विकास युग के अनपढ़ गवाह

By: Jul 24th, 2017 12:02 am

वर्तमान युग का असली देवता कौन है, इसे धार्मिक अनुष्ठान के बजाय व्यावहारिक एकता से देखें तो तकनीक के बदलते रूप ने हमारी हिम्मत और समझ बढ़ा दी है। कम से कम हिमाचल शिक्षा विभाग की रिपोर्ट के दर्शन करने से पहले सीसीटीवी देवता फरमा रहे हैं कि स्कूलों में नकल किस हद तक संभव है। परीक्षा की निपुणता में स्कूली शिक्षा की काबिलीयत ढूंढ रहे विभाग के लिए रिपोर्ट का परिणाम चौंकाने वाला है, क्योंकि सीसीटीवी ने कई पहलू असफल घोषित कर दिए। पिछले साल परिणामों की महफिल में जो स्कूल छाए रहे, इस बार सीसीटीवी की निगरानी में फेल हो गए। हम विकास युग के अनपढ़ गवाह बनने की तरह सोच रहे हैं और जहां शिक्षा अनुदान तथा शिक्षक अपनी पगार के मेहमान हैं। जरा गौर करें कि स्कूलों में हो क्या रहा है और सरकारें कर क्या रही हैं। बेहतर होगा फेल हुए स्कूलों के शिक्षकों की आकस्मिक परीक्षा किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए और सारी प्रक्रिया कैमरे में कैद रहे। हम जिस ढर्रे से शिक्षा को धकेल रहे हैं, उसमें अध्यापक वर्ग की समीक्षा अपरिहार्य हो जाती है। विडंबना यह भी कि अध्यापन का ही आधार कमजोर हो रहा है, तो शिक्षा में उपलब्ध क्या होगा। इससे भी बुरा हाल उस नीयत का जो नकल के मार्फत शिक्षक का मूल्यांकन कर रही है। बहरहाल सीसीटीवी कैमरे लगाने का उद्देश्यपूर्ण फैसला अपना असर दिखा रहा है, तो आने वाले समय में विफलता के दरिया में अनेक डूबेंगे, लेकिन ऐसे सच को स्वीकार करते हुए ही हमारा सुधार होगा। नकल के कारण स्कूलों का स्तर केवल सरकारी नहीं, बल्कि निजी स्कूलों में भी गिरा है। ऐसे में हम विज्ञान के चमत्कार के साथ-साथ यह भी चिंतन करें कि क्यों शिक्षक जमात, शिक्षा के रक्त में मिलावट कर रही है। स्कूली शिक्षा के वर्तमान आलम से उच्च शिक्षा का महत्त्व भी गौण हो रहा है और अब तो स्कूल से कालेज तक शैक्षणिक अंतर भी सिमट रहा है। न सभी स्कूल एक जैसे हो सकते हैं और न ही कालेज, अतः हम उन शिक्षकों के योगदान को कमतर नहीं आंकते जिनके द्वारा तैयार हो रही भावी पीढ़ी, हिमाचली क्षमता की परिचायक है। यह भी मानना पड़ेगा कि सरकारी स्कूलों की संख्या में अनावश्यक विस्तार अब सीधे शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। यह अलग विषय है कि शिक्षा की पृष्ठभूमि दो अलग-अलग अक्स में कैद हो कर, योग्यता का परचम निजी क्षेत्र को सौंप रही है। हम यह नहीं कह सकते कि निजी स्कूल ही अव्वल हो सकते हैं, लेकिन शहरी परिदृश्य में सरकारी संस्थानों की जमीन उखड़ चुकी है। ऐसे में शिक्षा का संतुलन किस परिभाषा में समझें या शिक्षक के दायित्व को कहां परखें। यह दीगर है कि शिक्षक समाज ने सरकारी स्कूलों को सुरक्षित अभयारण्य की तरह इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है और इसीलिए शिक्षा आवारा हो रही है। ऐसे में शिक्षा का एक पैरामीटर परीक्षा में सीसीटीवी कैमरे में कैद हो रहा है, लेकिन यहां तो आचरण और योग्यता तक पीछा करना पड़ेगा। शिक्षकों के स्थानांतरणों से पिछड़ती शिक्षा और सियासी सक्रियता में परिंदा बने अध्यापकों के पंख काटने पड़ेंगे। इसके लिए जब हर स्कूल में कैमरा निगाह रखेगा, तो और पोल खुलेगी।

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