लालू की ‘जमीनी’ हवस !

By: Jul 10th, 2017 12:02 am

राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की यह ‘हवस’ कब शांत होगी? याद आता है जब 1990 में लालू पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, तो उन्होंने बयान दिया था अब ललुआ खाएगा हलुवा। बेशक वह व्यंग्य और मजाक का मिश्रित भाव रहा होगा, लेकिन लालू ने ज्यों-ज्यों सियासत और सत्ता की मंजिलें लांघीं, उनकी ‘हवस’ बढ़ती ही गई। यह सच अब बेनकाब हो रहा है। मुख्यमंत्री के बाद केंद्रीय रेल मंत्री और बिहार के कद्दावर नेता के तौर पर लालू के भीतर यह भाव रहा होगा कि हम तो सियासी हैं, सियासत करेंगे। यदि सियासत नहीं करेंगे, तो क्या घास छीलेंगे? सियासत और सत्ता में रहते हुए उनके भीतर यह अहंकार भी उपजता रहा होगा कि हमें कौन छू सकता है? हमारी काली कारगुजारियों को कौन चुनौती दे सकता है? एक अंतराल तक उन्हें कोई छू भी नहीं सका, लेकिन 950 करोड़ रुपए के चारा घोटाले में उनका सत्तारूढ़ गठबंधन भी उन्हें बचा नहीं सका। जेल जाना पड़ा। अब जो सच और काले कारनामे सामने आ रहे हैं, उनकी बुनियाद लालू की ‘हवस’ ही है। यदि ऐसा न होता, तो तीन साल और आठ महीने की अल्पायु के लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप की ‘सेवाओं’ से खुश होकर उनके नाम जमीन दान न कर दी होती। आखिर पौने चार साल का बच्चा समाज को क्या सेवाएं दे सकता है? आज तेज प्रताप बिहार सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं। इसी तरह लालू ने अपने ‘भ्रष्टाचारों’ को पत्नी राबड़ी देवी, पुत्र तेज प्रताप और तेजस्वी, पुत्रियों-मीसा, चंदा, रागिनी, हेमा आदि में वितरित कर दिया। सोचा होगा कि सरकारी जांच एजेंसियां उन जमीनों, फार्म हाउस और फ्लैटों आदि को अलग-अलग परिजन की कमाई और संपत्तियां मान लेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जांच एजेंसियां तो पाताल तक जाकर सच को ढूंढ निकालती हैं। दरअसल जिस पत्नी को रसोई, नमक-मिर्च, हल्दी के अलावा एक ही सच का ज्ञान हो-साहेब…। वह सीबीआई के अफसरों को ‘डायरेक्टर, शेयर, पूंजी, कंपनी हस्तांतरण’ के बाबत पूछे गए सवालों के क्या जवाब देगी? इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है। लालू यादव ने 2009 में चुनाव आयोग में दिए हल्फनामे में अपनी आमदनी 87 लाख रुपए घोषित की थी, लेकिन अब 180 करोड़ रुपए की बेनामी संपत्ति के खुलासे कैसे सामने आए हैं? सीबीआई का अनुमान तो 1000 करोड़ रुपए की संपदा का है। छोटे बेटे एवं बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के नाम 115-120 करोड़ रुपए की की संपत्ति आंकी जा रही है। बेटी मीसा भारती को भी आयकर वाले 1000 करोड़ की ‘मालिकिन’ से कम नहीं आंक रहे हैं। प्रवर्तन निदेशालय का आकलन है कि बेटी-दामाद ने 5000 करोड़ के कालेधन को ‘सफेद’ करने का गोल-गपाड़ा किया है। आखिर लालू के घर में ऐसी कौन-सी मशीनें लगी थीं, जो नोट उगल रही थीं? क्या यह कुनबा रिलायंस का भी ‘बाप’ था? आखिर ऐसा क्या सच था कि पूंजीपति से लेकर आम आदमी तक ने लालू के कुनबे के नाम जमीनें दान कीं या औने-पौने दाम पर ही बेच दीं? हमें सिर्फ एक ही सच समझ में आता है कि लालू ने प्रत्येक ‘सामाजिक सेवा’ के बदले में सिर्फ जमीन की ही मांग की। यहां तक कि उन्होंने नौकरियां भी जमीन के टुकड़े के एवज में दीं। जमीन वाले ऐसा क्यों करते रहे? क्या वे अपनी जमीन को जोतकर या व्यावसायिक तौर पर बेचकर पैसा नहीं कमा सकते थे? यदि वे लोग गरीब ही थे, तो उनके पास इतनी जमीन कैसे आई कि लालू कुनबे को दान भी कर दी और अपने इस्तेमाल के लिए भी रख ली? क्योंकि अब मामले सीबीआई, आयकर और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के खाते में हैं, लिहाजा तीनों एजेंसियां देश के सामने कमोबेश यह खुलासा जरूर करें कि लालू कुनबे के कब्जे में इतनी जमीन कैसे आई? जमीन हासिल करने के बदले लालू और उनके परिजनों ने दानदाताओं को क्या ‘सेवाएं’ दी? दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कालोनी, बिजवासन, घिटोरनी, सैनिक फार्म में लालू कुनबे ने फार्म हाउस कब और कितने में खरीदे? ये दिल्ली के ऐसे महंगे इलाके हैं,  जहां एक गज खरीदना भी टेढ़ी खीर है। इन तीनों जगह पर लालू की बेटी मीसा और उनके पति शैलेश के भी फार्म हाउस हैं, जहां ईडी ने छापमारी की और घंटों पूछताछ भी की। हमें बुनियादी अभियुक्त लालू यादव लगते हैं, जिन्होंने सारा गोल-गपाड़ा किया होगा और अपने परिवार को भी उस चक्रव्यूह में फंसा दिया, लेकिन अभियुक्त लालू के बेटे-बेटियां भी हैं, जिन्होंने मुफ्त में मिले माल को कब्जा लिया। वे इनकार भी कर सकते थे। अब लालू के कथित काले कारनामों पर सियासत भी की जा रही है। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनका जद-यू बिलकुल खामोश हैं। प्रवक्ताओं को किसी भी चर्चा में भाग लेने की मनाही है, लेकिन इतने से ही बिहार का महागठबंधन टूट जाएगा, कमोबेश लालू ऐसा नहीं करेंगे, बेशक वह अपने बेटे तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने को कह सकते हैं। ‘उल्टा चोर, कोतवाल को डांटे,’ यह मुहावरा लालू और उनकी कथित विपक्षी एकता पर अक्षरशः चरितार्थ हो रहा है। लालू तो ‘रजिस्टर्ड क्रप्ट लीडर’ हैं, क्योंंकि सुप्रीम कोर्ट की ऐसी मुहर के बाद ही लालू को सांसदी से हाथ धोने पड़े थे और शायद अपने जीवन में वह दोबारा चुनाव भी न लड़ पाएं। ऐसे लालू पीएम मोदी को उखाड़ फेंकने और उनके बेटे तेजस्वी पीएम के अहंकार को चूर-चूर करने के बयान दे रहे हैं। इनके मायने क्या हैं? लालू तो ‘भ्रष्टाचार के माफिया’ हैं। यदि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं और एजेंसियां जांच कर किसी निष्कर्ष को अदालत के सामने रखना चाहती हैं, तो लालू के साथ उनके विपक्षी साथी भी चिल्ला क्यों रहे हैं-‘अरे, हमारा लोकतंत्र (भ्रष्टाचार) खतरे में है। सांप्रदायिक ताकतें हमें (काले धंधों को) खत्म कर देंगी। हमें धर्म निरपेक्षता (काले, भ्रष्ट साम्राज्य) को बचाना है, लिहाजा सभी विपक्षी (भ्रष्ट घोटालेबाज) एक हो जाएं।’  यह आह्वान कितना हास्यास्पद है। यह सिर्फ हिंदोस्तान में ही हो सकता है। आरोपों के आंकड़े कम-ज्यादा हो सकते हैं, लेकिन जमीनों की जो ‘हवस’ सामने आई है, वह निराधार नहीं है।

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