रूपा का प्रेरक संघर्ष

By: Jul 5th, 2017 12:02 am

(डा. शिल्पा जैन सुराणा, वरंगल, तेलंगाना )

आठ साल की कच्ची उम्र जो खेलने-कूदने की होती है, रूपा की शादी उसी उम्र में हो गई। पढ़ाई में होशियार रूपा ने अपना ध्यान पढ़ाई पर ही केंद्रित किया। दसवीं में आते-आते रूपा का गौना कर दिया। ससुराल में काम करते-करते भी रूपा ने पढ़ाई से अपना नाता जारी रखा। रूपा का सपना था डाक्टर बनना। ठेठ गांव की इस विवाहित लड़की के सपनों को ससुराल वालों ने समझा और तमाम कठिनाइयों का सामना करते हुए भी उसका साथ दिया। रूपा ने भी अपने सपनों की राह में किसी रोड़े को ठहरने न दिया। अब रूपा का चयन नीट में हो गया है और पूरे देश की लड़कियों के लिए वह किसी प्रेरणा से कम नहीं। यह साबित करता है, जहां चाह है, वहां राह है। रूपा का संघर्ष अनूठा इसलिए भी है कि वह एक ऐसी जगह से है, जहां लड़कियों का जन्म लेना भी दुर्भाग्य माना जाता है। उस पर भी रूपा के ससुराल वालों ने उसको पूरा समर्थन दिया। यह बहुत बड़ी बात है। आज भी गांव-कस्बों में महिलाओं को घूंघट में ही रखते हैं, ऐसे में समाज के नजरिए से हट कर उन्होंने जो प्रयास किया, वह निःसंदेह काबिले तारीफ है। महानगरों में महिलाओं के हालात बदले हैं, मगर गांवों में अब भी स्थिति कमोबेश वही है। लिहाजा इन क्षेत्रों में हालात बदलने के लिए विशेष ध्यान देना होगा। शिक्षा का विस्तार इस दिशा में अहम भूमिका अदा कर सकता है। ऐसे में रूपा की कहानी प्रेरणा देने वाली है। लोग समय के साथ अपनी मानसिकता में बदलाव करें, तो देश में और भी ऐसी प्रतिभाएं आगे आएंगी।


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