पेटकोक अनुमति प्राप्त ईंधन में शामिल

By: Jul 27th, 2017 12:10 am

एनजीटी के आदेशों पर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का फैसला, एयर एक्ट में अलग से लेनी होगी परमिशन

NEWSबीबीएन— नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों के अनुरूप राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पेट्रोलियम कोक (पेटकोक) को अनमुति प्राप्त ईंधन की श्रेणी में शामिल कर लिया है। बोर्ड ने इस संबंध में आदेश जारी कर दिए हैं। आदेशों के अनुसार पेटकोक का बायलर व फर्नेस में ईंधन के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए उद्योगों को अब एयर एक्ट में अलग से अनुमति लेनी होगी। यह अनुमति एक साल के लिए मान्य होगी। इसके अलावा पेटकोक उपयोगकर्ता उद्योगों को अपने यहां प्रदूषण नियंत्रण के लिए कास्टिक मीडिया वेट स्क्रबर/ अलकलाइन स्क्रबर लगाने होंगे। एनजीटी के निर्देशों के अनुरूप हिमाचल ने पेटकोक को अनमुति प्राप्त ईंधन की श्रेणी में शामिल कर लिया है। अब उद्यमीयों को इसका इस्तेमाल करने से पहले एयर एक्ट के तहत अलग से सालाना अनुमति लेनी होगी और जरूरी प्रदूषण नियंत्रण उपकरण अपनी इकाई में स्थापित करने होंगे। इसके अतिरिक्त जो उद्योग बायलर व फर्नेस में पेटकोक का इस्तेमाल ईंधन के तौर पर करेंगे, उन्हें कास्टिक मीडिया वेट स्क्रबर/ अलकलाइन स्क्रबर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के तय मानकों के अनुरूप लगाने होंगे। जिन औद्योगिक इकाइयों में पेटकोक की खपत प्रतिदिन पांच टन से ज्यादा है। उन्हें दो स्क्रबर व ऑनलाइन एसओटू मीटर नियमानुसार स्थापित करनें होंगे। बतातें चलें कि हिमाचल में छह दर्जन से ज्यादा उद्योगों में पेटकोक का इस्तेमाल किया जा रहा है। अकेले बीबीएन में ही 30 से ज्यादा उद्योग इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव ने इस संबंध में आदेश भी जारी कर दिए है।

यहां हो रहा इस्तेमाल

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने एनजीटी के आदेशों के अनुसार इस संबंध में तमाम उद्योगों को जरूरी दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं। बीबीएन सहित प्रदेश भर में अनुमानित 500 से ज्यादा उद्योगों के बायलर व फर्नेस में ईंधन के तौर पर एचएसडी (हाई स्पीड डीजल) फर्नेस ऑयल का ही ज्यादातर इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन सीमेंट, पेपर मिल, डाइंग यूनिट, बल्क ड्रग निर्माता, प्लास्टिक व स्टील यूनिट सहित अन्य उद्योग पेट्रोलियम कोक (पेटकोक) का इस्तेमाल कर रहे हैं।

क्या है पेटकोक

पेटकोक पेट्रोलियम रिफाइनरी से निकलने वाला वेस्ट मैटीरियल है। 2014 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने सीमेंट फैक्ट्रियों में इसे ईंधन के रूप में इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। हालांकि हैवी मेटल की मौजूदगी के कारण डेढ़ साल पहले तक इसे भारत में हैजार्ड्स वेस्ट माना जाता था। हालांकि पेटकोक के दहन से भारी मात्रा में निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड पर्यावरण प्रदूषण का एक बड़ा कारण भी बनती है। इसी के चलते राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने उद्योगों को जरूरी प्रदूषण नियंत्रण स्थापित करने की भी हिदायत दी है।

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