संदेश और राजनीतिक संदर्भ

By: Jul 22nd, 2017 12:02 am

हिमाचल में राजनीतिक संदेश और संदर्भों से तय होता मानवीय बोध, एक ऐसा फैक्टर बन जाता है जो किसी भी पार्टी का तंबू उखाड़ सकता है। भाजपा के प्रयत्नों की लाली में जितने भी संदर्भ तथा संदेश दिखाई दे रहे हैं, उनके विपरीत सत्तारूढ़ दल की टूटी बैसाखियों का कचरा इकट्ठा हो रहा है। कोटखाई मुद्दा इस तरह राजनीतिक प्रहार करने में सक्ष्म है और इसके लपेटे में सत्ता का सारा समुदाय अवश्य ही आया है। यानी अपराध के संदर्भ जोड़ते-जोड़ते भाजपा ने शायद उतनी सामग्री एकत्रित नहीं की, जितनी कोटखाई प्रकरण ने उपलब्ध कर दी, तो इसका संदेश स्पष्ट है। ऐसे में राजनीति के मुहाने ढूंढने के अलावा भाजपा ने अपने संदेश की पैकेजिंग भी बेहतर तरीके से की है। अपनी तमाम रथ यात्राओं से तमतमाई जमीन पर, अब भाजपा ने कोटखाई के आंसू बिखेर कर जो संदेश दिया है, उससे कांग्रेसी पथ यात्रा का अर्थ खतरे में है। राजनीति के अपने रथ पर आक्रामक रही भाजपा ने अगर कांग्रेस को पैदल चलने से भी रुकने पर मजबूर किया, तो पूरे प्रदेश की दीवारों पर चस्पां नारों का अर्थ महत्त्वपूर्ण हो जाता है। क्या वाकई हिमाचल सरकार संकट में है और अगर नहीं, तो आगे बढ़ने का रास्ता है कहां। विरोध की छावनी बने हिमाचल में सरकार को सुरक्षा कवच पहनना पड़ रहा है, तो भाजपा अपने सामर्थ्य को बढ़ाने का ऐलान करते हुए सामाजिक कुनबे में प्रवेश कर चुकी है। इसमें यह भी समझना होगा कि वास्तविक मुद्दों की जगह अब भाजपा द्वारा प्रचारित विषय ही अग्रसर होंगे या जो हो रहा है, स्वाभाविक है। यह तो मानना पड़ेगा कि माहौल को अपनी तरफ मोड़ने में भाजपा कहीं अधिक सक्षम है, जबकि सरकार के पहरेदार खेमों में बंटे हैं। इसीलिए फिर लाव-लश्कर तैयार करके एकजुटता की दुहाइयों में सरकार खुद को संलिप्त कर रही है, लेकिन भटके कदमों की आहट तो सामान्य नहीं है। आंतरिक और बाह्य तौर पर सरकार की छवि में पार्टी को जीना है, तो यह भी उतना ही जरूरी होगा कि कांग्रेस को आगे कर मुख्यमंत्री चलना शुरू करें। सत्ता और संगठन के संदेश फिलहाल न तो एक हुए और न ही एक जैसे हुए और यही भिन्नता भाजपा को आगे देख रही है। भाजपा ने अपने संदर्भों को मोदी सरकार के प्रारूप में आगे रखा है, तो हिमाचली संदेश में विकल्प स्पष्ट किया है। हालांकि एक संदेश भाजपा के भीतर भी विचलित कर रहा है और जहां पार्टी का चेहरा अपने नेतृत्व की डगर खोज रहा है। मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित न करके भाजपा ने राजनीतिक संदर्भों की एक नई परिपाटी बनाने का मौखिक आश्वासन जरूर दिया है और यह भी एक संदेश की तरह पार्टी की ऊर्जा को संचालित कर रहा है। कांग्रेस अपनी विडंबनाओं से अनेक मोर्चों पर शिकार होते दिखाई दे रही है, तो क्या कोटखाई प्रकरण अब सियासी तापमान बढ़ा कर भाजपा का उद्घोष कर रहा है। एक साथ उफान पर आई जन संवेदना को सामाजिक परिप्रेक्ष्य के अलावा राजनीतिक उद्देश्य के लिए कितना इस्तेमाल किया जा रहा है, यह भी तो एक संदेश है और जहां सत्ता के संदर्भ खोखले साबित किए जा रहे हैं। मौके पर चोट कर रही भाजपा के अपने समर्थकों के मुस्कराते प्रदर्शन के बीच संवेदना और संदेश का अंतर समझना होगा या जिन संदर्भों का उल्लेख बार-बार ज्ञापनदाता करते हैं, उस पर महामहिम राज्यपाल का संकेत भी तो देखना होगा।

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