हिंदोस्तान किसके बाप का !

By: Jul 5th, 2017 12:02 am

‘ऐ विश्व हिंदू परिषद वालो, बजरंग दल वालो, ऐ नरेंद्र मोदी, सुन ले’ यह देश किसी के बाप की जागीर नहीं है।’ बेशक हिंदोस्तान उसके बाशिंदों, नागरिकों और पूरे अवाम की भी जागीर नहीं है, यह देश ओवैसी की सपोली औलादों की भी जागीर नहीं है। बाप का नाम हम नहीं ले रहे हैं, क्योंकि वह दिवंगत हो चुके हैं। हिंदोस्तान हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी आदि सभी समुदायों का एक संप्रभु राष्ट्र है। वह एक लोकतांत्रिक देश है, लेकिन लोकतंत्र की भी एक मर्यादा, शालीनता, भव्यता होती है। लोकतंत्र के मायने बेलगामी से नहीं हैं। देश के प्रधानमंत्री को ‘शैतान’ और ‘जालिम’ कहना भी अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है। यह मजहबी गुंडई है, जिसकी सजा सिर्फ जेल है और सियासत के लिए अयोग्य करार देना भी एक दंडात्मक कार्रवाई है। यह देशद्रोही हरकत भी हैदराबाद के ओवैसी परिवार के नए सपोले अकबरुद्दीन ओवैसी ने की है कि मोदी ने तो निजी जिंदगी में बहुत छोड़ा है, त्यागा है। उन्होंने तो लालकिले की प्राचीर से कहा था कि यह देश किसी की बपौती, जागीर नहीं है। देश 125 करोड़ नागरिकों का है। फिर ऐसे भड़काऊ बयान के मंसूबे क्या हैं? ओवैसी के जहरीले सपोले! क्या तुझे एहसास नहीं कि देश के बहुसंख्यक हिंदू, धर्मनिरपेक्ष न होते, तो आज मुसलमानों के कथित नेता भी सार्वजनिक मंचों पर प्रधानमंत्री को गाली देने की हिम्मत नहीं कर सकते थे। देश में सांप्रदायिक जहर की जुबां नहीं बो सकते थे। वोट के नाम पर मुसलमानों से अपील नहीं कर सकते थे। यदि यह देश अपने संस्कारों और चरित्र से समावेशी न होता, तो सांप्रदायिक कपटों में ही जलता रहता। एमआईएम पार्टी के अध्यक्ष एवं सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कुछ अंतराल पहले बयान दिया था कि पुलिस को सिर्फ 15 मिनट के लिए हटा लें, तो वह 100 करोड़ हिंदुओं को उनकी औकात दिखा देंगे। क्या हिंदुओं का बीज ही नष्ट कर देंगे। यह हिंदू-मुसलमान का राग कैसा है? यह विभाजन कैसा है? अरे, खुद मुसलमान तो ओवैसी और उसके सपोलों को ‘गुंडा’ मानते हैं। ओवैसी की सियासत को मात्र पांच फीसदी मुसलमानों का भी समर्थन नहीं है। यह सच्चाई वह अलग-अलग राज्यों में चुनाव लड़कर देख भी चुके हैं, तो अब उनके मंसूबे क्या हैं? दरअसल इस देश ने मुसलमानों को क्या नहीं दिया? वे मंत्री बने, राष्ट्रपति और गवर्नर बने। सरकारों के शीर्ष और बड़े पदों पर भी नियुक्त किए गए। यहां तक कि गुप्तचर ब्यूरो के निदेशक सरीखे बेहद संवेदनशील पद पर भी मुसलमान को नियुक्त किया गया। उसके बावजूद ओवैसी मुस्लिमों के मसीहा बनने की खातिर संसद और विधानसभाओं को भी कोस रहे हैं, जबकि खुद इन सदनों के सदस्य हैं। जूनियर ओवैसी ने इस हद तक जहर उगला है कि मुसलमानों की बर्बादी और तबाही के कानून किसी गली-मोहल्ले या चौराहे पर नहीं बने, बल्कि संसद और विधानसभाओं ने ऐसे कानून बनाए हैं। फिर भी ओवैसी कुनबा मुसलमान भाइयों को लामबंद करना चाहता है, भाइयों को भड़का कर उठने की अपील करता है, ताकि वही लोकसभा में 50 सांसद भेज सकें। बहरहाल यह देश बेहद सहिष्णु और संयमी है। हिंदू माथे पर तिलक लगाता है और मुस्लिम टोपी पहनना चाहता है, तो उस पर कानूनन कोई पाबंदी नहीं है। बेशक कुछ वारदातें हुई हैं, हिंसा की घटनाएं हुई हैं, तो उनके लिए सभी हिंदू व मुसलमान कसूरवार नहीं हैं, ये वारदातें पहले भी होती रही हैं। ये बेलगाम भीड़तंत्र के ही नतीजे हैं। उनके लिए मोदी को बाप की गाली देना कमोबेश सभ्यता की निशानी नहीं है। दरअसल ऐसे भड़काऊ और गालीनुमा बयान पूरे राष्ट्र को कलंकित करते हैं, लिहाजा केस दर्ज कर ओवैसी को जेल में फेंक देना चाहिए, उसकी विधायिका को रद्द कर देना चाहिए। आखिर वह प्रधानमंत्री कब तक गालियां सहन करेंगे, जब वह इजरायल के विदेश प्रवास पर जाने को तैयार हों। एक अनुरोध टीवी मीडिया से भी है कि वह ऐसे गालीनुमा समारोहों का बहिष्कार करे और कमोबेश चैनलों पर तो कोई बयान न दिखाए, क्योंकि यह लोकतंत्र भी किसी के बाप की जागीर या बपौती नहीं है।


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