शब्द वृत्ति
Jul 5th, 2017 12:02 am
गबरू औंधा पड़ा
( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )
गबरू क्यों औंधा पड़ा,
धंसे हुए क्यों गाल?
आंखें गड्ढे में घुसीं,
चाल हुई बदहाल।
चाल हुई बदहाल,
लड़खड़ाती हैं टांगें,
तू खाता उधार,
लाला मम्मी से मांगे।
मां-बापू को पीटता,
अकसर श्रवण कुमार,
बोतल में खुद डूबता,
बिखर गया परिवार।
दुर्घटना नित कर रहे,
ड्रग लेते हैं रोज,
मदिरा नए गुनाह की,
करती है निज खोज।
पिटती-कुटती लक्ष्मी,
आभूषण लिए लूट,
मजबूरी मायके चली,
कुछ दिन की है छूट।
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