भारत से आया मेरा दोस्त…

By: Jul 6th, 2017 12:02 am

एक दोस्ती की नई शुरुआत…। कूटनीति, सामरिक, आतंकवाद, कारोबार से लेकर खेती, सिंचाई, साइबर और बालीवुड सिनेमा तक की शुरुआत गहरी होती हुई…। इजरायल से अतीत में हमारे क्या संबंध थे, महात्मा गांधी ने 1937 में फिलिस्तीन की पैरवी क्यों की थी, आजादी के बाद भारत की नेहरू सरकार की विदेश नीति गुटनिरपेक्ष आंदोलन की समर्थक क्यों थी? प्रधानमंत्री मोदी इजरायल में हैं, तो फिलिस्तीन क्यों नहीं जाएंगे? बेशक ये सवाल आज प्रासंगिक न हों, जब भारत-इजरायल के प्रधानमंत्री पहली बार तेल अवीव में गले मिले हैं और नए संबंधों का नया अध्याय शुरू हुआ है। आजादी के करीब 70 साल बाद भारतीय प्रधानमंत्री मोदी इजरायल की जमीन पर हैं, तो उसे मौजूदा सरकार की विदेश नीति के संदर्भ में ही देखना चाहिए। फिलिस्तीन को लेकर मुस्लिम, मुस्लिम न चिल्लाएं और न ही भारत-इजरायल के रिश्तों को आरएसएस के चश्मे से आंकना चाहिए। नीतियां बदलते परिप्रेक्ष्य में बदलती भी रही हैं। आतंकवाद से भारत छिला पड़ा है। चीन, पाकिस्तान की घेरेबंदी अलग है। ऐसे में सुरक्षा हमारा पहला सरोकार है या हिंदू-मुसलमान…। इजरायल हथियारों का माफिया अथवा गुंडा देश नहीं है। वह छोटे और अपनी किस्म के हथियारों में सर्वश्रेष्ठ है। इजरायल का ‘हेरौन ड्रोन’ पाकिस्तान और चीन की नींद उड़ा सकता है। यह मानवरहित ड्रोन 40,000 फुट की ऊंची उड़ान भरकर निशाने पर मिसाइल दाग सकता है। इजरायल ने ऐसे दस ड्रोन भारत को देने तय किए हैं। इसके अलावा दो साल के अंतराल में करीब 8,000 अन्य मिसाइलें भी देगा। आतंकवाद के इस दौर में हमें मिसाइल, रॉकेट, एयर डिफेंस मिसाइल, एंटी टैंक मिसाइल और अन्य अस्त्रों की भी दरकार है। बेशक इजरायल आतंकवाद रोधी अभियानों, दुश्मन को ढूंढने और उसे मारने, सुरक्षा प्रणाली में विश्व में अग्रिम पंक्ति में है। जो तकनीक और अस्त्र अमरीका ने भारत को मुहैया कराने में संकोच दिखाया है, यदि उसे इजरायल देता है और भारतीय सेनाओं की ताकत बढ़ती है, तो इसमें गलत क्या है? भारत अपने रक्षा बंदोबस्तों को दुरुस्त क्यों न करे? दरअसल यह दो पेशेवर देशों के बीच दोस्ती की शुरुआत की एक मिसाल है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रोटोकॉल तोड़कर हवाई अड्डे पर ही पीएम मोदी की अगवानी की है। वैसा स्वागत धर्मगुरु पोप और अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ड्रंप का ही किया गया था। इजरायल के प्रधानमंत्री ने हिंदी में कहा-‘आपका स्वागत है, मेरे दोस्त।’ प्रधानमंत्री मोदी ने भी हिब्रू भाषा में अपनी अभिव्यक्ति की। यह राजनयिक और द्विपक्षीय औपचारिकता हो सकती है, लेकिन संबंध इसी तरह अंतरंग बनते हैं। वैसे भी करीब 6,000 यहूदी हमारे दिल्ली, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और केरल आदि राज्यों में बसे हैं और भारतीय मूल के हजारों लोग इजरायल में सक्रिय हैं। इजरायल ने 1999 में कारगिल युद्ध में भारत का सहयोग किया था, लेकिन इजरायल को लेकर भारत की मानसिकता असमंजस में रही। हालांकि इजरायल को 1950 में ही मान्यता मिल गई थी, लेकिन भारत के साथ राजनयिक रिश्ते 1992 में ही बन पाए। केंद्र की वाजपेयी सरकार के ही दौरान दोनों देश और करीब आए, जब इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरौन भारत के प्रवास पर आए। अब पीएम मोदी ने इजरायल जाकर इस अध्याय के इतिहास की पुनर्रचना की है। बेशक भारत की तुलना में इजरायल करीब 150 गुना छोटा देश है, लेकिन आतंकवाद और सुरक्षा के मोर्चे पर वह भारत की शिद्दत से मदद करता है, तो इसमें दिक्कत क्या है? इजरायल के लिए भारत शीर्ष हथियार खरीददार है। 2012 से 2016 तक इजरायल के हथियार-निर्यात में करीब 48 फीसदी हिस्सा भारत का रहा है। इस दौर में भी करीब 17,000 करोड़ रुपए का रक्षा करार संभव है। दूसरे कारोबार पर निगाह डालें, तो 2016-17 में इजरायल भारत का 38वां सबसे बड़ा कारोबारी भागीदार रहा है। इस दौरान 33,000 करोड़ रुपए से अधिक का कारोबार हुआ। हालांकि इसी दौरान भारत ने 1.01 अरब डालर मूल्य के खनिज ईंधन और तेलों के निर्यात किए। बहरहाल दोनों देश रक्षा के अलावा भी कुछ कारोबार बढ़ाना चाहते हैं। इजरायल जल प्रबंधन, खेती, गंगा विकास, स्पेस प्रौद्योगिकी, साइबर सुरक्षा आदि क्षेत्रों में भी भारत की मदद करेगा। सबसे अहम यह है कि इजरायल में आतंकवाद से लड़ने की जिजीविषा है। यदि इसमें से कुछ हिस्सा वह भारत के साथ साझा करे तो हमारी आतंकवाद की समस्या बहुत हद तक हल हो सकती है। बहरहाल इस दोस्ती, भागीदारी का सम्मान किया जाना चाहिए। इजरायल ‘मेक इन इंडिया’ में भी साझीदारी निभाना चाहता है। भारत के प्रधानमंत्री के इजरायल की जमीन पर आगमन को करीब 70 साल का इंतजार किया गया है। अब उस यथार्थ के नए आयाम खुलते हैं तो दोनों देशों की ताकत और क्षमता बढ़ेगी। मध्य-पूर्व से लेकर एशिया के देशों में नए कूटनीतिक समीकरण स्थापित होंगे। सबसे बढ़कर इजरायल से यह प्रेरणा ली जा सकती है कि एक छोटा सा देश लगभग अपराजेय कैसे बन सकता है।

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