास योजनाओं के मुर्दाघर ही सजे हैं, जबकि नागरिकों की सांसें अब रुकने लगी हैं। शिमला के संजौली क्षेत्र में अगर किसी शव को अंतिम संस्कार तक ले जाने का पैदल रास्ता तक उपलब्ध नहीं, तो विकास का मातम तो दिवंगत आत्मा भी मनाएगी। ऐसे में सोलन जिला की क्षेत्रीय विकास योजना के तहत समाधानों की नई रिवायत शुरू हो सकती है, जबकि राजधानी शिमला क्षेत्र को अब भविष्य की जरूरतों में समझना होगा। शहरी विकास योजनाओं के जरिए अगर मानवीय दृष्टिकोण व पर्वतीय जीवन शैली की शर्तें अमल में नहीं आतीं, तो सारी कसरतें लतीफा बन जाएंगी। शहरी परिवहन का सार्वजनिक हल तथा सामुदायिक जिम्मेदारियों का निरूपण भी अनिवार्य है। पूरे हिमाचल के नियोजन में गांव की  पद्धति को सर्वप्रथम स्मार्ट श्रेणी में लाना होगा, जबकि नवनिर्माण की हर अदा को भविष्य के प्रारूप में सुनिश्चित करना भी लाजिमी होगा।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App