आजादी की जंग में कूदे थे कांगड़ा के सूरमा
कांगड़ा— गुलामी की बेडि़यों को काटने में जिन वीरों ने अपना सर्वत्र न्यौछावर कर दिया था, उसमें कांगड़ा के युवकों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। जब महात्मा गांधी ने वर्ष 1820-21 में असहयोग आंदोलन का बिगुल बजाया तो ठाकुर पंचम चंद्र इस आंदोलन में कूद पड़े और उन्होंने कांगड़ा निवासी बागी राम, नादौन निवासी सर्वमित्र व भवारना निवासी सरदार कृपाल सिंह को लेकर अंग्रेजी साम्राज्य मुक्त करवाने के लिए सक्रिय हो गए। असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर देहरा निवासी हेमराज ने कालेज की पढ़ाई छोड़ दी और इस आंदोलन में कूद पड़े। फौजी भर्ती के खिलाफ महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए व्यक्तिगत सत्याग्रह का जिला कांगड़ा में श्री गणेश तहसील कांगड़ा से हुआ। सबसे पहले सत्याग्रही मंगत राय खन्ना वकील ने गिरफ्तारी दी। उसके पश्चात ईश्वर दास, शंकर दास दौलतपुरी, ओम प्रकाश ने कांगड़ा में गिरफ्तारी दी। रोशन लाल ने धर्मशाला में सत्याग्रह करके गिरफ्तारी दी। तत्पश्चात हेमराज कांगड़ा घर को तिलांजलि देकर बाहर निकले और धनोटू गांव तहसील कांगड़ा में 30-40 हजार लोगों की हाजिरी में पं. भगत राम की अध्यक्षता में फौजी भर्ती के खिलाफ भाषण दिया और उसके बाद गिरफ्तारी दी। इस मौके पर कांगड़ा की जनता ने खुले तौर पर लंगर लगाए। आजादी की इस जंग में हर कोई अपने-अपने ढंग से योगदान देने में तत्पर था। आजाद हिंद फौज के गीत कदम-कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा यह जिंदगी है कौम की तू कौम पे लुटाए जा आज भी सुना जाता है। देश भक्ति के इस गीत के संगीत निदेशक राम सिंह ठाकुर खनियारा निवासी थे। खनियारा के इस व्यक्ति ने देश प्यार के गीतों को अपनी कला से निखार कर संपूर्ण भारत वर्ष में क्रांति की लहर उत्पन्न कर दी थी। इसी से प्रभावित होकर लाहौर में शिक्षा ग्रहण करने वाले तीन छात्र पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता के आंदोलन में कूद पड़े। इनमें से यशपाल तथा इंद्रपाल हथियारबंद क्रांति में भरोसा रखते थे। उन्होंने हिंदोस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सेना की सदस्यता स्वीकार की। इस आंदोलन में कांशी राम ने कहानियों और कविताओं के माध्यम से जगह-जगह लोगों में आजादी के विचार का संचार किया। बाद में यही कांशी राम पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम के नाम से मशहूर हुए। असहयोग आंदोलन के तहत मार्च 1922 में पूरे कांगड़ा में जगह-जगह अंग्रेजी कपड़ों तथा वस्तुओं की होली जलाई गई। लोगों ने देशी चीजों को अपनाने का संकल्प लिया। सल्याणा के मेले में तो महिलाओं ने विदेशी चूडि़यों व रेशमी घाघरों को जला दिया। उनकी देखादेखी पुरुषों ने भी रेशमी रूमाल, टोपियां व पगडि़यां आग की भेंट कर दीं। आठ मार्च, 1922 को पुलिस ने भीड़ पर लाठियां बरसाईं, उसी लाठीचार्ज में कई लोग घायल हुए, जिससे कांगड़ा क्षेत्र में जबरदस्त रोष फैला था। कांगड़ा की जेल सत्याग्रहियों से भर गई और यह सिलसिला वर्षों तक चलता रहा। आखिर स्वतंत्रता आंदोलन कामयाब हुआ और आजादी मिली।
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